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Saturday, 21 December, 2024
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आंध्र में अब नहीं रहेगा तेलुगू मीडियम- सभी स्कूल, कॉलेजों में English क्यों चाहती है जगन सरकार

2019 में, जगन सरकार ने आंध्र के सभी स्कूलों को, अंग्रेज़ी पर शिफ्ट होने का आदेश दिया था, लेकिन वो SC में फंसा है. अब उसने सभी कॉलेजों को निर्देश दिया है, कि इस सत्र से अनिवार्य रूप से शिक्षा में अंग्रेज़ी माध्यम को अपनाया जाए.

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हैदराबाद: आंध्र प्रदेश मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी एक सम्मिलित प्रयास कर रहे हैं कि राज्य में तेगुलू माध्यम के सभी शिक्षण संस्थान तेलुगू की जगह मुख्य रूप से अंग्रेज़ी माध्यम को अपना लें. उनकी सरकार का सबसे ताज़ा प्रयास मंगलवार को सामने आया, जब उसने तमाम सरकारी सहायता-प्राप्त और ग़ैर-सहायता प्राप्त निजी डिग्री (स्नातक स्तर) कॉलेजों के निर्देश जारी किया कि इस शिक्षा सत्र से पढ़ाई के माध्यम के तौर पर अंग्रेज़ी को अनिवार्य रूप से अपना लें.

ये फैसला उसके क़रीब डेढ़ साल बाद आया है, जब सरकार ने राज्य के स्कूलों को अंग्रेज़ी पर स्विच करने का आदेश दिया था. हालांकि नवंबर 2019 में जारी वो निर्देश क़ानूनी झमेलों में फंसा हुआ है.

परेशानियों से पीछे न हटते हुए सरकार को विश्वास है कि ताज़ा निर्देश छात्रों के ख़ासकर वैश्विक स्तर पर रोज़गार की संभावनाओं को बढ़ाएगा. इसका मतलब ये है कि आगामी सत्र से डिग्री (स्नातक स्तर) की चाह रखने वाले छात्रों के पास, तेलुगु माध्यम में पढ़ाई करने का विकल्प नहीं होगा.

मंगलवार के आदेश में कहा गया है कि जिन 2.62 लाख छात्रों ने, 2020-21 शैक्षणिक सत्र के लिए कॉलेजों में दाख़िला लिया, उनमें 65,981 छात्र तेलुगू मीडियम पृष्ठभूमि से थे और उन्होंने उसी मीडियम के कॉलेजों का चयन किया.

एपी स्टेट काउंसिल ऑफ हायर एजुकेशन के अध्यक्ष प्रो. हेमा चंद्रा रेड्डी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे अपने आंकड़े बताते हैं, कि तेलुगू मीडियम वाले 60 से 70 प्रतिशत छात्र ग्रेजुएशन या कॉलेज लेवल पर ख़ुद से अंग्रेज़ी मीडियम का विकल्प चुन रहे हैं. बाक़ी छात्र ऐसा नहीं कर रहे हैं, तो इसके पीछे सिर्फ उनकी झिझक है चाहे उसका कारण एक नई भाषा के सीखने का डर हो या कुछ और.’

उन्होंने आगे कहा, ‘तमाम पीजी और रिसर्च प्रोग्राम्स (भाषा-आधारित शोध विषयों के अलावा) अंग्रेज़ी में हैं, ऐसे में अगर छात्र सिर्फ तेलुगू में पढ़ाई करते हैं, तो उसका सामना कैसे कर पाएंगे?’

‘हम नहीं चाहते कि छात्र रोज़गार के मामले में, सिर्फ तेलुगू प्रांतों तक सीमित होकर रह जाएं- हम चाहते हैं कि वो बाहर काम करें, हो सके तो विदेशों में भी. बल्कि आंध्र में हमारे पास पर्याप्त उद्योग नहीं हैं कि हम अपने युवाओं को समायोजित कर पाएं. बटवारे के बाद हमने अपनी राजधानी भी तेलंगाना को गंवा दी.’

