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Sunday, 6 October, 2024
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पसंद का आदेश नहीं होने का यह मतलब नहीं कि यह अतार्किक है : शीर्ष अदालत

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नयी दिल्ली, 28 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि प्रत्येक आदेश में कुछ न कुछ तर्क होता है और महज अपनी पसंद का नहीं होने का मतलब यह नहीं होता कि वह आदेश ‘अतार्किक’ है।

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब एक याचिकाकर्ता ने न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति ए. एस. ओका की पीठ से अनुरोध किया कि उसकी याचिका की सुनवाई किसी अन्य पीठ द्वारा की जाए, क्योंकि उसकी पुरानी याचिका पर ‘तार्किक आदेश’ पारित नहीं किया गया था।

पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि शायद वह (याचिकाकर्ता) ‘गलत अवधारणा’ के शिकार हैं। पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘महज इसलिए कि आदेश आपकी पसंद का नहीं था, इसका यह मतलब नहीं होता कि यह ‘अतार्किक’ है। हर आदेश कुछ तर्क के आधार पर दिया जाता है।’’

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता का आग्रह अस्वीकार करते हुए कहा कि ऐसा कोई उचित कारण सामने नहीं लाया गया है कि उनके अनुरोध पर क्यों विचार किया जाए।

न्यायालय अपने पूर्व के आदेशों पर प्रतिवादियों द्वारा अमल नहीं किये जाने को लेकर उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्रवाई करने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

याचिकाकर्ता ने दलील दी, ‘‘मैं अपनी इच्छा के अनुरूप आदेश नहीं चाहता हूं। लेकिन मेरी इच्छा है कि तार्किक आदेश हो।’’ याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने पहले भी याचिकाएं दायर की थीं, जिन पर आदेश पारित किये गये। लेकिन उन आदेशों में तार्किक कारण नहीं दिये गये थे।

इसके बाद न्यायालय ने अपने एक आदेश का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘आप जो कह रहे हैं वह गलत है, फैसला 20 पन्नों में है और आप कहते हैं कि यह बगैर तर्कशक्ति का है।’’

न्यायालय ने कहा कि उसे इस याचिका को सुनने का कोई कारण नजर नहीं आता। इसके साथ ही इसने याचिका खारिज कर दी।

भाषा सुरेश अनूप

अनूप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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