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Friday, 17 May, 2024
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‘नूंह में कई डिमोलिशन नोटिस झड़पों से पहले के हैं’, विधायक ने अधिकारियों पर लगाया गलती छिपाने का आरोप

नूंह के डिप्टी कमिश्नर ने हलफनामे में कहा कि 7 अगस्त तक 2 हफ्तों में जिले में चलाए गए डिमोलिशन अभियानों से प्रभावित 354 लोगों में से 283 मुस्लिम थे.

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गुरुग्राम: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में जिला प्रशासन द्वारा दायर एक हलफनामे से पता चलता है कि नूंह में सांप्रदायिक झड़पों के बाद नष्ट हुई कई संपत्तियों के डिमोलिशन नोटिस इस साल जुलाई से बहुत पहले दिए गए थे, कुछ को तो 2016 की शुरुआत में ही जारी कर दिया गया था.

हलफनामे को पढ़ने से, जिसकी एक काॅपी दिप्रिंट ने देखी थी, पता चलता है कि कम से कम एक मामले में, एक ही व्यक्ति को जारी किए गए तीन अलग-अलग डिमोलिशन नोटिस 2016 और 2017 के हैं, जबकि कई अन्य इस साल जुलाई में झड़पों से कुछ दिन पहले जारी किए गए थे.

नूंह से कांग्रेस विधायक आफताब अहमद ने आरोप लगाया कि नोटिस डिमोलिशन ड्राइव के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करने के लिए एक “कवर-अप” था.

18 अगस्त को नूंह के उपायुक्त धीरेंद्र खडगटा द्वारा प्रस्तुत हलफनामे में यह भी कहा गया है कि 7 अगस्त तक दो सप्ताह में जिले में कुल 443 संरचनाएं (162 स्थायी और 281 अस्थायी) तोड़ दी गईं थी. इसमें कहा गया है कि इन अभियानों से प्रभावित 354 लोगों में से 283 मुस्लिम थे और बाकि 71 हिंदू थे.

हलफनामे के माध्यम से, हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट को यह भी बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार, “मेवात की आबादी 10,89,263 थी, जिसमें मुस्लिम आबादी लगभग 79.20 प्रतिशत और हिंदू आबादी  20.37 प्रतिशत थी.”

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हलफनामे में किए गए खुलासे 31 जुलाई को मुस्लिम बहुल नूंह जिले में हिंदुत्व समूह विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) द्वारा आयोजित एक धार्मिक जुलूस के दौरान हुई सांप्रदायिक झड़पों के बाद के घटनाक्रम के मद्देनजर महत्वपूर्ण हैं.

हिंसा में दो होम गार्ड और एक मुस्लिम मौलवी सहित छह लोग मारे गए, जो अंततः पड़ोसी गुरुग्राम तक फैल गई.

हिंसा के चार दिन बाद 4 अगस्त को, अधिकारियों ने नूंह में डिमोलिशन ड्राइव  शुरू किया. हालांकि, पंजाब और हरियाणा HC ने स्वत: संज्ञान लिया और 7 अगस्त को इस अभियान पर रोक लगा दी, यह कहते हुए कि “अगर कानून के अनुसार प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है” तो इसे रोक दिया जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति जी.एस. संधावालिया और न्यायमूर्ति हरप्रीत कौर जीवन की पीठ ने कहा, “हमारा मानना है कि भारत का संविधान इस देश के नागरिकों की रक्षा करता है और कानून में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई भी डिमोलिशन नहीं किया जा सकता है.”

कड़े शब्दों में दिए गए आदेश में पीठ ने यह भी कहा कि “मुद्दा यह भी उठता है कि क्या कानून और व्यवस्था की समस्या की आड़ में किसी विशेष समुदाय की इमारतों को गिराया जा रहा है और राज्य द्वारा एक विशेष जाति को ही निशाना बनाया जा रहा है.”

“तदनुसार, हम हरियाणा राज्य को एक हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश जारी करते हैं कि पिछले दो हफ्तों में नूंह और गुरुग्राम दोनों में कितनी इमारतें ध्वस्त की गई हैं और क्या डिमोलिशन से पहले कोई नोटिस जारी किया गया था. यदि आज ऐसा कोई विध्वंस किया जाना है, तो कानून के अनुसार प्रक्रिया का पालन नहीं होने पर इसे रोक दिया जाना चाहिए.”


