नई दिल्ली: दिल्ली के मुखर्जी नगर में लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर छात्रों का एक समूह अपने भविष्य की योजना बना रहा है. लेकिन वे यूपीएससी परीक्षाओं या आईएएस अधिकारी बनने के बाद उनके जीवन में आने वाले बदलावों के बारे में चर्चा नहीं कर रहे हैं. वे इन दिनों नोएडा के बारे में बात कर रहे हैं. उनके सपने एक नए पते पर शिफ्ट हो रहे हैं.
नोएडा दिल्ली-एनसीआर में यूपीएससी की तैयारी के लिए मुखर्जी नगर को पीछे छोड़ने के लिए तैयार है. सबसे पहले, लगभग 15,000 छात्रों वाले एक प्रमुख कोचिंग संस्थान दृष्टि आईएएस ने घोषणा की कि वह स्थायी रूप से नोएडा में शिफ्ट हो जाएगा. अब, अन्य ने नए स्थान की तलाश शुरू कर दी है.
इसके साथ ही, दिल्ली में यूपीएससी कल्चर का मुख्य केंद्र खत्म होने वाला है. दलालों और रिक्शा वालों की ‘बत्रा, बत्रा, बत्रा’ और ‘यूपीएससी, यूपीएससी, यूपीएससी’ की जानी-पहचानी आवाजें खत्म हो रही हैं.
छात्र अब खाने-पीने की दुकानों और स्टेशनरी की दुकानों पर भीड़ नहीं लगा रहे हैं. एडमिशन सेशन के चरम पर कोचिंग संस्थानों में नए आने वालों की संख्या बहुत कम है. यहां तक कि पेइंग गेस्ट में भी जगह बची हुई है.
मुखर्जी नगर की भीड़भाड़ वाली गलियों में बदलाव की लहर दौड़ रही है.
47 वर्षीय पुष्पेंद्र श्रीवास्तव ने कहा, “हाँ, कोचिंग संस्थान आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन आप इस जगह की संस्कृति को कैसे आगे बढ़ाएँगे? इसे विकसित होने में सालों लग जाते हैं. महिलाएँ रात के 2 बजे लाइब्रेरी से बाहर निकल सकती हैं. यहाँ लोग हमेशा सड़कों पर उम्मीदवारों को देख सकते हैं, यहाँ तक कि सबसे ठंडी सर्दियों में भी,”. वे मुखर्जी नगर में एक युवा के रूप में आए थे, और कभी वापस नहीं गए. अब, वे एक ‘भैया’ हैं जो एक संस्थान में पढ़ाते हुए युवा उम्मीदवारों को सलाह देते हैं.
श्रीवास्तव ने कहा, “कोचिंग संस्थानों और लोगों को आगे बढ़ाना आसान है, लेकिन संस्कृति को आगे बढ़ाना असंभव है क्योंकि यह लोगों और जगहों के साथ समय के साथ बनती है,”
उन्होंने मुखर्जी नगर को एक चहल-पहल वाले कोचिंग हब के रूप में डेवलेप होते देखा है, जो लाखों उम्मीदवारों के सपनों, पसीने और आँसुओं से भरा हुआ है.
मेरा फोल्डिंग बेड मुश्किल से फिट होता था, और मैं अपनी सारी किताबें अलमारियों में रखता था. मैं वहीं से चुना गया और उसी रसोई से मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार की तैयारी की. मेरे लिए यही मुखर्जी नगर है.
– अवनीश शरण, आईएएस अधिकारी
लेकिन यह सब बदल रहा है. अब बंद हो चुका बत्रा सिनेमा और उसके आस-पास चाय-पराठे, स्टेशनरी की दुकानें और 24×7 कोचिंग संस्थानों का खुला रहना अब पहले की बात हो गई है. और गहरे स्तर पर, यूपीएससी कोचिंग हब में एक खास सेंटीमेंट यह है कि कुछ अमूर्त भी खत्म होने को है.
