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बुधवार, 23 अप्रैल, 2025
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मेरे नाम पर नहीं: हमले के विरोध में पहलगाम में सड़कों पर उतरे लोग, जम्मू कश्मीर में बंद रहा

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श्रीनगर, 23 अप्रैल (भाषा) मेरे नाम पर नहीं- बुधवार को कश्मीर से यही स्पष्ट संदेश आया, जब लोग अपने गुस्से का इजहार करने और पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा करने के लिए शहरों तथा गांवों में सड़कों पर उतर आए। इस हमले में 26 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे।

श्रीनगर शहर और कश्मीर के अन्य हिस्सों में बंद का माहौल रहा, जो हाल के दिनों में पहली बार हुआ है। अगस्त 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने से पहले यह आम बात था, लेकिन करीब छह साल में कश्मीर में यह पहला बंद है।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने श्रीनगर में विरोध मार्च के दौरान देश के लोगों से माफी मांगी और कहा कि कश्मीरी इस घटना के लिए शर्मिंदा है। वहीं, सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी हमले के विरोध में लाल चौक तक मार्च निकाला।

सभी वर्गों के लोगों ने पर्यटकों पर हमले की निंदा की और कहा कि आतंकवादी घाटी की अर्थव्यवस्था की नींव पर प्रहार कर रहे हैं।

श्रीनगर शहर के निवासी हाजी बशीर अहमद डार ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ऐसा नहीं होना चाहिए — न कश्मीर के नाम पर और न ही इस्लाम के नाम पर। इस्लामी शिक्षाओं में मानव जीवन को इतना महत्व दिया गया है कि एक निर्दोष व्यक्ति की जान लेना पूरी मानवता की हत्या करने के समान है।’’

दक्षिण कश्मीर के जिलों में भी विरोध प्रदर्शन हुए, जहां 2016 में हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए थे।

कुलगाम में एक विरोध प्रदर्शन में शामिल फल उत्पादक जी एम बांडे ने कहा कि सरकार को आतंकवाद के खतरे को खत्म करने के लिए कदम उठाने चाहिए ताकि पहलगाम में बैसरन हमले जैसी घटनाएं दोबारा न हों।

बांडे ने कहा, ‘‘आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाए जाने चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों… कश्मीर के लोग हमेशा से आतंकवाद के खिलाफ रहे हैं। हालांकि, कश्मीरी समुदाय को बदनाम करने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की साजिशें रची जा रही हैं। ऐसी हरकतों से स्थानीय युवाओं की आजीविका प्रभावित होती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘आतंकवाद को खत्म करने के लिए सरकार जो भी कदम उठाएगी, हम उसके साथ हैं।’’

कुलगाम के व्यापारी मोहम्मद इकबाल ने कहा कि हमले का उद्देश्य कश्मीर की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना है।

उन्होंने कहा, ‘‘कश्मीर घूमने आए हमारे निर्दोष भाई-बहनों को निशाना बनाया गया। हर कश्मीरी इस घटना से दुखी है, जो नहीं होनी चाहिए थी। हमारा व्यापार पर्यटन से जुड़ा है और अगर पर्यटकों की संख्या कम हुई तो इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। पिछले कुछ साल से स्थानीय व्यापार मंदी की स्थिति में है।’’

उत्तरी कश्मीर में कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा कस्बे में प्रदर्शनकारियों में सामाजिक कार्यकर्ता तौसीफ अहमद वार भी शामिल थे।

उन्होंने कहा, ‘‘हम यहां दुनिया को यह संदेश देने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं कि कश्मीरी आतंकवाद के साथ नहीं हैं। हम पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले की निंदा करते हैं।’’

श्रीनगर से लोकसभा सदस्य आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने कहा कि हमले में शामिल अपराधी न तो इस्लाम के अनुयायी हैं और न ही जम्मू-कश्मीर के लोगों के शुभचिंतक हैं।

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ने कहा, ‘‘जिसने भी यह किया, वे न तो हमारे धर्म के हैं और न ही जम्मू-कश्मीर के लोगों के। जम्मू-कश्मीर के लोग कह रहे हैं कि हमारे नाम पर या हमारे धर्म के नाम पर इस तरह की आतंकी वारदातें नहीं होनी चाहिए। हमें उम्मीद है कि अपराधियों को जल्द ही न्याय के कठघरे में लाया जाएगा।’’

अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन की कई घटनाओं के बाद भी जम्मू के रामबन जिले के निवासियों ने पूर्ण बंद रखा और आतंकवादी हमले की निंदा करने के लिए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया।

रणनीतिक जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित इस कस्बे के इतिहास में संभवतः पहली बार मुस्लिम और हिंदू समुदाय द्वारा संयुक्त विरोध प्रदर्शन किया गया। इसका नेतृत्व इस्लामी विद्वानों ने किया, जिन्होंने पिछले 35 वर्षों से इस क्षेत्र में व्याप्त खतरे को मिटाने के लिए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की मांग की।

बौली बाजार की जामिया मस्जिद के इमाम गुल मोहम्मद फारूकी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हम पहले से ही प्रकृति के प्रकोप से जूझ रहे हैं तथा अब इस मूर्खतापूर्ण हमले ने हमारे घाव को और गहरा कर दिया है। हम इस कृत्य की निंदा करते हैं जो इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है।’’

प्रदर्शनकारियों द्वारा पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ नारे लगाए जाने के बीच फारूकी ने कहा, ‘‘यह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं है, बल्कि हमारा सामूहिक शोक है। हम शांति के लिए खड़े हैं, भले ही चारों ओर सबकुछ टूटा हुआ महसूस हो रहा हो।’’

भाषा नेत्रपाल माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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