तुपुल/इंफाल: मणिपुर के पहाड़ी जिले नोनी में निर्माणाधीन तुपुल रेलवे स्टेशन के पास पिछले हफ्ते एक विनाशकारी भूस्खलन ने 111 किलोमीटर की महत्वाकांक्षी इम्फाल-जिरीबाम रेलवे परियोजना पर सवाल खड़े कर दिए हैं. ये परियोजना ट्रांस-एशियाई रेलवे नेटवर्क का हिस्सा है जिसके जरिये पूरे महाद्वीप को जोड़ा जाना है.
रविवार तक बचाव दल ने भूस्खलन स्थल से 42 शव बरामद किए थे, जबकि 20 अन्य लापता हैं.
पीड़ितों में प्रादेशिक सैन्य शिविर के कई कर्मी शामिल हैं, जिसे जिरीबाम जिले से मणिपुर की राजधानी इम्फाल तक बनाई जा रही रेलवे लाइन की सुरक्षा के लिए स्थापित किया गया था. पिछले हफ्ते जब दिप्रिंट ने साइट का दौरा किया, तो शिविर में बची-खुची चीजों में बस एक टिन की छत नजर आई जो कीचड़ की परतों के नीचे धंसी थी. यह नजारा पूरा क्षेत्र हरे-भरे वातावरण से एकदम उलट था.
पूर्वोत्तर केंद्रित मीडिया आउटलेट ईस्टमोजो को दिए एक इंटरव्यू में मणिपुर के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता एन. बीरेन सिंह ने कहा कि त्रासदी ने रेलवे परियोजना पर ‘’फिर से विचार’ की जरूरत को उजागर किया है.
उन्होंने कहा, ‘मणिपुर की पहाड़ी मिट्टी बहुत नरम है, रेलवे के लोगों के पास विशेषज्ञता है, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी घटना हो गई और उन्हें इस पर फिर से सोचने की जरूरत है….इससे दिसंबर 2023 तक इंफाल तक निर्माण पूरा करने के लक्ष्य में देरी होगी.’
इस बीच, साइट से कुछ किलोमीटर दूर स्थित मखुम गांव के निवासियों ने आरोप लगाया है कि निर्माण शुरू होने से पहले उनसे कोई इनपुट ही नहीं लिया गया था.
मखुम ग्राम परिषद के सचिव जियांदाई गंगमेई ने दिप्रिंट से बातचीत में दावा किया, ‘यहां तक कि पर्यावरण प्रभाव आकलन के बाद भी रेलवे के अधिकारी हमसे कभी नहीं मिले, कोई सार्वजनिक परामर्श नहीं किया गया.’
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने जंगल काट दिए—जब हम उन्हें इसे फिर से लगाने को कहते हैं तो वो ऐसा नहीं करते. उन्होंने कभी हमारी सलाह नहीं ली कि सड़कें कहां बनाएं, पानी कैसे निकालें, उन्होंने दीवार भी नहीं बनाई (एक सुरक्षात्मक उपाय के रूप में).’
2006 की पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना के मुताबिक, पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में चार चरण शामिल हैं—पड़ताल, संभावनाएं तलाशना, सार्वजनिक परामर्श और मूल्यांकन.
स्थानीय निवासियों के आरोपों के बारे में पूछने पर नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर रेलवे की मुख्य जनसंपर्क अधिकारी गुनीत कौर ने कहा, ‘भूमि अधिग्रहण राज्य मशीनरी और ग्रामीणों के साथ परामर्श के बाद ही किया गया था.’
परियोजना के मुख्य अभियंता संदीप शर्मा ने इस बारे में और अधिक जानकारी दी.
उन्होंने बताया, ‘हमने (ग्रामीणों से) जमीन खरीदी, और इस क्रम में…यह (परामर्श) हमेशा किया जाता है. लेकिन इसका दायरा जमीन के उसी हिस्से तक ही सीमित होगा जहां स्टेशन बनाया जा रहा है.
कुछ स्थानीय निवासी अब मांग कर रहे हैं कि उनके साथ विस्तृत परामर्श किए जाने तक परियोजना को रोक दिया जाना चाहिए.