मुखर्जी नगर की यह प्रसिद्ध संस्कृति दशकों से जमकर ठोस हुई है. यह महत्वाकांक्षाओं का पता है. इसमें कई अर्थ निहित हैं. यह युवाओं के कठिन यूपीएससी परीक्षा को पास करने के अंतहीन धैर्य और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है. लेकिन यह एक ऐसे भारत का भी प्रतीक है जहां सत्ता और पद का मतलब अभी भी सरकारी नौकरी पाना होता है. मुखर्जी नगर पुराने और नए भारत के मुहाने पर खड़ा है. एक ऐसा भारत जो जोखिम मुक्त सरकारी नौकरियों की चाह रखता है लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए बहुत बड़ा जोखिम उठाने को भी तैयार है. कोचिंग क्लासेस, लाइब्रेरी और गंदे स्टडी रूम के ऑर्गेनिक इकोसिस्टम के साथ, यह इलाका प्रीलिम्स-मेन्स-रिंस-रिपीट के थकाऊ और निराशाजनक चक्की में बदल गया है. यह वह जगह भी है जहाँ 3,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के कोचिंग इंस्टीट्यूट इंडस्ट्री का शक्तिशाली गठजोड़ बिना किसी जांच-पड़ताल के बेरोकटोक अभी भी राज करता है.
अब तनाव की एक लहर है – जो खाली फुटपाथों और दुकानों में झलकती है. स्टेशनरी और किताबों की दुकानों के मालिक, जूस विक्रेता और मकान मालिक जैसे छोटे उद्यमियों के कारोबार में पहले से ही गिरावट देखी जा रही है.
यह बदलाव तीन छात्रों की मौत के बमुश्किल एक महीने बाद शुरू हुआ, जब जुलाई में हुई भारी बारिश के दौरान एक और कोचिंग हब ओल्ड राजिंदर नगर में एक ‘बेसमेंट लाइब्रेरी’ में पानी भर गया था. उस त्रासदी और पिछले कुछ सालों में पड़ोस के कोचिंग हब में आग लगने से लेकर बिजली के झटके लगने तक की कई दुर्घटनाओं ने उस बदलाव को तेज कर दिया है, जो अब मुखर्जी नगर की पहचान को खतरे में डाल रहा है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर विजेंद्र चौहान, जो कि खुद सिविल सर्विस की तैयारी करते थे और इस कल्चर से भलीभांति परिचित हैं, ने कहा, “मुखर्जी नगर में जो कुछ हो रहा है, वह बहुत पहले हो जाना चाहिए था.”
चौहान ने कहा, “अगर सरकारें पहले काम करतीं, तो ये बदलाव पहले आ सकते थे. इस क्षेत्र में छात्रों की इतनी बड़ी संख्या को समायोजित करने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी थी. मुझे उम्मीद है कि हम बच्चों के जीवन को अधिक महत्व देना शुरू कर देंगे.”
जुलाई में छात्रों के डूबने की त्रासदी के बाद, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने मुखर्जी नगर में 30 से अधिक कोचिंग संस्थानों को दो निकास, उचित वेंटिलेशन और अग्निशमन विभाग की एनओसी प्रदान करने जैसे सुरक्षा नियमों का पालन करने में विफल रहने के लिए सील कर दिया है.
खराब ईकोसिस्मट
पिछले सोमवार शाम 5 बजे तक, ई-रिक्शा चालक छोटू सिंह ने केवल 600 रुपये कमाए थे. कुछ हफ़्ते पहले, वह जीटीबी नगर मेट्रो स्टेशन से मुखर्जी नगर तक छात्रों को लाने-ले जाने और वापस लाने का काम करके शाम तक आसानी से 1,500 रुपये कमा लेता था.
