आणंद, कैरा/खेड़ा (गुजरात): गुजरात स्थित डेयरी दिग्गज अमूल के कर्नाटक में आने से स्थानीय ब्रांड नंदिनी का सफाया करने और बाज़ार में महंगे दूध की बाढ़ लाने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कथित “साजिश” को लेकर राजनीतिक बवाल मच गया है. हालांकि, अपनी प्रतिष्ठा के बावजूद, अमूल गुजरात में मुद्रास्फीति से संबंधित प्रमुख चुनौतियों से जूझ रहा है और अब लागत प्रबंधन में मदद करने और उत्पादकों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए गोमूत्र और गोबर के उत्पादों को विकसित करने पर विचार कर रहा है.
दिप्रिंट ने बढ़ती कीमतों के कारणों और राज्य सरकार के गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के प्रतिष्ठित ब्रांड अमूल के सामने आने वाली समस्याओं का पता लगाने के वास्ते गुजरात के आणंद और कैरा (पहले खेड़ा) जिलों का दौरा किया, जो राज्य के डेयरी उद्योग के केंद्र हैं.
डेयरी उद्योग से जुड़े अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि 300-400 मवेशियों वाले कई निजी दुग्ध फार्म बंद हो रहे हैं, जबकि छोटे उत्पादक जिनके पास एक दर्जन या उससे कम गाय हैं, हरे चारे की बढ़ती कीमतों के बीच अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं.
इसके अलावा, अमूल वर्तमान में बढ़ती ऊर्जा, श्रम और परिवहन लागत के कारण पूरे भारत में अपने मांग-आपूर्ति नेटवर्क को बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रहा है.
इस बीच, गुजरात में दुग्ध सहकारी उद्योग सालाना कम से कम दो से तीन मूल्य संशोधन देख रहा है, जिससे पिछले डेढ़ साल में दूध की कीमतों में लगभग 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसके साथ ही दुग्ध उत्पादक अधिक रिटर्न की मांग कर रहे हैं, जिससे पहले से ही चुनौतीपूर्ण स्थिति और भी गंभीर हो गई है.
विशेष रूप से, इस संगठन में गांवों की 18,600 सहकारी समितियां और 33 जिलों में फैले 18 सदस्य संघ शामिल हैं जो कि सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा नियंत्रित है. शीर्ष निकाय जीसीएमएफएफ के अध्यक्ष और साथ ही सभी जिला संघ में भाजपा के नेता हैं, जिनमें से अधिकांश विधायक हैं.
यह स्वीकार करते हुए कि अमूल मुद्रास्फीति के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है, गुजरात विधानसभा के स्पीकर शंकर चौधरी और 18-सदस्य संघों में से एक बनास डेयरी के अध्यक्ष ने कहा कि विविधीकरण प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है.
चौधरी ने दावा किया, “अमूल गोमूत्र और गोबर उत्पादों, बायोगैस, गोमूत्र पाउडर, और इसी तरह के अन्य उत्पादों का विपणन करके मुद्रास्फीति से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है.”
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संघर्ष के साथ सफलता
गुजरात के आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड (अमूल) को भारत के पूर्व-स्वतंत्रता सहकारी आंदोलन की सबसे बड़ी सफल कहानियों में से एक के रूप में जाना जाता है, जिसकी शुरुआत 1946 में दो ग्राम सहकारी समितियों ने की थी और पहले दिन इसने 247 लीटर दूध उत्पादन किया था.
आणंद इकाई में वर्तमान में 1,240 ग्राम प्रत्यक्ष सहकारी समितियां (वीडीसीएस) हैं जहां से अमूल दूध खरीदता है. अमूल के यहां खुले हेडक्वार्टर में एक शानदान दफ्तर और अत्याधुनिक ऑपरेटिंग सिस्टम है जो प्रबंध निदेशक के कार्यालय से एक क्लिक में उत्पादकों, मवेशियों, दुग्ध उत्पादन, एजेंटों, डीलरों और सभी व्यावसायिक डेटा को ट्रैक करता है.
कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ, जिसे अमूल डेयरी के नाम से जाना जाता है, के प्रबंध निदेशक अमित व्यास ने कहा कि संगठन ने पिछले वित्तीय वर्ष में 55,000 करोड़ रुपये का कारोबार किया, जिसमें आणंद इकाई ने 11,750 करोड़ रुपये का योगदान दिया था.
उन्होंने बताया कि आपूर्ति प्रणाली में रिसाव को कम करने के लिए सहकारिता के पास प्रत्येक दुग्ध उत्पादक के फोन में एक ऐप मौजूद है, जिससे ट्रैकिंग नेटवर्क लगभग फुलप्रूफ हो जाता है.
