श्रीनगर: कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) विजय कुमार का कहना है कि आतंकी संगठनों के प्रति स्थानीय समर्थन घट रहा है लेकिन घाटी में ‘हाइब्रिड आतंकवादी’ जम्मू-कश्मीर पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं.
1997 बैच के आईपीएस अधिकारी ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि सुरक्षा बलों ने पिछले तीन महीनों में कश्मीर घाटी में सक्रिय आतंकवादियों की संख्या घटाकर 150 पर पहुंचा दी है. उन्होंने कहा कि इन अभियानों के तहत लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम) से जुड़े 70 आतंकवादी मारे गए हैं.
कुमार ने आगे बताया कि हाल के महीनों में घाटी में सुरक्षा बलों द्वारा मार गिराए गए आतंकवादियों में शीर्ष कमांडर भी शामिल थे. आईजीपी ने जम्मू-कश्मीर पुलिस की आतंकवाद-रोधी अभियानों की संख्या बढ़ाने, और घाटी में आतंकवादियों का आंकड़ा 100 से नीचे लाने की योजना के बारे में भी विस्तार से बात की.
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‘ऑपरेशन और तेज करने की तैयारी’
यह पूछे जाने पर कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अपने लिए क्या लक्ष्य निर्धारित किया है, आईजीपी कुमार ने कहा, ‘इस साल के अंत तक घाटी में आतंकवादियों की संख्या को घटाकर दो अंकों में लाना है.’
उन्होंने कहा, इसके लिए ‘निरंतर, हाई स्पीड वाले ऑपरेशन’ को अंजाम देने और ‘स्थानीय समर्थन’ जुटाने की जरूरत होगी.
उन्होंने कहा, ‘दिसंबर से मार्च के अंत तक, 70 से अधिक आतंकवादी मारे गए हैं. अकेले इसी महीने (अप्रैल में) 19 आतंकवादी मारे गए हैं. इनमें लश्कर और जैश के टॉप कमांडर भी शामिल हैं. यह उनके लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि अब उनके पास अगुआई करने वाले आतंकी ही नहीं हैं. उनके पास कोई पुराना अनुभवी साथी नहीं बचा है. जो आतंकी हैं, उनमें से ज्यादातर नई भर्तियों वाले हैं.’
कुमार ने बताया, ‘उदाहरण के तौर पर जैश में अब कोई टॉप कमांडर नहीं बचा है. हमने पिछले कुछ महीनों में उनके 20 आतंकवादियों को मार गिराया है. वे अब नए रंगरूटों के साथ काम कर रहे हैं जो ऑनलाइन धमकियां भेजने जैसी गतिविधियों में शामिल हैं.’
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‘आतंकवादियों को स्थानीय समर्थन में आई कमी’
आईजीपी ने इस बात को भी रेखांकित किया कि आतंकवादियों को स्थानीय स्तर पर लॉजिस्टिक सपोर्ट में कमी आना एक अन्य ऐसा फैक्टर है जिसने घाटी में उनकी गतिविधियों को काफी हद तक प्रभावित किया है.
उन्होंने कहा, ‘घाटी में आतंकवादियों के लिए स्थानीय समर्थन घट रहा है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमने आतंकवादियों का समर्थन करने वाले लोगों के खिलाफ दंडात्मक और सुरक्षात्मक दोनों तरह की कार्रवाई की है.
उन्होंने आगे कहा, ‘समय बदल गया है. अब, अगर किशोर आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए अपना घर-बार छोड़ते हैं तो उनके माता-पिता मदद के लिए हमसे संपर्क करते हैं. वे गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करते हैं और इससे हमें आतंकी भर्ती रोकने में मदद मिलती है. 25 फीसदी मामलों में आतंकियों के परिवारों की मदद लेकर उन्हें सरेंडर कराया गया और फिर उन्हें मुख्यधारा में वापस लाया गया है.’
कई ओवर ग्राउंड वर्कर्स (ओजीडब्ल्यू) और उनके सहयोगियों पर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसके बारे में आईजीपी कुमार का कहना है कि यह आतंकियों के लिए एक बड़ी ‘बाधा’ साबित हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘दंडात्मक कार्रवाई के तहत हमने आतंकियों के प्रति सहानुभूति रखने वालों और उनके सहयोगियों को पीएसए और यूएपीए के तहत बुक किया. अगर हमने पाया कि किसी के घर में कोई आतंकवादी रह रहा है तो हमने उस संपत्ति को कुर्क करना शुरू कर दिया और मालिक को भी गिरफ्तार कर लिया. इस तरह लोगों ने आतंकियों का विरोध करना शुरू कर दिया. उन्होंने हमें उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी देना भी शुरू कर दिया.’
शीर्ष पुलिस अधिकारी ने यह भी कहा कि घाटी में आतंकवाद विरोधी अभियानों की संख्या कई गुना बढ़ने से भी आतंकवादी संगठनों की ‘कमर टूट गई है.’ यही कारण है कि आतंकवादी अब ‘हताश’ हैं और ‘आम लोगों को निशाना बना रहे’ हैं.
जम्मू-कश्मीर पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2021 से कश्मीर घाटी में टारगेट बनाकर की गई हत्याओं में 23 से अधिक नागरिकों ने जान गंवाई है.
आईजीपी कुमार ने कहा, ‘वे (आतंकी) अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए बेताब हैं और इसलिए, नागरिकों को निशाना बना रहे हैं. उनके निशाने पर अब पंचायत नेताओं के अलावा खेतिहर मजदूर, पुलिसकर्मी और सीआरपीएफ के जवान हैं जो छुट्टी पर हैं और बिना हथियार के हैं.