छोटू ने उदास होकर कहा, “हाल ही में लगभग 35 प्रतिशत भीड़ कम हुई है.” वह पांच साल पहले यूपी के सुल्तानपुर में अपने गृहनगर से दिल्ली आने के बाद से ही ई-रिक्शा चला रहा है. अब, वह जीटीबी नगर मेट्रो गेट नंबर 2 पर बिना किसी यात्री के लौट रहा है, जहाँ से हर दिन सैकड़ों उम्मीदवार ट्रेन से उतरते हैं.
दीवारें, इमारतों के सामने के हिस्से, स्ट्रीट लाइटें – 2 किलोमीटर की रोड पर खाली जगह का हर एक हिस्सा – कोचिंग संस्थानों और छात्रावासों के पोस्टर और होर्डिंग के साथ-साथ सफल उम्मीदवारों की तस्वीरों से भरा हुआ है.
“पहले, मैं मेट्रो स्टेशन पर ही अपने रिक्शा में छात्रों को भर लेता था. अब, मुझे इंतजार करना पड़ता है. मुझे डर है कि मुझे भी यहाँ से जाना पड़ सकता है.”
मुखर्जी नगर में हर गली के कोने पर यही आवाज़ सुनाई देती है. इस महीने पहली बार स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले मोहन सिंह के पास आराम से बैठने, काउंटर पर पैर रखने और अपने फ़ोन पर YouTube शॉर्ट्स देखने का समय है.
छह साल पहले यह स्टोर खोलने वाले सिंह कहते हैं, “कई छात्र करोल बाग और वज़ीराबाद चले गए हैं. हमें अपने कारोबार में काफ़ी नुकसान हो रहा है और हमने सुना है कि कई कोचिंग संस्थान जा रहे हैं और छात्र भी जाएंगे.” इस छोटी सी दुकान में अलमारियों की कतारें पेन, हाइलाइटर, नोटबुक, नक्शे और स्टिकर से भरी हुई हैं. मोहन के अनुसार, कुछ ही हफ्तों में उनके ग्राहक प्रतिदिन 100-150 से घटकर लगभग 70-80 रह गए हैं.
दोपहर तक, सड़कों पर छात्रों की भीड़ उमड़ आती है, जो वहां मौजूद खाने की तमाम दुकानों में से किसी एक में जल्दी से जल्दी गर्मागर्म लंच करने के लिए जा रहे हैं. नई-नई खाने की दुकानें खुलती रहती हैं, जिनमें से हर एक घर जैसा स्वाद देने का वादा करती है. यहां खाने की कम से कम सौ दुकानें और रेस्टोरेंट हैं.
कोचिंग सेंटर सिर्फ़ लोगों को सफल बनाने के लिए नहीं हैं; वे सपने भी बेचते हैं, खास तौर पर उन लोगों को जो असफल महसूस करते हैं. वे उन्हें उम्मीद की किरण दिखाते हैं.
-डीयू के प्रोफेसर और पूर्व यूपीएससी उम्मीदवार विजेंद्र चौहान
महाराष्ट्र काडर के एक आईएएस अधिकारी ने 2013 में मुखर्जी नगर के दिनों को याद करते हुए कहा, “जब मैं यूपीएससी की तैयारी कर रहा था, तब अग्रवाल [स्वीट्स] हमारा मैकडॉनल्ड हुआ करता था. हम सेलिब्रेट करने के लिए और दुखी होने पर गम को कम करने के लिए वहां जाते थे.” अग्रवाल स्वीट्स में छात्र अक्सर खाने के लिए जाते हैं. यह अभी भी मौजूद है, लेकिन अब इसके साथ-साथ पंजाबी जायका, पंजाबी चिकन कॉर्नर और चावला फास्ट फूड भी दिखते हैं.
सोमवार की शाम को, लगभग 30 छात्र छोटे-छोटे समूहों में अग्रवाल स्वीट्स के बाहर इकट्ठा होते हैं, गोलगप्पे और ढोकला खाते हैं और स्टडी मटीरियल, शिक्षण की गुणवत्ता और ऑनलाइन देखे गए आईएएस अधिकारियों के साक्षात्कारों पर चर्चा करते हैं.