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‘उन्होंने पूरी तरह हमारी अनदेखी की’
इंफाल और जिरीबाम के बीच ब्रॉड-गेज रेलवे लाइन का निर्माण पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की तरफ से दूरवर्ती और घुमावदार क्षेत्र में कनेक्टिविटी में सुधार के लिए किया जा रहा है. 2013 में शुरू हुई 14,000 करोड़ रुपये की इस परियोजना के तहत 46 सुरंगों और 150 से अधिक पुलों का निर्माण किया जाना है.
मुख्य अभियंता संदीप शर्मा के मुताबिक, यह परियोजना तीन चरणों में चल रही है—पहला जिरीबाम से वांगईचुंगपाओ तक, दूसरा वांगईचुंगपाओ से खोंगसांग तक और तीसरा खोंगसांग से तुपुल तक.
परियोजना के तीसरे चरण में नोनी ब्रिज शामिल है, जहां दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल बनने की उम्मीद है.
प्रस्तावित तुपुल रेलवे स्टेशन—जो भूस्खलन की चपेट में आया— जिले में पहाड़ियों के बीच बहती इजेई नदी के किनारे से काफी पास बनाया जा रहा है.
पहाड़ियों के बीच घुमावदार सड़क के माध्यम से मखुम गांव इस साइट से जुड़ा है.
यहां के निवासियों का मानना है कि यदि निर्माण से पहले उनसे सलाह ली जाती तो भूस्खलन को रोका जा सकता था.
गांव के निवासी गेलेंगपो गंगमेई ने दिप्रिंट को बताया, ‘स्थानीय निवासियों को यहां के पूरे वातावरण, (प्राकृतिक) जल निकासी प्रणाली के बारे में पूरी जानकारी है, नदी कैसे बहती है, कहां मिट्टी नरम है और कहां चट्टानें हैं. लेकिन उन्होंने हमें पूरी तरह नज़रअंदाज कर दिया है.’
ग्राम परिषद सचिव जियांदाई गंगमेई की तरह उन्होंने क्षेत्र के लिए रेलवे के महत्व पर जोर दिया, लेकिन साथ ही कहा कि परियोजना सार्वजनिक परामर्श के बिना जारी नहीं रखी जानी चाहिए.
गेलेंगपो ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि रेलवे यहां आए, यह विकास संबंधी गतिविधि है और हमें नौकरियों के लिए भी इस कनेक्टिविटी की जरूरत है. लेकिन, इस पर फिर से काम शुरू करने से पहले उन्हें स्थानीय निवासियों के साथ एक बैठक करनी चाहिए. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो हमें काम बंद कराना पड़ेगा.’
इस बीच, शर्मा ने बताया कि ग्रामीणों से खरीदी गई ‘भूमि के हिस्से’ के लिए सार्वजनिक परामर्श किया गया था, लेकिन उससे आगे ऐसा नहीं किया गया.
उन्होंने कहा, ‘पहाड़ी रेलवे प्वाइंट से 600 मीटर आगे तक फैली हुई है. पूरे इलाके में इतने सारे पहाड़ होंगे और हजारों पहाड़ ऐसे होंगे जो यहां संरेखण को प्रभावित कर सकते हैं. जाहिर तौर पर हमने इस तरह का विश्लेषण, जो मुझसे या मेरी प्रोजेक्ट लाइन से एक या दो किलोमीटर दूर है, नहीं किया है.’ साथ ही जोड़ा कि पहाड़ियों को काटने का सारा काम ‘कमतर विश्लेषण’ और सुरक्षात्मक उपायों पर ‘ध्यान केंद्रित’ करने के साथ किया गया है.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक नोनी जिला प्रशासन ने रेलवे निर्माण के दौरान खुदाई से निकलने वाली मिट्टी को इजेई नदी में डंप किए जाने को लेकर 2017-2018 में भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण (जीएसआई) को लिखा था.
जीएसआई के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिला प्रशासन ने विभाग के प्रमुख को पत्र लिखा था, और इस पर उन्होंने दो अधिकारियों को यह पता लगाने के लिए भेजा था कि ‘वास्तव में क्या हुआ है.’
