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सोमवार, 12 मई, 2025
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ओडिशा के मंत्री ने कहा: पुरी मंदिर की लकड़ी का इस्तेमाल दीघा में नहीं हुआ, कानूनी कदम की धमकी

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भुवनेश्वर, पांच मई (भाषा) ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने सोमवार को कहा कि अंतरिम जांच रिपोर्ट के अनुसार, पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के दीघा में एक मंदिर में स्थापित मूर्तियों को बनाने के लिए पुरी जगन्नाथ मंदिर की किसी भी पवित्र लकड़ी का इस्तेमाल नहीं किया गया, जैसा कि विभिन्न पक्षों द्वारा आरोप लगाया गया था।

पुरी के पूर्ववर्ती राजघराने के शासक गजपति महाराजा दिव्यसिंह देब और ओडिशा सरकार ने भी पश्चिम बंगाल के अधिकारियों से आग्रह किया है कि दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर के साथ ‘धाम’ का उपयोग करने से परहेज किया जाए और वहां के समुद्र को ‘महोदधि’ (महासागर) के रूप में पेश करना बंद किया जाए।

देब ने सोमवार को दावा किया कि पश्चिम बंगाल के दीघा स्थित जगन्नाथ मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ नहीं कहा जा सकता।

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष देब ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार केवल पुरी स्थित 12वीं शताब्दी के मंदिर को ही ‘जगन्नाथ धाम’ कहा जा सकता है।

भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक माने जाने वाले देब ने एक बयान में कहा, ‘दीघा में नवप्रतिष्ठित श्री जगन्नाथ मंदिर का नाम ‘जगन्नाथ धाम’ या ‘जगन्नाथ धाम सांस्कृतिक केंद्र’ रखे जाने के बारे में मीडिया से जानने के बाद, मैंने इस मामले पर मुक्तिमुंडुपा पंडित सभा की राय मांगी।’

हालांकि दीघा और पुरी में दोनों समुद्र एक ही (बंगाल की खाड़ी) है, पुरी स्थित समुद्र को ‘महोदधि’ कहा जाता है, तथा 12वीं शताब्दी के जगन्नाथ मंदिर वाले पुरी को पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है।

कानून मंत्री ने पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ कानूनी कदम उठाने की भी धमकी दी, यदि उसने दीघा मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ के रूप में संदर्भित करना बंद नहीं किया।

पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने पश्चिम बंगाल के दीघा स्थित एक मंदिर की मूर्तियां बनाने में 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर की अतिरिक्त पवित्र लकड़ी के कथित इस्तेमाल को लेकर एक वरिष्ठ सेवादार को कारण बताओ नोटिस जारी किया।

प्रशासन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि दैतापति निजोग के सचिव और वरिष्ठ सेवादार रामकृष्ण दासमहापात्र को इस आरोप में नोटिस जारी किया गया है कि उनके विरोधाभासी बयानों से भगवान जगन्नाथ के ‘अनेक श्रद्धालुओं और उपासकों के मन में भ्रम उत्पन्न हुआ’ और मंदिर की ‘गरिमा को ठेस पहुंची।’

‘दैतापति नियोग’ सेवादारों का एक समूह है, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का अंगरक्षक माना जाता है।

दासमहापात्र को चार मई से सात दिनों के भीतर अपना जवाब देने को कहा गया है।

नोटिस में कहा गया है, ‘‘यदि इस समयावधि में संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं मिला तो श्री जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1955 के अनुसार कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।’’

दासमहापात्र ने तीस अप्रैल को पुरी के 55 अन्य सेवादारों के साथ दीघा मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लिया था। उक्त समारोह में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी उपस्थित थीं।

दासमहापात्र ने कथित तौर पर ‘दारू गृह’ (भंडार कक्ष) में संग्रहित पुरी मंदिर की पवित्र लकड़ी का उपयोग दीघा मंदिर के लिए भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां बनाने के लिए किया था तथा मूर्तियों को प्राणप्रतिष्ठा के लिए दीघा मंदिर ले गए थे।

नोटिस में यह भी उल्लेख किया गया है कि दासमहापात्र ने एक बांग्ला समाचार चैनल के साथ साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि उन्होंने पुरी मंदिर की पवित्र लकड़ी का उपयोग दीघा मंदिर की मूर्तियां बनाने के लिए किया था और बाद में उन्होंने ओडिशा मीडिया में इसका खंडन किया था। नोटिस में कहा गया है कि दासमहापात्र ने दावा किया था कि उन्होंने मूर्तियां बनाने के लिए एक अन्य नीम के पेड़ का उपयोग किया था।

एसजेटीए के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाधी ने रविवार को दासमहापात्र को तलब किया था और उनसे करीब 90 मिनट तक पूछताछ की थी।

अधिकारियों ने बताया कि प्रशासन यह जानना चाहता है कि क्या उन्होंने ‘दैतापति नियोग’ के सचिव के तौर पर पुरी मंदिर से पवित्र लकड़ी ली थी और उसका इस्तेमाल दीघा मंदिर के लिए मूर्तियां बनाने में किया था?

भाषा सुरेश माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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