व्यास ने कहा, “इस सहकारी संरचना में हमारी कमाई का 83 प्रतिशत दुग्ध उत्पादकों के पास जाता है. यह देश में सहकारी समितियों के किसी भी रूप में सबसे अधिक भुगतान है. शेष 17 प्रतिशत श्रम, ऊर्जा, परिवहन, पैकेजिंग और पूरे टॉप-टू-ग्राउंड तंत्र के रखरखाव पर खर्च किया जाता है, जिसे हमने बनाया है.”
उन्होंने कहा, “यह लगभग अस्थिर है, लेकिन अमूल का नेटवर्क सभी तूफानों का सामना करने के लिए पर्याप्त लचीला है.”
डेयरी के अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि गुजरात में इस तरह का सबसे बड़ा ‘तूफान’ महंगाई रहा है, यहां तक कि कोविड प्रतिबंधों और लंपी वायरस के प्रकोप के प्रभाव को भी मात दे दी है और इसका नतीजा कीमतों में बढ़ोतरी रही है.
व्यास ने कहा, “पिछले वित्तीय वर्ष में ऊर्जा लागत में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और परिवहन लागत में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. हमें ऊर्जा लागत में संशोधन की घोषणा करने वाले सरकार के पत्र भी मिले हैं. हमें इन सभी लागतों को ध्यान में रखना होगा और हमारे पास कीमतों में संशोधन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.”
उपभोक्ता मामलों के विभाग के नवीनतम उपलब्ध मूल्य आंकड़ों के अनुसार, एक लीटर दूध की औसत कीमत 4 अप्रैल, 2023 को 10.5 प्रतिशत बढ़कर 56.8 रुपये हो गई, जो एक साल पहले 51.4 रुपये थी.
बनास डेयरी के तहत 1,750 वीडीसी हैं और इसके कार्यकारी निदेशक, ब्रिगेडियर विनोद बाजिया ने कहा, कीमतों में यह वृद्धि लाभ कमाने से जुड़ी नहीं है.
बाजिया ने दिप्रिंट से कहा, “दूध उत्पादन लाभदायक व्यवसाय नहीं है. यह एक आवश्यकता है. लोगों को यह समझने की जरूरत है. अमूल एक कॉर्पोरेशन नहीं बल्कि एक कॉपरेटिव है. यह देश में एकमात्र सहकारी संस्था है जिसने इसे राष्ट्रीय और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध ब्रांड बना दिया है.”
उन्होंने कहा, “अमूल ने सर्वाईव किया और अभी भी अपने द्वारा बनाए गए नेटवर्क के कारण टिका हुआ है, क्योंकि लोग इसमें अपना योगदान दे रहे हैं. बनास डेयरी के पास किसी भी समय दूध की ढुलाई के लिए सड़क पर 900 टैंकर होते हैं.”
गोमूत्र रिसर्च और विकास के लिए ‘सेक्स्ड सीमेन’
दूध की आपूर्ति बढ़ाने और कीमतों को स्थिर करने के लिए अमूल गायों के लिए विभिन्न प्रजनन तकनीकों का उपयोग कर रहा है.
बाजिया ने कहा, इनमें “सेक्स्ड सीमेन” तकनीक शामिल है, जो गायों को मादा बछड़ों को जन्म देने के लिए सेक्स-चयनात्मक प्रजनन की अनुमति देती है.
उन्होंने कहा, “लंपी वायरस ने दूध उत्पादन को 4 से 5 प्रतिशत तक प्रभावित किया, लेकिन हमने तेजी से टीकाकरण किया. अब, हमारे पास मवेशियों की देखभाल करने और उत्पादकों पर बोझ को कम करने के लिए 250 सैलरी वाले पशु चिकित्सक हैं.”
बनास डेयरी के अध्यक्ष और भाजपा नेता शंकर चौधरी ने कहा कि संगठन लागत प्रबंधन में मदद करने के लिए अन्य गाय उत्पादों में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है.
उन्होंने कहा, “मवेशियों की अर्थव्यवस्था पारंपरिक रूप से बहुत लचीली रही है और भारत वर्षों से इस पर टिका हुआ है. मिट्टी को खेती के लिए खाद की जरूरत होती है और वे गाय के गोबर से आती है. इसका उपयोग बायोगैस बनाने के लिए भी किया जाता है. औषधीय गुणों वाले गोमूत्र से पाउडर निकालने के लिए अनुसंधान एवं विकास प्रक्रियाएं चल रही हैं. हम इन्हें किसानों से भी खरीदेंगे और उन्हें प्रोत्साहन देंगे.”
हालांकि, ज़मीनी स्तर पर डेयरी किसान और निवेशक अब गिरते मुनाफे को लेकर बेचैन हो रहे हैं.
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‘मूल्य संशोधन से उत्पादकों को लाभ नहीं’
सहकारी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आणंद-कैरा क्षेत्र में लगभग 110 बड़े दुग्ध उत्पादक फार्मों में से लगभग आधे लाभप्रदता की कमी के कारण पिछले दो या तीन वर्षों में बंद हो गए हैं. उन्होंने कहा कि ये खेत बड़े पैमाने पर धनी व्यापारियों और अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) के स्वामित्व में हैं.