आलोचकों ने, जिनमें विपक्ष भी शामिल है. इस आधार पर इस क़दम पर सवाल उठाए हैं कि इस आयु में ख़ासकर बरसों से तेलुगू में चली, ट्रेनिंग और वैचारिक पढ़ाई के बाद, एक नई भाषा पर जाना आसान नहीं होगा.’

विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आरोप लगाती आ रही है, कि जगन सरकार का ये क़दम भी, तेलुगू संस्कृति का सफाया करने की दिशा में एक प्रयास है.

बीजेपी प्रदेश महासचिव विष्णु वर्धन रेड्डी ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस अंग्रेज़ी माध्यम को सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में अनिवार्य किया जा रहा है. वास्तव में पिछड़े और ग्रामीण समुदायों के लोग सरकारी संस्थानों में जाते हैं. वो अचानक कैसे अंग्रेज़ी पढ़नी शुरू कर सकते हैं, और क्या वो आसानी से ख़ुद को ढाल पाएंगे? हम अंग्रेज़ी माध्यम के खिलाफ नहीं हैं, हम केवल इतना कह रहे हैं, कि माध्यम का चुनने का काम छात्रों पर छोड़ दीजिए, उन्हें एक विकल्प दीजिए. इसे अनिवार्य मत बनाइए’.

इससे पहले, आलोचना का जवाब देते हुए जगन ने, उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का उपहास किया, जिन्होंने उनके फैसले का विरोध किया था, और उनसे पूछा कि उनके बच्चे और नाती-पोते, स्कूलों में किस माध्यम में पढ़ते हैं.

‘चरणबद्ध ढंग से कर रहे हैं’

राज्य सरकार का दावा है, कि उसने कॉलेज और स्कूल दोनों स्तरों पर, अंग्रेज़ी माध्यम की ओर प्रवास, चरण-बद्ध तरीक़े से नियोजित किया है, ताकि ये सुगम हो जाए.

उदाहरण के तौर पर, उसका दावा है कि छात्रों के लिए द्विभाषी पाठ्यपुस्तकें छपवाई जा रही हैं, ताकि वो उन्हीं सिद्धांतों को, अंग्रेज़ी और तेलुगू में साथ साथ पढ़ सकें. छात्रों के लिए क्यूआर कोड-आधारित किताबें तैयार की जा रही हैं, ताकि आवाज़ के ज़रिए विषयों को सुन सकें.

हेमा चंद्रा रेड्डी ने दिप्रिंट से कहा, कि तेलुगु माध्यम स्कूलों व कॉलेजों में काम कर रहे, हज़ारों अध्यापकों के लिए वर्कशॉप्स आयोजित की जा रही हैं, ताकि उन्हें पढ़ाने में अंग्रेजी माध्यम अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके. उन्होंने आगे कहा कि पूरे पाठ्यक्रम की, पहले से रिकॉर्डिंग की जा रही है, जिसकी आवाज़ को अध्यापक कक्षाओं में इस्तेमाल कर सकते हैं, और वो ख़ुद उस्ताद की भूमिका निभा सकते हैं.

राज्य शिक्षा मंत्री ए सुरेश ने पहले कहा था, कि नई नीति कहीं से भी छात्रों से, अपनी मातृ भाषा में पढ़ने का अधिकार नहीं लेती, और न ही वो किसी भी तरह से तेलुगू को कमज़ोर कर रही है. उन्होंने आगे कहा कि इसे इसलिए लागू किया जा रहा है, कि तेलुगू माध्यम के छात्र अंग्रेज़ी मीडियम के छात्रों से पिछड़ रहे हैं.

लेकिन, आलोचकों का कहना है कि सरकार के पास नीति को कुशलता से कार्यान्वित करने की क्षमता नहीं है, और उनकी मांग है कि ये छात्रों पर छोड़ दिया जाना चाहिए, कि वो अपनी शिक्षा का माध्यम किसे चुनते हैं.