यह सब स्वाभाविक रूप से एक साथ हुआ. डीयू के प्रोफेसर चौहान ने कहा, “एक ईको सिस्टम का निर्माण करना आसान नहीं है.” उनका कहना था कि यह सब संस्थानों, पीजी इत्यादि के साथ-साथ अड्डे, सेलिब्रेट करने के लिए दोस्तों के साथ लंच और डिनर और देर रात तक पढ़ाई करने की सामूहिक स्मृतियों के साथ पैदा होता है.
पॉपुलर कल्चर ने अभयर्थियों को अपनी ओर और भी ज्यादा खींचा है. आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के ऊपर फिल्में, मीम्स और वेब सीरीज़ बन रही हैं. उनके यूपीएससी की तैयारी के दौरान किए गए संघर्ष को एस्पिरेंट्स और 12 वीं फेल जैसे शो में दिखाया गया है.
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चौहान ने कहा, “कोचिंग सेंटर लोगों को सिर्फ़ सफल बनाने के लिए नहीं हैं; वे सपने बेचने के लिए हैं, खास तौर पर उन लोगों के लिए जो असफल महसूस करते हैं, ये उनके लिए उम्मीद की किरण जगाते हैं. उनकी अनुपस्थिति प्रकाशित होने वाले शोध पत्रों की संख्या को प्रभावित नहीं करेगी, लेकिन यह सफलता और असफलता को देखने के हमारे नज़रिए को बदल सकती है.”
मकान मालिकों को पहले से ही उम्मीदवारों से ‘छोड़ने के नोटिस’ मिलने शुरू हो गए हैं. कई सालों में पहली बार, हॉस्टल और पीजी में जगह बची है.
हॉस्टल खाली हो रहे हैं, ब्रोकर तनाव में हैं
एक लाइब्रेरी की सीढ़ियों के बाहर, दृष्टि आईएएस के छात्र शिवम झा नोएडा में अपने आगामी कदम के लिए योजना बना रहे हैं. पटना के 26 वर्षीय इस युवक को मुखर्जी नगर के जीवन में ढलने में महीनों लग गए- सबसे अच्छी चाय की दुकान, सबसे तेज़ कॉपियर की दुकान और सबसे शांत पढ़ने का कमरा ढूँढना. अब, उसे फिर से शुरुआत करनी होगी.
झा ने कहा, “मुझे नहीं पता कि वहां चाय का स्वाद वैसा होगा या नहीं. मुझे लगता है कि शुरुआती दिनों में मैं खुद ही चाय बनाऊंगा. सुबह सबसे पहले यही चीज़ है जो हम लोग पीते हैं और तैयारी के वक्त रोज़ाना हम लोग 6-7 कप चाय पीते हैं. इसलिए मैं वहां एक अच्छी चाय की दुकान तलाश करने की कोशिश करूंगा.”
लेकिन आखिरकार उन्हें अपने तंग ‘कमरे’ से बाहर निकलने की खुशी है जो कि दरअसल एक कमरे में बनी तीन ‘यूनिट्स’ में से एक है.
उन्होंने कहा, “उम्मीद है कि नोएडा में कमरे बड़े और सस्ते होंगे.” उनके पिता हर महीने उन्हें किराए, खाने और दूसरे खर्चों के लिए जो 10,000 रुपये भेजते हैं, वह नोएडा में और भी काम आएंगे. मुखर्जी नगर में सीढ़ियों के नीचे की जगह को भी ‘कमरों’ में बदल दिया गया है. झा दो महीने में कमरा खुद ही छोड़ने वाले हैं लेकिन मकान मालिकों को पहले ही उम्मीदवारों से ‘रूम छोड़ने के नोटिस’ मिलने शुरू हो गए हैं. सालों में पहली बार हॉस्टल और पीजी में जगह बची हुई है.
