लखनऊ, 17 फरवरी (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने शुक्रवार को कहा कि सरकारी कर्मचारियों का गैर नियमित सेवाकाल भी पेंशन प्रदान करते समय उनके कुल कार्यकाल में जोड़ा जायेगा। हालांकि पीठ ने याचिकर्ताओं को पिछले तीन साल की पेंशन के ही फायदे का हकदार करार दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकल पीठ ने उत्तर प्रदेश पेंशन हेतु अर्हकारी सेवा तथा विधिमान्यकरण अधिनियम 2021 की धारा दो की उच्चतम न्यायालय द्वारा 2019 में प्रेम सिंह के मामले में दिये गये निर्णय की व्याख्या करते हुए पारित किया।
न्यायमूर्ति चौधरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश पेंशन हेतु अर्हकारी सेवा तथा विधिमान्यकरण अधिनियम 2021 की धारा 2 में पेंशन की योग्यता का तात्पर्य है कि कर्मचारी ने अपनी सेवाएं दीं हैं, फिर चाहे सेवायें स्थायी है या अस्थायी।
अदालत ने कार्य प्रभारी कर्मचारी, दैनिक मजदूर, तदर्थ कर्मचारी अथवा सीजनल संग्रह अमीनों की ओर से अलग-अलग दाखिल करीब 51 रिट याचिकाओं को एक साथ मंजूर करते हुए यह फैसला सुनाया है।
याचिकाओं में सरकार के उन आदेशों को चुनौती दी गयी थी, जिनमें उसने पेंशन प्रदान करने के बावत निर्णय लेते समय याचिकर्ताओं की गैरनियमित सेवाओं को उनकी कुल सेवा में न जोड़ते हुए उनको पेंशन के येग्य मानने से इंकार कर दिया था।
अपने फैसले में पीठ ने उच्चतम न्यायालय के प्रेम सिंह के मामले में दिये गये फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नियमित कर्मचारियें की भांति ही सालों तक बराबर कार्य करते हुए भी गैरनियमित सेवाकाल के सरकारी कर्मचारियों के कुल सेवाकाल में न जोड़ना विभेदकारी है।
भाषा सं आनन्द रंजन
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