 

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तेलुगू युवथा (तेलुगू देसम पार्टी की युवा विंग) के प्रदेश महासचिव, नागा श्रवण किलारू ने कहा, ‘क्या हमारे पास पर्याप्त टीचर-ट्रेनिंग कॉलेज हैं, जो अंग्रेज़ी में पढ़ाने वाले लेक्चरर्स की, इस नई मांग को पूरा कर सकें…जब तक इन सभी बाधाओं को, सार्थक तरीक़े से दूर नहीं किया जाएगा, तब तक रातों-रात अंग्रेज़ी मीडियम पर शिफ्ट होने का ये फैसला, ठीक से लागू नहीं किया जा सकेगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अच्छा ये रहेगा कि इसे चरण-बद्ध और व्यवस्थित तरीक़े से शुरू किया जाए. शुरूआत में हमें डिग्री कॉलेजों में, अंग्रेज़ी बोलने की क्लासेज़ शुरू करनी चाहिएं. अंग्रेज़ी बोलने को कौशल विकास प्रोग्राम में जोड़ा जाना चाहिए. इन बयानबाज़ियों या सरकारी आदेशों के मुक़ाबले, ये सिस्टम ज़्यादा अच्छे परिणाम देंगे’.

पहली बार नहीं

ऐसा पहली बार नहीं है कि जगन सरकार ने, शिक्षण संस्थानों में अंग्रेज़ी माध्यम को थोपा है.

नवंबर 2019 में, सरकार ने एक आदेश जारी किया, जिसके तहत 2020-21 सत्र से सभी सरकारी स्कूलों में, पहली से पांचवीं तक की प्राइमरी, अपर प्राइमरी, और हाई स्कूलों में, अंग्रेज़ी मीडियम अनिवार्य कर दिया गया.

राज्य में क़रीब 44,000 तेलुगू मध्यम प्राथमिक स्कूल हैं. उनमें से क़रीब 4,000 स्कूल ‘सफल’ स्कूलों की सूची में आते हैं, जहां शिक्षण का माध्यम तेलुगू और अंग्रेज़ी दोनों हैं.

लेकिन राज्य को उस समय झटका लगा, जब उस आदेश को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दे दी गई, जिसने उसे इस आधार पर रद्द कर दिया, कि वो अनुच्छेद 21-ए का उल्लंघन था, और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों से आने वाले छात्रों के माता-पिता, अपने बच्चों का मार्गदर्शन नहीं कर पाएंगे.

सरकार ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन शीर्ष अदालत ने कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया. केस फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

नाम न बताने की शर्त पर एपी स्कूली शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब तक ये मामला कोर्ट में तय नहीं हो जाता, तब तक सरकार कुछ लागू नहीं कर सकती. लेकिन हम पूरी तरह से तैयार हैं. उसके अलावा, महामारी की वजह से भी स्कूल बंद चल रहे हैं’.

‘हमारी योजना ये भी है, कि हर मंडल में एक तेलुगू मीडियम स्कूल हो, लेकिन जब हमने एक स्टडी कराई, तो पता चला कि 90 प्रतिशत से अधिक पेरेंट्स, अंग्रेज़ी मीडियम के साथ सहज थे’.

तेलुगू मीडियम संस्थानों को अंग्रेज़ी मीडियम में लाने का जगन रेड्डी का क़दम, केंद्र की नई शिक्षा नीति (एनईपी) के भी बिल्कुल विपरीत है, जिसमें मातृभाषा पर बल दिया गया है. एनईपी में कहा गया है कि जहां तक संभव हो, ग्रेड 5 या उससे आगे, छात्रों को पढ़ाने का माध्यम उनकी मातृभाषा होनी चाहिए.

लेकिन, 2019 के अपने आदेश में राज्य सरकार ने कहा, कि हालांकि अंग्रेज़ी मीडियम को अनिवार्य किया जा रहा है, लेकिन स्कूलों में तेलुगू या उर्दू जैसी क्षेत्रीय भाषाएं या मातृ भाषाएं भी, अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाएंगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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