इंदौर, 25 जनवरी (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों के आपसी विवाद सुलझाने के लिए कोई काजी एक मध्यस्थ की भूमिका तो निभा सकता है लेकिन वह किसी मसले में अदालत की तरह न्याय का निर्णय करके ‘डिक्री’ सरीखा आदेश पारित नहीं कर सकता।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विवेक रुसिया और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार वर्मा ने शहर के एक व्यक्ति की दायर जनहित याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। मुस्लिम समुदाय के इस व्यक्ति ने वर्ष 2018 में याचिका दायर करके इंदौर के दारुल-कजा छावनी के मुख्य काजी के आदेश को कानूनी चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय की शरण ली थी।
याचिका में इस व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि मुख्य काजी ने उसकी पत्नी की ‘‘खुला’’ (किसी मुस्लिम महिला द्वारा अपने शौहर से तलाक मांगे जाने की इस्लामी प्रक्रिया) के लिए दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए तलाक का फरमान सुना दिया था।
युगल पीठ ने सभी संबद्ध पक्षों की दलीलों पर गौर करने के बाद अपने फैसले में कहा,‘‘अगर कोई काजी अपने समुदाय के लोगों के आपसी विवाद हल करने के लिए एक मध्यस्थ की भूमिका निभाता है, तो यह स्वीकृति योग्य होगा। लेकिन वह (काजी) किसी अदालत की तरह ऐसे विवादों में न्याय का निर्णय नहीं कर सकता और अदालत की तरह डिक्री (न्यायालय का आदेश) नहीं जारी कर सकता।’’
उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत की एक नजीर का हवाला देते हुए कहा कि काजी द्वारा पारित ऐसे किसी आदेश की कोई कानूनी शुचिता नहीं है और ऐसे आदेश को एकदम नजरअंदाज किया जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि उसने याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी के बीच के वैवाहिक विवाद को लेकर कोई राय नहीं जताई है और दोनों पक्ष देश के कानून के तहत इसका समाधान पाने को स्वतंत्र हैं। भाषा हर्ष राजकुमार अमित
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