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Thursday, 25 April, 2024
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हरियाणा में न्यूक्लियर पावर प्लांट की पहली यूनिट का काम 74% पूरा, 2028 में शुरू होगा संचालन

उत्तर भारत की पहली परमाणु परियोजना को 2009 में सैद्धांतिक मंजूरी दी गई थी. हरियाणा के मुख्य सचिव का कहना हैं कि राज्य सरकार इसके जल्दी पूरा होने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान कर रही है.

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चंडीगढ़: 2014 में, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गोरखपुर गांव में 2,800 मेगावाट (MW) न्यूक्लियर पावर प्लांट की आधारशिला रखी थी. हालांकि, कई बार इसका काम रुकने और देरी के बाद, इसकी पहली इकाई के जून 2028 में परिचालन शुरू होने की संभावना है.

गोरखपुर हरियाणा अनु विद्युत परियोजना (जीएचएवीपी) का हिस्सा, न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) की एक महत्वाकांक्षी पहल, परमाणु ऊर्जा संयंत्र उत्तर भारत में पहला होगा. एक बार पूरा हो जाने पर, यह न केवल देश की परमाणु क्षमता में वृद्धि करेगा, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी एक लंबा रास्ता तय करेगा.

भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के अनुसार, देश में वर्तमान में 22 चालू परमाणु ऊर्जा रिएक्टर हैं और 6,780 मेगावाट की स्थापित परमाणु ऊर्जा क्षमता है.

ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की कुल स्थापित उत्पादन क्षमता 4,16,591 मेगावाट है, कोयला 49.3 प्रतिशत, हाइड्रो 11.2 प्रतिशत और परमाणु केवल 1.6 प्रतिशत है.

हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने परियोजना को समय पर पूरा करने के लिए हरियाणा सरकार और जीएचएवीपी के अधिकारियों के बीच समन्वय के प्रयासों पर चर्चा करने के लिए सोमवार को चंडीगढ़ में आयोजित एक बैठक की अध्यक्षता की.

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जीएचएवीपी के परियोजना निदेशक निरंजन कुमार मित्तल ने कौशल को परियोजना की प्रगति के बारे में अपडेट किया, जिसमें कहा गया कि “74 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है और पहली इकाई के जून 2028 में परिचालन शुरू होने की संभावना है.”

एक मीडिया विज्ञप्ति के अनुसार, “इसके अतिरिक्त, महत्वपूर्ण रिएक्टर घटकों के साथ-साथ पहली इकाई के लिए एंड शील्ड और स्टीम जनरेटर जैसे आवश्यक उपकरण साइट पर प्राप्त किए गए हैं.”

दिप्रिंट से बात करते हुए, कौशल ने कहा कि हरियाणा सरकार परियोजना को जल्दी पूरा करने के लिए सभी आवश्यक सहायता प्रदान कर रही है.

उन्होंने कहा, “परमाणु ऊर्जा परियोजना, उत्तर भारत में बिजली पैदा करने के अलावा क्षेत्र में समृद्धि लाएगी.”

जब मनमोहन सिंह ने संयंत्र की आधारशिला रखी थी, तब यह बताया गया था कि 700-700 मेगावाट क्षमता की चार इकाइयां विकसित की जाएंगी और 23,502 करोड़ रुपये की लागत से पूरी की जाएंगी.

परियोजना को दो चरणों में चालू किया जाना था. पहले में, 1,400 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाली दो इकाइयों को 2020-21 तक चालू किया जाना था. दूसरा चरण उसके बाद शुरू होना था, और यह क्षमता को दोगुना कर पूरे 2,800 मेगावाट तक ले जाएगा.

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, इस परियोजना में विभिन्न कारणों से देरी देखी गई है, जिनमें से सबसे बड़ी वजह कोविड महामारी थी.


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एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने में लंबा समय

हरियाणा के गोरखपुर गांव में परमाणु ऊर्जा संयंत्र का विचार पहली बार 1984 में आया था जब यह क्षेत्र हिसार जिले का हिस्सा था. फतेहाबाद को जुलाई 1997 में एक नए राज्य जिले के रूप में बनाया गया था.

कम भूकंपीय क्षेत्र में स्थित होने और लोगों द्वारा मुआवजे के लिए जमीन छोड़ने की अच्छी संभावना के कारण जिला प्रशासन ने मेगा परियोजना की स्थापना के लिए गोरखपुर गांव को उपयुक्त माना था.

अक्टूबर 2009 में, केंद्र सरकार ने 2,800 मेगावाट के परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी और एनपीसीआईएल ने अप्रैल 2010 में फतेहाबाद जिले में एक कार्यालय स्थापित किया था.

सरकार ने संयंत्र स्थापित करने के लिए गोरखपुर और आसपास के काजलहेड़ी गांव में 1,313 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया, लेकिन जिन किसानों की जमीन ली गई थी, उनके लंबे विरोध का सामना करना पड़ा.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2011 की जापान की फुकुशिमा परमाणु आपदा ने परमाणु संयंत्र के खिलाफ विरोध बढ़ने और आंदोलनकारी किसानों को समर्थन देने वाले कई पर्यावरणविदों के साथ चीजों को और अधिक जटिल बना दिया था.

अपना विरोध व्यक्त करने के लिए फतेहाबाद जाने वालों में पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह अब केंद्रीय मंत्री हैं.

सरकार द्वारा 46 लाख रुपये प्रति एकड़ के मुआवजे की पेशकश के बाद किसानों ने 2012 के अंत में परियोजना के खिलाफ अपना विरोध समाप्त कर दिया था.

एनपीसीआईएल ने अपने अधिकारियों और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के कर्मियों के लिए एक आवासीय कॉलोनी बनाने के लिए 2011 में फतेहाबाद के बडोपल गांव में 186 एकड़ जमीन भी अधिग्रहित की थी. हालांकि, स्थानीय लोगों ने काले हिरण के आवास के नष्ट होने की आशंका के चलते इस कदम का विरोध किया और जून 2018 में एनपीसीआईएल को योजना छोड़नी पड़ी थी.

बाद में इसने हरियाणा के अग्रोहा शहर में कॉलोनी के लिए जमीन खरीदा था.

मुख्य सचिव कौशल ने दिप्रिंट को बताया कि “एनपीसीआईएल द्वारा अब तक गोरखपुर गांव में कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (सीएसआर) पहल के तहत 39.08 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है.”

मीडिया विज्ञप्ति के अनुसार, धन का उपयोग विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए किया गया है – जिसमें काजलहेड़ी से गोरखपुर तक फतेहाबाद शाखा नहर के बाएं किनारे पर पक्की सड़क का निर्माण; आस-पास के स्कूलों में कक्षाओं, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और शौचालयों की स्थापना; गौशालाओं का निर्माण; काजलहेड़ी में कछुआ संरक्षण पार्क का निर्माण; और मुफ्त इलाज और दवाओं के वितरण के लिए एक मोबाइल मेडिकल वैन का प्रावधान शामिल हैं.

विज्ञप्ति में कहा गया है कि स्थानीय लोगों के कौशल को बढ़ाने और योग्य छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने का भी प्रयास किया गया है, और अग्रोहा में विकसित की जा रही आवासीय टाउनशिप एक उन्नत चरण में है और जून 2023 तक यहां आठ मंजिला आवासीय टावरों का कब्जा होने की उम्मीद है.

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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