अधिकारी ने बताया, ‘जहां भूस्खलन हुआ है, वहां उन्होंने रेलवे ट्रैक के लिए पहाड़ियों को बीच से काट दिया था और नजदीक ही डंपिंग की जा रही थी. खुदाई से निकली मिट्टी की डंपिंग के कारण बने ढेर पर ही लोगों—रेलवे अधिकारी, मजदूर, और (सुरक्षाकर्मी)—को बसा दिया गया था.’
शर्मा के मुताबिक, हालांकि, जीएसआई अधिकारियों को मुख्यत: इंफाल में बनाई जा रही सुरंग की पड़ताल के लिए बुलाया गया था और उन्होंने तुपुल परियोजना की मामूली समीक्षा ही की थी. उन्होंने कहा, ‘जोखिम संबंधी मैपिंग की कवायद जीएसआई के अधिकारी नहीं करते हैं, बल्कि इसके लिए अलग विशेषज्ञता की जरूरत होती है.’
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संभवत: भारी बारिश, वनों की कटाई ने जोखिम बढ़ाया
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हो सकता है कि क्षेत्र में तेजी से वनों की कटाई भी भूस्खलन की एक बड़ी वजह हो.
मणिपुर में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय के संयुक्त निदेशक डॉ. ब्रजकुमार सिंह ने कहा, ‘रेलवे कनेक्टिविटी के लिए जंगल की काफी तेजी से कटाई हो रही थी. इसके अलावा भारी वर्षा का भी प्रभाव पड़ा है.’
उनके मुताबिक, तामेंगलोंग और नोनी जिलों में मई में एक दिन में 300 मिलीमीटर तक बारिश हुई थी.
उन्होंने कहा, ‘हमारा आकलन कहता है कि भारी वर्षा और तेजी से वनों की कटाई के कारण मिट्टी की स्थिरता प्रभावित हुई, खासकर इस इलाके में पहाड़ों से ज्यादा पुराने न होने वजह से भी काफी प्रभाव पड़ा है.’
मणिपुर के पर्यावरणविद् राजेश सलाम ने भी इसी तरह की चिंता जाहिर की.
सलाम ने बताया, ‘मैंने तीन-चार साल पहले साइट का दौरा किया था. एक आम आदमी के नजरिए से देखने पर भी ऐसा लग रहा था कि उन्होंने कोई सुरक्षात्मक उपाय नहीं किया है. मैंने मुख्य अभियंता से यह भी पूछा था कि भारी वर्षा को देखते हुए पानी के प्रबंधन की क्या योजना बना रहे हैं.’
इस बारे में पूछे जाने पर शर्मा ने कहा कि बारिश के अतिरिक्त पानी के उचित तरीके से प्रबंधन का इंतजाम किया गया है.
शर्मा ने कहा, ‘अगर हम (पानी को) रोकने की कोशिश करेंगे तो यह समस्या उत्पन्न करेगा…हमारे पास एक विशेष सुरक्षा प्रणाली (ट्रफ सहित) है जो अतिरिक्त पानी को आराम से नदी तक पहुंचाती है और हम हर पुल के साथ इस तरह का इंतजाम करते हैं.’
मुख्य अभियंता ने कहा कि जनवरी 2016 में आए भूकंप ने क्षेत्र को और भी अधिक संवेदनशील बना दिया होगा.
शर्मा ने कहा, ‘2016 में तुपुल से लगभग 5 किमी दूर एक भीषण भूकंप आया था. हो सकता है कि इसने तुपुल में काफी कंपन पैदा किया हो और झूम (स्लैश-एंड-बर्न) की खेती और ऊपरी मिट्टी पर वनों की कटाई के कारण पहाड़ियों में पानी रिसना शुरू हो गया…नतीजन मिट्टी एकदम नरम हो जाने के ही यह संभवत: मक्खन की तरह कट गई हो.’
शर्मा के मुताबिक, फिलहाल ‘आगे की राह’ एक तीन स्तरीय प्रक्रिया होगी.
उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले शवों को बरामद किया जाना है, फिर नदी को खोदना है और फिर इसके आलोक में पूरी परियोजना की समीक्षा करनी होगी.’
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