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Sunday, 3 November, 2024
होमदेश'नामांकन हो सकते हैं ख़ारिज': CUET को अकेला मानदंड न मानने वाले सेंट स्टीफंस को DU की चेतावनी

‘नामांकन हो सकते हैं ख़ारिज’: CUET को अकेला मानदंड न मानने वाले सेंट स्टीफंस को DU की चेतावनी

अप्रैल 2022, जब इस जाने-माने कॉलेज ने सत्र 2022-23 के लिए अपना प्रॉस्पेक्टस जारी किया था, तभी से डीयू और सेंट स्टीफंस प्रवेश प्रक्रिया को लेकर एक दूसरे के आमने-सामने हैं.

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नई दिल्ली: सोमवार को, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने अल्पसंख्यक संस्थानों सहित सभी कॉलेजों में कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) के आधार पर ही स्नातक स्तर पर प्रवेश की अनुमति देने के अपने रुख पर अड़े रहते हुए सेंट स्टीफंस कॉलेज को अपनी प्रवेश प्रक्रिया वापस लेने और ‘अपनी प्रवेश नीति का तालमेल विश्वविद्यालय की प्रवेश नीति के साथ बिठाने के लिए कहा है.

विश्वविद्यालय ने इस बात पर जोर देकर कहा कि अगर उसके दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया तो वह नामांकनो (छात्रों के प्रवेश) को रद्द कर देगा.

डीयू और उसका एक प्रतिष्ठित कॉलेज सेंट स्टीफंस इस साल अप्रैल से ही प्रवेश प्रक्रिया को लेकर एक दूसरे के आमने-सामने हैं, जब इस अल्पसंख्यक संस्थान (जिसमें ईसाइयों के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित हैं) ने सत्र 2022-23 सत्र के लिए अपना प्रॉस्पेक्टस (प्रवेश विवरणिका) जारी किया था. उसके अनुसार सीयूईटी स्कोर को सिर्फ 85 फीसदी वेटेज (अधिभार) दिया जाना है. इसके अलावा सभी श्रेणियों के उम्मीदवारों के शारीरिक साक्षात्कार हेतु 15 प्रतिशत का वेटेज प्रस्तावित है.

बता दें कि सीयूईटी की शुरुआत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा सत्र 2022-2023 से सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए की गई है. इस परीक्षा का उद्देश्य एक सामान्य प्रवेश परीक्षा के माध्यम से सभी छात्रों को समान अवसर देना है.

इस साल मार्च में सीयूईटी को अपनाते हुए डीयू ने अपने सभी घटक कॉलेजों को अपने यहां नामांकन के लिए सिंगल मोड (एकमात्र तरीके) के रूप में इसी सामान्य परीक्षा का उपयोग करने के लिए कहा था. नई प्रक्रिया में कॉलेजों द्वारा निजी तौर पर लिए गए साक्षात्कार या किसी तरह के व्यक्तिगत मूल्यांकन के लिए कोई जगह नहीं है.

विश्वविद्यालय ने सेंट स्टीफंस को लिखे अपने नवीनतम पत्र में भी यही बात दुहराई है कि सीयूईटी एक मानकीकृत परीक्षा है जो भेदभाव की किसी भी गुंजाइश को समाप्त करती है.

डीयू ने सोमवार को भेजे गए अपने पत्र में लिखा है, ‘विश्वविद्यालय के प्रवेश मानदंडों और नीतियों का उल्लंघन करते हुए दिए गए किसी भी प्रवेश को मान्यता नहीं दी जाएगी और इसे शुरुआत से ही क़ानूनन अमान्‍य (null and void ab initio) माना जाएगा. यह उम्मीद की जाती है कि कॉलेज अपनी प्रवेश नीति को विश्वविद्यालय के साथ अलाइन करे.’

इससे पहले विश्वविद्यालय ने 24 मई को एक पत्र लिखकर इस कॉलेज से अपने प्रॉस्पेक्टस को वापस लेने को कहा था.

डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि यूनिवर्सिटी ने ‘24 मई को सेंट स्टीफंस कॉलेज द्वारा हमें दिये गए जवाब पर विचार किया है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने कानूनी विशेषज्ञों और शिक्षा विशेषज्ञों से परामर्श किया है और अपने रुख को स्पष्ट करते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी है जो अदालत के विभिन्न फैसलों द्वारा समर्थित है. हमें उम्मीद है कि कॉलेज विश्वविद्यालय के निर्देशों का पालन करेगा.‘

इस बीच, सेंट स्टीफंस के प्रिंसिपल जॉन वर्गीज ने कहा कि, ‘फिलहाल हम अपनी वेबसाइट पर डाले गए प्रॉस्पेक्टस का ही पालन करने जा रहे हैं.’ उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर हमारी प्रवेश प्रक्रिया में कोई बदलाव किया जाता है, तो उसे इसी अनुसार वेबसाइट पर भी अपडेट कर दिया जाएगा.’


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विवाद की जड़

अपने द्वारा लिखे गए पत्र में डीयू ने कहा है कि सेंट स्टीफंस भी इस बात को मानेगा कि एक मानकीकृत, सांख्यिकीय रूप से सुदृढ़ प्रक्रिया, यानी, सीयूईटी-यूजी प्रवेश प्रक्रिया, के माध्यम से पहले से ही प्राप्त किए गए स्कोर के साथ साक्षात्कार के आधार पर अंक जोड़ना, व्यक्तिपरकता (सब्जेक्टिविटी) का परिचायक होगा और अंततः भेदभाव का कारण बनेगा, जो वांछनीय नहीं है.’

सेंट स्टीफंस कॉलेज, जिसकी स्थापना डीयू से पहले हुई थी,  ने अब तक अपने स्वयं के प्रवेश नियमों का ही पालन किया है, जिसमें एक साक्षात्कार वाला घटक भी शामिल है.

जब कॉलेज ने सत्र 2022-23 के लिए स्नातक स्तर पर प्रवेश के लिए अपना प्रॉस्पेक्टस जारी किया था, तो उसने निर्दिष्ट किया था कि राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित सीयूईटी का सभी श्रेणियों के लिए केवल 85 प्रतिशत का वेटेज होगा. कॉलेज ने दावा किया था कि वह अपने अल्पसंख्यक दर्जे के कारण ऐसा कर सकता है.

अपने 24 मई के पत्र में, डीयू ने सेंट स्टीफंस को साक्षात्कार आयोजित करने की अनुमति देने और आरक्षित श्रेणी के छात्रों (50 प्रतिशत) के लिए इस प्रक्रिया को 15 प्रतिशत वेटेज देने पर अपनी सहमति व्यक्त की थी, लेकिन इसने बाकी श्रेणियों के लिए इसे नहीं माना था.

इसके जवाब में कॉलेज ने गुरुवार को डीयू को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था.

साल 1980 में, इस कॉलेज के अल्पसंख्यक दर्जे, उसके व्यक्तिगत साक्षात्कार की प्रकिया और क्या इसे ईसाइयों के लिए अलग सीटें निर्धारित करने की अनुमति है जैसे मुद्दों पर सवाल उठाए गए थे और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया गया था.

साल 1992 में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए एक फैसले में कहा गया था कि ‘वह साक्षात्कार या चयन प्रक्रिया में किसी भी तरह की मनमानी या वैज्ञानिक आधार की कमी नहीं देखती है और ऐसा लगता है कि कॉलेज के पास अपने स्वयं के प्रवेश कार्यक्रम का पालन करने के लिए प्रभावशाली कारण हैं.’

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बारे में डीयू ने अपने सोमवार को लिखे गए पत्र में कहा है : ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1992 में प्रवेश प्रक्रिया को बरकरार रखते हुए पारित निर्णय ‘विभिन्न मानकों वाले विभिन्न संस्थानों’ की अहर्ता परीक्षाओं (क्वालीफाइंग एग्जाम) में प्राप्त अंकों के आधार पर आवेदकों को प्रवेश देने के संदर्भ में था. सीयूईटी के संबंध में सारे घटनाक्रम को देखते हुए, बदले हुए तथ्यों और हालात (परिस्थितियों) में इस फैसले की कोई प्रासंगिकता नहीं है.’


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