हालांकि, अधिकारी ने दावा किया कि भले ही ऐसे खेतों में “करोड़ों का निवेश” किया गया हो, लेकिन उन्होंने “मवेशियों को पालने के लिए ज़रूरी प्रयास नहीं किए”. इसके बजाय, उन्होंने छोटे खिलाड़ियों के महत्व पर जोर दिया.
अधिकारी ने कहा, “अमूल छोटे और सीमांत उत्पादकों के लिए है और वे सहकारी को सफलतापूर्वक चलाते हैं.”
इस बीच, दिप्रिंट ने जिन डेयरी किसानों/मालिकों से बात की, उन्होंने दावा किया कि उन्होंने काफी मेहनत और पैसे का निवेश किया है, लेकिन पशुओं के चारे और हरे चारे की बढ़ती कीमतों के बीच जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
आणंद के गोपालपुरा गांव में शिबम डेयरी के मालिक संजय रबारी ने कहा, “मवेशियों के चारे और हरे चारे की कीमतें आसमान छू रही हैं. मूल्य संशोधन के बाद भी, उत्पादकों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है,”
उन्होंने दावा किया कि उनके पास 400 मवेशी हैं और उनके खेत में प्रतिदिन 3,000 लीटर दूध का उत्पादन होता है, लेकिन तीन साल से कारोबार खराब है. रबारी ने कहा, “मैंने संयंत्र के निर्माण और अत्याधुनिक तकनीक को स्थापित करने में 11 करोड़ रुपये का निवेश किया, लेकिन, अब मैं मुश्किल से ईएमआई चुका पाता हूं. हमारे समुदाय के कई सदस्यों ने काम बंद कर दिया है.”
मूल्य वृद्धि के अलावा, रबारी ने संकट के लिए “डुप्लिकेट” और बिना ब्रांड वाले दूध को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने आरोप लगाया, “ऐसे बिचौलिए हैं जो किसानों से अधिक कीमत पर दूध इकट्ठा करते हैं और उसे सस्ते दाम पर बेच देते हैं. यह कृत्रिम वसा के साथ असंसाधित, अनप्रॉसेस्ड दूध है, जो उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं है. उनके खिलाफ नियामक कार्रवाई होनी चाहिए.”
इस बीच, आणंद में जितोदिया सहकारी समिति के एक छोटे दुग्ध उत्पादक मनीष ठाकुर ने दावा किया कि वे मुश्किल से ही गुज़ारा कर पाते हैं. परिवार के पास चार गाय और तीन भैंसें हैं जो सामूहिक रूप से प्रतिदिन लगभग 20 लीटर दूध देती हैं. एक बार लागत शामिल हो जाने के बाद, आय नगण्य है.
उन्होंने बताया, “हम हर महीने 30,000 रुपये कमाते हैं, लेकिन गाय के रखरखाव, मवेशियों के चारे की लागत को कवर करने के लिए लगभग 18,000 रुपये खर्च करते हैं. इसलिए, व्यावहारिक रूप से हम प्रति माह केवल 12,000 रुपये कमाते हैं. यह परिवार चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है. मैं प्राथमिक स्कूल में टीचर हूं और मेरा भाई छोटे-मोटे काम करता है.”
राजनीतिक कारक
गुजरात में राज्य के दुग्ध पारिस्थितिकी तंत्र पर नियंत्रण न केवल डेयरी अर्थशास्त्र का विषय है, बल्कि इसका एक राजनीतिक पहलू भी है.
यह एक संरचनात्मक स्तर पर शुरू होता है. ग्राम स्तर से शीर्ष निकाय तक प्रत्येक सहकारिता के दो अंग हैं – एक राजनीतिक और एक प्रशासनिक.
प्रत्येक सहकारी समिति चुनाव कराती है और राजनेताओं को अध्यक्ष के रूप में चुनती है, जबकि प्रशासनिक सेट-अप विशेषज्ञों और अधिकारियों की एक टीम द्वारा चलाया जाता है.
सहकारिता के एक वरिष्ठ सदस्य के अनुसार, अमूल पर नियंत्रण रखने वाला कोई भी राजनीतिक दल लगभग 93 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावी लाभ उठा सकता है.
फरवरी में भाजपा के कैरा जिला प्रमुख विपुल पटेल सहकारिता का चुनाव जीतने के बाद अमूल डेयरी के अध्यक्ष बने.
2022 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा में शामिल होने वाले आणंद के पूर्व कांग्रेस विधायक कांति सोधा परमार को उसी अमूल चुनाव में उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया था.
विपुल ने दिप्रिंट से कहा, “अमूल सहकारी हमारे लिए एक आंदोलन है. हम आत्मनिर्भर थे और रहेंगे. हमारी सहकारिताएं राष्ट्र के हित में काम करती हैं. मूल्य वृद्धि एक आवश्यकता थी, लेकिन अमूल लाभ के लिए मूल्य में संशोधन नहीं करता है.”
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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