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क्या कहता है हलफनामा

पंजाब और हरियाणा HC में प्रस्तुत हलफनामे को पढ़ने से पता चलता है कि एक मामले में, नगरपालिका परिषद ने “आकिल पुत्र खलील रहमान निवासी वार्ड 4, नूंह” को तीन बार – अक्टूबर 2016, फरवरी 2017 और मार्च 2017 में नोटिस जारी किया था.

हलफनामे में इस विशेष मामले के बारे में कहा गया कि “7 अगस्त, 2023 को किए गए इस डिमोलिशन से मुस्लिम समुदाय से आने वाला एक व्यक्ति प्रभावित हुआ था.”

एक अन्य मामले में, 2021 दिल्ली-अलवर रोड के साथ ‘नियंत्रित क्षेत्र’ में निर्माण के लिए शहीदी पार्क, नूंह निवासी श्रीमती अनीश को 24 सितंबर को नोटिस दिया गया था. इस मामले में, नोटिस में सात दिनों के भीतर काम रोकने और संरचनाओं को हटाने के लिए कहा गया, अन्यथा संरचनाओं को ध्वस्त करने और एफआईआर दर्ज करने की बात कही गई.

पी.के. जैसे कानूनी विशेषज्ञ और पंजाब एवम् हरियाणा हाई कोर्ट के वरिष्ठं वकील पी के संधीर ने डिमोलिशन नोटिस की वैधता पर सवाल उठाया. संधीर ने दिप्रिंट को बताया कि विध्वंस से दो से सात साल पहले जारी किए गए नोटिस का कानून की नजर में कोई महत्व नहीं है.

“किसी भी डिमोलिशन को अंजाम देने से पहले एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. दो से सात साल पहले दिया गया एक नोटिस, जिसमें संपत्ति के मालिक से दस्तावेज़ पेश करने के लिए कहा गया था या यहां तक कि संरचना को हटाने का निर्देश दिया गया था, आज संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है.”

संधीर ने कहा कि “एक नया नोटिस दिया जाना चाहिए, जिसमें संपत्ति को ध्वस्त करने के इरादे का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाए और व्यक्ति को संरचना से अपना सामान हटाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.”

दिलचस्प बात यह है कि 16 फरवरी, 2017 का एक नोटिस लगभग 27 अक्टूबर, 2016 के दूसरे नोटिस के समान था, जबकि 25 फरवरी, 2021 के हरियाणा शहरी क्षेत्र विकास और विनियमन अधिनियम, 1975 की धारा 7(3) के उल्लंघन के आधार पर निर्माण रोकने का आह्वान किया गया.

साथ ही, डिमोलिशन अभियान से एक महीने से भी कम समय पहले कई नोटिस 7 जुलाई, 2023 को दिए गए थे. उदाहरण के लिए, “सुलेमान, पुत्र अब्दुल रहमान, निवासी वार्ड 5, नूंह” को 7 जुलाई, 2023 को नोटिस मिला, जबकि “अनवर, पुत्र रशीद”, “हसन, पुत्र फ़र्ज़ू”, “आबिद, पुत्र रस्सू” ”, “हनीफ के बेटे एनाम” और “राशिद के बेटे ताहिर” को 17 जुलाई को नोटिस मिला.

अहमद के अनुसार, जुलाई में जारी किए गए कई नोटिस “डिमोलिशन के दिन संपत्ति मालिकों को सौंपे गए थे, जिनमें बाद की तारीखे लिखी हुई थी.

अहमद ने आरोप लगाया, “पिछले कुछ वर्षों में एक नई तरह की सज़ा पेश की गई है – अब लोगों की संपत्तियों को ढहाने के लिए बुलडोज़र लाया जाता है जिन्हें सरकार पसंद नहीं करती है. जब हम अवैध तोड़-फोड़ रोकने के अनुरोध के साथ उनके पास गए तो अधिकारियों ने हमारी बात नहीं सुनी. अब, जब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है, तो अधिकारी अपनी गलती को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं.”

नूंह के डीसी धीरेंद्र खडगटा ने आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि मामला अदालत में विचाराधीन है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ”मामला अदालत में है और हमने एक हलफनामा दायर किया है.”

(संपादन: अलमिना खातून)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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