मुखर्जी नगर में 44 वर्षीय मीना कुमारी के पास दो बिल्डिंग हैं, जिन्हें उन्होंने हॉस्टल में बदल दिया है. हालांकि, उनके कुछ किराएदारों द्वारा रूम छोड़ने का नोटिस देने के बावजूद वह काफी शांत नज़र आती हैं.
उन्होंने कहा, “इस बात की कोई संभावना नहीं है कि पूरी भीड़ चली जाएगी. यह अच्छी बात होगी कि यह जगह थोड़ी हवादार हो जाए.”
जहां मकान मालिक अभी भी आशावादी हैं कि यह एक छोटी सी समस्या है और चीजें पहले जैसी सामान्य हो जाएँगी. वहीं ब्रोकर ज़्यादा सतर्क हैं.
मुखर्जी नगर में 10 साल पहले ब्रोकर के रूप में अपना बिजनेस शुरू करने वाले जसवीर यादव ने कहा, “इस बार, यह वास्तविक लगता है.” उनके कई क्लाइंट्स ने उन्हें बताया है कि वे स्थायी रूप से वहां से जाने वाले हैं. और उन्हें अपने सभी कमरों के लिए किराएदार नहीं मिले हैं.
रिक्शा चालक छोटू की तरह ही उन्हें भी चिंता हो रही है. उन्होंने कहा, “अगर ऐसा ही चलता रहा तो मुझे दिल्ली से यूपी में अपने गांव जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.”
मकान मालिक और ब्रोकर अब एक-दूसरे पर उंगलियां उठा रहे हैं. हर कोई एक-दूसरे पर लालची होने और खराब बुनियादी ढांचे और अपेक्षित सुविधाओं के न होने का आरोप लगा रहा है.
झा ने कहा, “वे थोड़े लालची हो गए थे और अभ्यर्थियों से अच्छे से सहयोग नहीं करते थे. वे बल्ब और स्विच जैसी छोटी-छोटी चीजों के लिए भी छात्रों से पैसे लेते थे.”
कई कोचिंग संस्थानों ने कहा कि मुखर्जी नगर के लिए यह अंत की शुरुआत है. उनका मानना है कि इस बार जब तक सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं किया जाता है तब तक एमसीडी किसी तरह से समझौता करने के मूड में नहीं है.
सील और शिफ्ट
स्थानीय जूस विक्रेताओं से लेकर रिक्शा चालकों तक, हर कोई दावा करता है कि उन्हें कोचिंग संस्थान और छात्रों के बारे में अंदरूनी जानकारी है.
बत्रा सिनेमा के पास एक जूस की दुकान पर काम करने वाले असलम ने दावा किया, “कुछ छात्र करोल बाग चले गए हैं और कई नोएडा जाने की योजना बना रहे हैं. कुछ कोचिंग संस्थान नरेला भी जा रहे हैं.”
जिस बेसमेंट में कभी दृष्टि आईएएस की की कक्षाएं चलती थीं, उसके बाहर कर्मचारी बड़े ट्रकों में कुर्सियां, टेबल और वॉटर कूलर भर रहे हैं. इस जगह पर अब छात्र बिल्कुल भी नहीं दिखते.
झा ने कहा, “क्लास में आगे की सीट पाने के लिए लोग लाइन में खड़े रहते थे. हमें अंदर जाने या बाहर निकलने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई. कई लोग इस क्लास में अभ्यर्थियों को मोटीवेट करने के लिए भी आते थे. कई टॉपर्स यहीं पढ़े हैं. यह हमारे लिए बहुत ही भावुक क्षण है.”
फ़िलहाल, दृष्टि ने नोएडा में नई कोचिंग नहीं खोलने तक छात्रों से करोल बाग स्थित अपने सेंटर पर ऑफ़लाइन कक्षाएं लेने को कहा है.