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‘हाइब्रिड आतंकवादी केस-टू-केस आधार पर काम कर रहे’
जम्मू-कश्मीर पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती के बारे में बात करते हुए आईजीपी विजय कुमार ने कहा कि बड़ी संख्या में ‘हाइब्रिड और पार्ट-टाइमर आतंकवादी’ घाटी में सक्रिय है. ज्यादातर मामलों में ये ‘हाइब्रिड आतंकवादी’ स्थानीय हैं जिनका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता है. और इसलिए पुलिस के लिए उन्हें ट्रैक करना भी काफी मुश्किल होता है.
आईजीपी ने बताया, ‘पिछली जनवरी में जब घाटी में कृष्णा ढाबा के मालिक को निशाना बनाया गया, तो यह हमारे लिए एक ब्लाइंड केस था. जांच में पता चला कि हत्यारे स्थानीय थे और हमारे पास उनका कोई रिकॉर्ड नहीं था. आगे जांच से पता चला कि उन्हें इस हत्या के लिए पाक से ऑनलाइन निर्देश मिले थे.’
उन्होंने कहा, ‘हमने यह भी पाया कि ये हत्यारे कभी भी सीधे तौर पर किसी हैंडलर से नहीं मिले थे, लेकिन उन्हें सिर्फ भर्ती किया गया था और हत्या को अंजाम देने के लिए ऑनलाइन निर्देश दिए गए थे. हमने तब उन्हें हाइब्रिड आतंकवादी करार दिया था.’
उन्होंने कहा, ‘ये हाइब्रिड आतंकवादी केस-टू-केस आधार पर काम करते हैं. उनके माता-पिता, पड़ोसी, किसी को पता तक नहीं चल पाता कि वे किसी आतंकी समूह से जुड़े हैं. उन्हें ऑनलाइन भर्ती किया जाता है, ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया जाता है और यहां तक कि टारगेट भी ऑनलाइन ही बताया जाता है. दूसरे व्यक्ति के माध्यम से उन्हें हथियार भेजा जाता है. वे हत्या को अंजाम देते हैं और फिर पिस्तौल लौटा देते हैं. और फिर अपने दैनिक दिनचर्या में मशगूल हो जाते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हमने इनमें से कई हाइब्रिड आतंकवादियों को गिरफ्तार किया है. कुछ ने आत्मसमर्पण किया, कुछ को उनके माता-पिता की मदद से आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया गया. हमने पिछले चार महीनों में 37 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया, जिनमें से 15 हाइब्रिड हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि अधिकांश नए भर्ती आतंकी, विदेशी आतंकी हों या स्थानीय, एके-47 की तुलना में पिस्तौल का इस्तेमाल करना बेहतर समझते हैं क्योंकि छोटे हथियार ‘छिपाने और चलाने दोनों के लिहाज से आसान’ होते हैं.
कुमार ने कहा, ‘पिछले साल ड्रोन के जरिए पाकिस्तान से तमाम पिस्तौलें आई हैं. हाइब्रिड आतंकी उनका इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि वे आसानी से उपलब्ध हैं और छिपाने में आसान हैं. पहले एके-47 का ज्यादा इस्तेमाल होता था. अब, हम पाकिस्तानी आतंकियों को भी पिस्तौल का उपयोग करते पाते हैं.’
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लक्ष्य—आतंकियों की संख्या 100 से नीचे लाना
1997-बैच के आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘जब मैंने यहां ज्वाइन किया था तो लोगों ने मुझसे कहा कि हम चाहे जितनी भी कार्रवाई कर लें, साल के अंत तक आतंकियों की संख्या 200 से अधिक होगी. लेकिन हमने तय किया कि हम ऐसा नहीं होने देंगे. पिछले साल, कई वर्षों के बाद, हम उस गिनती को 170 तक लाने में सफल रहे.’
उन्होंने कहा, ‘मेरी योजना ऑपरेशन की संख्या और अधिक बढ़ाने की है, और इस साल दिसंबर तक, आतंकियों का यह आंकड़ा 100 से नीचे लाने का लक्ष्य है. इन 100 में सभी आतंकवादी शामिल होने चाहिए—नई भर्ती वाले, घुसपैठ करके आए और मौजूदा आतंकी भी. लक्ष्य संख्या को दोहरे अंकों में लाना है.’
उन्होंने कहा, ‘अगर अभी की तरह संख्या घटती रहती है और हमने अपने अभियानों की निरंतरता और गति बनाए रखी तो और हमें जनता का समर्थन मिलता रहा तो हम कुछ वर्षों में कश्मीर से आतंकवाद का पूरी तरह सफाया कर देंगे.’
2021 में कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में 171 आतंकवादी मारे गए थे, जबकि 2020 में 207 आतंकवादी मारे गए थे.
जम्मू-कश्मीर पुलिस के डेटा के अनुसार, कश्मीर घाटी में सक्रिय कम से कम 60 प्रतिशत आतंकवादी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए हैं, जबकि बाकी जैश-ए-मोहम्मद, अंसार गजवत-उल-हिंद (एजीयूएच) और अल बद्र से जुड़े हैं. कई आतंकी संगठनों ने द रेसिस्टेंस फ्रंट और कश्मीर टाइगर फोर्स जैसे संबंद्ध गुट भी बनाए हैं.
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