नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि छोटे नर्सिंग होम के डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मियों ने भी हजारों मरीजों को महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान कोविड-19 के खिलाफ इलाज मुहैया कराया है तथा अनुग्रह राशि के लिए उनके तथा सरकार द्वारा चिह्नित किए गए अस्पतालों में कार्यरत अन्य चिकित्साकर्मियों के बीच भेद करना न्यायोचित नहीं है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि हो सकता है कि कुछ नर्सिंग होम को उनकी क्षमता के कारण कोविड उपचार के लिए चिह्नित नहीं किया गया हो, लेकिन इससे यह तथ्य दूर नहीं हो जाता कि ऐसे नर्सिंग होम में काम करने वाले डॉक्टर और पैरामेडिकल कर्मी भी खुद के कोविड पीड़ित होने तथा इससे मौत होने के जोखिम का सामना कर रहे थे।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा, “यह एक सर्वविदित तथ्य है कि पहली और दूसरी लहरों के दौरान महामारी के चरम पर, छोटे नर्सिंग होम भी दिल्ली के हजारों निवासियों को कोविड के खिलाफ उपचार प्रदान कर रहे थे और यदि उनकी संख्या को एक साथ रखा जाए, तो उनकी संख्या सरकारी अस्पतालों और सरकार द्वारा कोविड उपचार के लिए चिह्नित किए गए अस्पतालों में उपलब्ध बिस्तरों की संख्या से अधिक हो सकती है।”
उच्च न्यायालय जून 2020 में महामारी की पहली लहर के दौरान एक डॉक्टर की मौत से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था। डॉक्टर हरीश कुमार जीटीबी नगर के न्यू लाइफ अस्पताल में सेवारत थे और कोविड ड्यूटी पर थे। याचिका डॉक्टर की पत्नी ने दायर की थी।
अदालत द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या याचिकाकर्ता पत्नी ने सेवा के दौरान कोविड से मरने वाले अग्रिम पंक्ति के कर्मियों/ डॉक्टरों के परिवारों के लिए दिल्ली सरकार घोषित अनुग्रह राशि के वास्ते आवेदन किया है और क्या उसे राशि मिली है, महिला ने कहा कि उसने आवेदन किया था, लेकिन अनुग्रह राशि नहीं मिली है।
दिल्ली सरकार के वकील गौतम नारायण ने कहा कि वर्तमान में स्थिति यह है कि दिल्ली सरकार का निर्णय ऐसे मामलों में केवल सरकारी अस्पतालों या उन अन्य अस्पतालों में सेवारत डॉक्टरों और अन्य पैरामेडिकल कर्मचारियों के संबंध में अनुग्रह राशि प्रदान करने का प्रावधान करता है जिन्हें कोविड रोगियों के उपचार के लिए चिह्नित किया था।
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के दिवंगत पति 50 से कम बिस्तर वाले नर्सिंग होम में सेवा दे रहे थे, जिसे दिल्ली सरकार ने चिह्नित नहीं किया था।
वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता के पति की मौत यद्यपि ड्यूटी के दौरान कोविड से हुई, लेकिन यह मामला वर्तमान में मंत्रिमंडल के फैसले के दायरे में नहीं आता है।
अदालत ने कहा कि छोटे नर्सिंग होम के डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मियों ने भी हजारों मरीजों को महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान कोविड-19 के खिलाफ इलाज मुहैया कराया है और अनुग्रह राशि के लिए उनके तथा सरकार द्वारा चिह्नित अस्पतालों में काम करने वाले अन्य चिकित्साकर्मियों के बीच भेद करना न्यायोचित नहीं है।
इस पर दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि वह न केवल मंत्रिमंडल के फैसले को रिकॉर्ड में रखने के लिए एक हलफनामा दाखिल करेंगे, बल्कि याचिकाकर्ता के पति के मामले में अनुग्रह राशि देने के मामले पर पुनर्विचार भी करेंगे।
अदालत ने कहा कि हलफनामा चार सप्ताह के भीतर दायर किया जाना चाहिए। इस मामले में अब 11 मार्च को आगे सुनवाई होगी।
भाषा
नेत्रपाल अनूप
अनूप
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.