मैं दृष्टि के साथ ही जाऊँगा. मेरे सभी दोस्त मेरे साथ जा रहे हैं. मैं अब पूरी तरह से यहां ढल गया था, लेकिन दिल का क्या है कहीं भी लग ही जाएगा.
-विभव कुमार, मध्य प्रदेश के रहने वाले यूपीएससी अभ्यर्थी
दृष्टि आईएएस के एक वरिष्ठ प्रबंधक ने कहा, “यह अगले दो महीनों में चालू हो जाएगा.” उन्होंने दावा किया कि मुखर्जी नगर में हिंदी माध्यम के यूपीएससी उम्मीदवारों में से 80 प्रतिशत इसी संस्थान से आते हैं.
मध्य प्रदेश के 24 वर्षीय उम्मीदवार विभव कुमार, दृष्टि द्वारा सटीक स्थान की घोषणा किए जाने के बाद नोएडा जाने की तैयारी कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि मुखर्जी नगर की तुलना में यहां का किराया कम होगा, जहां मकान मालिक रख-रखाव और सुरक्षा के लिए भी बहुत ज़्यादा पैसे लेते हैं. कोचिंग की लागत बचाने के लिए, विभव ने दृष्टि के मेंटरिंग प्रोग्राम में दाखिला लिया है.
अपने दोस्तों के साथ लाइब्रेरी के बाहर बैठे हुए कुमार ने कहा, “मैंने मेंटरिंग प्रोग्राम की परीक्षा पास कर ली है, और वे मुझे सभी अध्ययन सामग्री और लाइब्रेरी के लिए निःशुल्क ऐक्सेस करेंगे. इसलिए, मैं दृष्टि के साथ जाऊँगा. मेरे सभी दोस्त मेरे साथ जा रहे हैं. मैंने अभी-अभी यहां सहज महसूस करना शुरू ही किया था, लेकिन दिल का क्या है कहीं भी लग ही जाएगा,”.
जुलाई में डूबने की त्रासदी के बाद, दिल्ली नगर निगम (MCD) ने मुखर्जी नगर में 30 से अधिक कोचिंग संस्थानों को दो निकास, उचित वेंटिलेशन और अग्निशमन विभाग की NOC जैसे सुरक्षा नियमों का पालन करने में विफल रहने के कारण सील कर दिया है.
MCD के एक वरिष्ठ सिविक ऑफिसर ने कहा, “हम छात्रों की सुरक्षा से समझौता नहीं करने जा रहे हैं. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि मुखर्जी नगर में संचालित संस्थानों को खोलने की अनुमति देने से पहले उनके पास सभी आवश्यक अनुमतियां हों.”
छात्र अब इन संस्थानों को लाखों रुपये देने से भी कतराने लगे हैं. दिप्रिंट से बात करने वाले पांच संस्थानों के एडमिशन काउंसलरों ने कहा कि, यह एनरोलमेंट का पीक सीजन है, लेकिन आवेदन और पूछताछ में कमी आनी शुरू हो गई है.
कई कोचिंग संस्थानों ने कहा कि मुखर्जी नगर के लिए यह अंत की शुरुआत है. उनका मानना है कि इस बार एमसीडी किसी भी तरह के समझौते या पिछले दरवाजे से सौदेबाजी करने के मूड में नहीं है.
एक लोकप्रिय कोचिंग संस्थान के वरिष्ठ कर्मचारी ने कहा, “कोचिंग सेंटर्स पर प्रतिबंध लगना और सीलिंग कोई नई बात नहीं है. लेकिन पहले कोचिंग संस्थान एमसीडी को पैसे देते थे, इसलिए मानकों से समझौता कर लिया जाता था. इस बार, एमसीडी सुरक्षा मानदंडों को लेकर बहुत सख्त है.”
