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मंगलवार, 27 मई, 2025
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भारत में लू लगने और गर्मी से मौतों पर कोई विश्वसनीय डेटा उपलब्ध नहीं: विशेषज्ञ

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नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) लू लगने और गर्मी से होने वाली मौतों पर कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है, क्योंकि देशभर में डेटा-रिपोर्टिंग प्रणाली समान रूप से सशक्त नहीं है। विशेषज्ञों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।

अनुसंधान समूह ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ द्वारा आयोजित ‘इंडिया हीट समिट 2025’ में अत्यधिक गर्मी के प्रभाव के बारे में बात करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, ‘‘हम जलवायु संबंधी खतरनाक स्थितियों या गर्मी के कारण होने वाली सभी मौतों की पूरी तरह से गणना नहीं कर पाते हैं, क्योंकि देशभर में रिपोर्टिंग प्रणाली समान रूप से सशक्त नहीं है।’’

स्वामीनाथन ने कहा कि मृत्यु से जुड़ी रिपोर्टिंग प्रणाली को मजबूत किए जाने की आवश्यकता है, ‘‘क्योंकि यही सरकार और नीतिनिर्माताओं के लिए यह समझने का सबसे विश्वसनीय स्रोत है कि लोग किन कारणों से मर रहे हैं। लोग किस वजह से मरते हैं- नीति निर्माण उसी के आधार पर होना चाहिए और यह कारण समय के साथ बदलते रहते हैं।’’

उन्होंने इससे पहले ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा था कि भारत में सटीक आंकड़ों के अभाव के कारण गर्मी से संबंधित मौतों की गिनती कम होने की ” संभावना अधिक” है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की पूर्व प्रमुख स्वामीनाथन ने कहा कि आंकड़े अभी समेकित नहीं हैं और एक पर्यावरणीय स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना का आह्वान किया, जहां स्वास्थ्य, पर्यावरण और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय एकसाथ आएं, आंकड़े साझा करें और सूचना को कार्रवाई में बदलें।

स्वामीनाथन कहा, ‘‘हमें केवल मृत्यु दर पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए…. (हमें यह पता लगाना चाहिए) कि स्वास्थ्य और उत्पादकता पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। अंततः, स्वास्थ्य ही आपकी उत्पादकता और जीडीपी पर प्रभाव डालता है।’

इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ह्यूमन सेटलमेंट्स शोधकर्ता चांदनी सिंह ने कहा कि भारत में गर्मी से होने वाली मौतों को दर्ज करने में चुनौतियां हैं और संदर्भ के लिए कोई अच्छा डेटासेट भी उपलब्ध नहीं है।

स्वास्थ्य मंत्रालय का राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) 2015 से एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) के तहत लू लगने और गर्मी से मौत के आंकड़े इकट्ठा कर रहा है और जानकारी उपलब्ध करा रहा है।

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) भी मीडिया की खबरों से गर्मी के चलते होने वाली मौतों से संबंधित डेटा रखता है।

इसके अलावा, केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में दिये गए उत्तरों में गर्मी से मौत पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े का हवाला दिया है।

सभी तीन डेटासेट गर्मी से संबंधित मौतों के अलग-अलग आंकड़े बताते हैं।

उदाहरण के लिए, एनसीडीसी के अनुसार, 2015 और 2019 के बीच कुल 3,775 गर्मी से संबंधित मौतें दर्ज की गईं। इसी अवधि के दौरान, एनसीआरबी ने 6,537 गर्मी से संबंधित मौतें दर्ज कीं।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य कृष्ण वत्स ने कहा कि देश में ‘बेहतर तौर पर स्थापित शैक्षणिक या तकनीकी केंद्र का अभाव है…. ऐसे लोगों के समूह का अभाव है जो जिलों को गर्मी से निपटने की योजना तैयार करने में मदद कर सकें।’

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास समस्त ज्ञान और विशेषज्ञता के प्रसार के लिए कोई निर्दिष्ट, उपयुक्त उत्कृष्टता केंद्र नहीं है।’

वत्स ने कहा कि यदि गर्मी से निपटने की कार्ययोजना तैयार करने का काम केवल अधिकारियों पर छोड़ दिया जाए तो यह बहुत सफल नहीं होगी और इसके लिए अधिक सहायता और तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।

भाषा

अमित पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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