अगर यह जारी रहा, तो कई संस्थानों के पास शिफ्ट होने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा. मुखर्जी नगर की तंग गलियों और इमारतों को कभी भी इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को समायोजित करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था. छोटे संस्थान, खासकर वे जहां मालिकों ने प्रॉप्रटी को खरीद रखा है, वे विशेष रूप से चिंतित हैं.
संस्कृति आईएएस के मालिकों में से एक जिसे सील कर दिया गया था, निशांत सक्सेना ने कहा, “यहां से जाना हमारा आखिरी विकल्प होगा. हम मुखर्जी नगर में अपनी कक्षाएं फिर से शुरू करने के लिए सभी आवश्यक अनुमतियां प्राप्त करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. हम बातचीत कर रहे हैं और आशावादी हैं कि हमें जल्द ही फायर एनओसी मिल जाएगी.”
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सक्सेना ने पुराने राजिंदर नगर में तीन यूपीएससी उम्मीदवारों की मौत के लिए एमसीडी को दोषी ठहराया.
उन्होंने कहा, “उन्होंने पहले बेसमेंट में पुस्तकालयों और कक्षाओं की अनुमति क्यों दी? लोग रेल दुर्घटनाओं में भी मरते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ट्रेनें चलना बंद हो जाती हैं.”
उन्होंने कहा कि मुखर्जी नगर के पूरी तरह से खाली होने की संभावना नहीं है. पूरा ईको सिस्टम, इसकी संस्कृति, दिल्ली के इतिहास का एक अमिट हिस्सा है.
मुखर्जी नगर का इतिहास
एक तरह से मुखर्जी नगर हमेशा लोगों की उम्मीदों और सपनों का केंद्र रहा है. आज के समय में व्यावसायिक कोचिंग हब बनने से पहले यह विभाजन के दौरान पश्चिमी पंजाब से विस्थापित लोगों के लिए एक शरणस्थली था. दिल्ली के अन्य हिस्सों में एलॉटमेंट मिलने से पहले परिवार अस्थायी शिविरों में रहते थे.
कुछ समय के लिए यह एक आम आवासीय क्षेत्र था. लेकिन जब किराएदारों ने खाली करने से इनकार कर दिया और कानूनी मुद्दे सामने आने लगे, तो मकान मालिकों ने बैंकरों और सरकारी अधिकारियों को किराए पर देना शुरू कर दिया, जो लगातार तबादलों के कारण लंबे समय तक नहीं रहते थे.
1990 के दशक तक, कुछ कोचिंग संस्थानों ने सिविल सेवा, मेडिकल प्रवेश और इंजीनियरिंग जैसी सरकारी परीक्षाओं के लिए कक्षाएं देना शुरू कर दिया था. दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर से मुखर्जी नगर की निकटता ने इसे एक प्रमुख स्थान बना दिया, और यह धीरे-धीरे एक आवासीय क्षेत्र से एक व्यावसायिक कोचिंग केंद्र में परिवर्तित हो गया.
दृष्टि IAS 1999 में केंद्र खोलने वाले शुरुआती संस्थानों में से एक था. अन्य ने भी इसका अनुसरण किया, चयनित उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने लगी, और जल्द ही मुखर्जी नगर यूपीएससी के हिंदी-माध्यम के छात्रों के लिए एक कोचिंग केंद्र के रूप में उभरा.
छत्तीसगढ़ काडर के आईएएस अधिकारी अवनीश शरण ने 2009 में अपने चयन से पहले यूपीएससी की तैयारी में कई साल यहीं बिताए.
प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद, उन्हें मुखर्जी नगर में एक ब्रोकर द्वारा एक कमरा दिखाया गया जो कि छत पर बनी हुई एक रसोई थी.
शरण ने कहा, “वह कमरा इतना छोटा था कि मेरा फोल्डिंग बेड उसमें मुश्किल से फिट होता था, और मैं अपनी सारी किताबें लकड़ी के शेल्फ में रखता था. मैं वहीं से चयनित हुआ और उसी रसोई से मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार की तैयारी की. मेरे लिए यही मुखर्जी नगर है.”
क्या है माहौल
बत्रा सिनेमा के पास एक चाय की दुकान पर युवा महिला और पुरुष अभ्यर्थी स्टूल पर बैठे हैं. एक युवा महिला अभ्यर्थी अपने दोस्त से कहती है, “यह तुम्हारी चौथी चाय है. अब तुम्हें और नहीं पीना चाहिए.” जवाब देते हुए वह जोर देकर कहता है कि उसे पूरी रात जागना है इसके लिए ईंधन की आवश्यकता है.
बत्रा सिनेमा ने 2012 में फिल्में दिखाना बंद कर दिया, लेकिन इमारत अभी भी एक मील का पत्थर है, जिसके चारों तरफ कोचिंग संस्थान, भोजनालय और स्वतंत्रता सेनानी डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 10 फुट की प्रतिमा है, जिनके नाम पर इस इलाके का नाम रखा गया है. यह मुखर्जी नगर का दिल है.
अभ्यर्थी यहां सीढ़ियों पर बैठकर चाय पीते हैं. किसी दोस्त से मिलना, स्टडी मटीरियल पर चर्चा करना, या बस आराम करना – यह सब बत्रा सिनेमा पर होता है. अगर कोई वहां बहुत ज़्यादा समय बिताता है, तो उसे चिढ़ाते हुए उसके दोस्त कहते हैं कि ‘बत्रा खोरी’ कर रहा है.
यह गेदरिंग प्वाइंट पर 24 घंटे चाय मिलती है. रात में, विक्रेता रात 8 बजे के आसपास आते हैं, जो सुबह 6 बजे तक पराठे और चाय बेचते हैं.
मुखर्जी नगर एक कैंपस बिदआउट कॉलेज है. कई मायनों में यह कुछ कैंपस से ज़्यादा सुरक्षित है. सुबह-सुबह, अभ्यर्थी अपने देर रात तक पढ़ाई करके थकान के बाद चमकदार रोशनी वाले फ़ूड स्टॉल के बाहर छोटे-छोटे स्टूल पर बैठकर बन-मस्का, वड़ा पाव और मैगी खाते देखे जा सकते हैं.
यही सुरक्षा और आज़ादी है, जिसकी 33 वर्षीय सोनिया दहिया को सबसे ज़्यादा कमी खलेगी. वह और उसके हॉस्टल के 10 अन्य अभ्यर्थी अगले कुछ हफ़्तों में बाहर निकल जाएंगे.
राज्य लोक सेवा आयोग परीक्षा की तैयारी कर रहे दहिया ने कहा, “मैं सुबह 3 बजे लाइब्रेरी में होता था और मुझे कभी भी असुरक्षित महसूस नहीं हुआ. सुबह 2 बजे चाय पीने के लिए बाहर निकलना आम बात थी. नई जगह में ऐसा सुरक्षित क्षेत्र बनने में समय लगेगा.”
लेकिन यह मुखर्जी नगर जैसी भीड़-भाड़ वाली, फलती-फूलती जगह नहीं होगी.
आईएएस अधिकारी अवनीश शरण को मुखर्जी नगर की संकरी गलियों से बाहर निकले हुए करीब 15 साल हो गए हैं, लेकिन मुखर्जी नगर उनसे कभी बाहर नहीं गया. यह उनके लिए एक रिश्तेदार की तरह है, जब भी वह दिल्ली आते हैं तो उनसे मिलने जाते हैं.
उन्होंने कहा, “जब भी मैं दिल्ली आता हूं, मुखर्जी नगर ज़रूर जाता हूं. मैं बत्रा सिनेमा देखने जाता हूं और यह मुझे मेरे पुराने दिनों की याद दिलाता है, जब मैं छात्र था और किसी भी चयनित उम्मीदवार को देखकर उत्साहित हुआ करता था.”
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