नई दिल्ली: निठारी सिलसिलेवार हत्याकांड में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले में कहा गया कि जांचकर्ताओं को नरभक्षण (मनुष्य का मांस खाना) का कोई फोरेंसिक सबूत नहीं मिला था. साथ ही यह भी कहा गया कि जांचकर्ताओं द्वारा जब्त किए गए चाकू और कुल्हाड़ी पर भी खून का कोई धब्बा नहीं था और मामले के मुख्य आरोपी का स्पर्म पीड़िता के रिपोर्ट से मेल नहीं खाता है. ‘पीड़िता A’ की हत्या और यौन उत्पीड़न निठारी कांड में हुए सिलसिलेवार हत्याओं में से एक थी.
सोमवार को अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए सुरिंदर कोली को 12 मामलों में और उसके सहायक मोनिंदर पंढेर को दो मामलों में बरी कर दिया. ये सभी 2005-06 में उत्तरप्रदेश के नोएडा के निठारी में सिलसिलेवार हत्याओं के आरोपी थे. हाईकोर्ट ने कहा कि ‘पीड़िता A’ मामले के फैसले में, पुलिस हिरासत में किया गया कोली का कबूलनामा इस बात पर बहुत अधिक निर्भर करता है कि जिसके बारे में उसका कहना है कि उसे जांच एजेंसियों द्वारा यह “सिखाया” गया था.
1 मार्च, 2007 को पुलिस के सामने अपने कबूलनामे में, कोली ने विस्तार से बताया था कि कैसे उसने कथित तौर पर पीड़ितों को लालच दिया, फिर बेहोश होने के बाद उनके साथ बलात्कार करने की कोशिश की और फिर उन्हें मार डाला. यहां तक कि यह भी कहा गया था कि उसने उनके शरीर के कुछ हिस्सों को प्रेशर कुकर में पकाकर खाया भी था.
लेकिन मजिस्ट्रेट के सामने एक बयान में, उसने दावा किया कि उसे पीड़ितों के नाम याद दिलाने के लिए कहा गया था.
अपने फैसले में, इलाहाबाद HC ने अभियोजन पक्ष पर मामले को लेकर कई सवाल भी उठाए. कोर्ट ने न केवल यौन मकसद और नरभक्षण के पुलिस के दावों की पुष्टि करने के लिए फोरेंसिक सबूतों की कमी की ओर इशारा किया, बल्कि अपराध में इस्तेमाल किए गए कथित हथियारों पर भी संदेह जताया.
इस विशेष मामले में अदालत ने जो कहा, उसका विवरण यहां दिया गया है.
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न कपड़ा, न चुन्नी, चाकू बरामदगी पर संदेह
अदालत का फैसला दो कथित हत्या में इस्तेमाल किए गए हथियारों – एक चाकू और एक कुल्हाड़ी – पर आधारित है, जिसे पुलिस ने मकान नंबर D-5 से जब्त करने का दावा किया था, जहां पंढेर और कोली रहते थे.
कोली के “खुलासे” के आधार पर पुलिस का दावा है कि चाकू 1 जनवरी, 2007 को और कुल्हाड़ी 18 जनवरी, 2007 को खोजी गई थी. लेकिन अदालत के अनुसार, जांचकर्ताओं ने कथित हथियारों की खोज से कुछ दिन पहले 29 दिसंबर, 2006 को क्षेत्र की पूरी तरह से जांच की थी. फैसले में कहा गया है, “ऐसे स्थान से किसी वस्तु की बरामदगी जो पुलिस के नियंत्रण में है, एक प्रकार से संदेह पैदा करती है.”
फैसले में कहा गया है कि आरोपी के घर से बिना किसी खून के धब्बे, मांस या हत्याओं से जुड़े किसी अन्य फोरेंसिक सबूत के चाकू की “महज बरामदगी” को “अपराधी तथ्य” नहीं माना जा सकता है.
अदालत ने चाकू की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि घर की कंक्रीट की छत पर पाए जाने के बावजूद चाकू काफी गंदा था. इसके चलते पुलिस के “जब्ती ज्ञापन (अधिकारियों द्वारा जब्त किए गए सभी संभावित सबूतों की एक सूची और वे स्थान जहां वे पाए गए थे)” पर भी संदेह जताया गया.
फैसले में कहा गया कि इसके अलावा, हालांकि पंचनामे में कुल्हाड़ी पर संदिग्ध दाग का उल्लेख है, अभियोजन पक्ष का दावा है कि इसका इस्तेमाल पीड़ितों के शरीर को काटने के लिए किया गया था, लेकिन फोरेंसिक रिपोर्ट में उस पर कोई खून नहीं पाया गया. इसमें कहा गया है कि साक्ष्य के दो टुकड़े – कथित तौर पर पीड़ित ‘A’ का गला घोंटने के लिए इस्तेमाल की गई चुन्नी और अन्य पीड़ितों की हत्या के लिए इस्तेमाल किया गया कपड़ा – मुकदमे के दौरान पेश नहीं किए गए.
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मांस खाने की पुष्टि नहीं हुई और खून के धब्बे भी नहीं मिले
अपने फैसले में, इलाहाबाद HC ने यह भी माना कि बिना धड़ वाले अंगों और खोपड़ी की खोज हत्याओं के लिए यौन मकसद के दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
इसके अलावा,आदेश में कहा गया है कि जबकि कोली ने अपने कथित कबूलनामे में कहा कि शरीर के अंगों को फेंकने हेतु पैक करने के लिए उसने जिन पॉलिथीन बैगों का इस्तेमाल किया था, उन्हें D-5 की गैलरी के पीछे फेंक दिया गया था, पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि ये सभी उस परिसर में ही दबे हुए पाए गए थे.
इसमें मामले के जांच अधिकारी छोटे सिंह के हवाले से कहा गया है कि हेल्प क्वार्टर में जहां कोली रहता था, वहां की खिड़की 25 फीट की ऊंचाई पर थी. इसलिए, यह “संभावना के दायरे से परे” है कि शरीर के अंगों से भरे पॉलिथीन बैग दीवार पर खून के धब्बे नहीं छोड़ेंगे. अदालत ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि यह शवों के निपटाने के बारे में कोली के कबूलनामे को गलत साबित करता है.
फैसले में कहा गया कि इसके अलावा, अभियोजन पक्ष के नरभक्षण के दावे को साबित करने के लिए मामले में जब्त की गई किसी भी सामग्री पर कोई फोरेंसिक सबूत नहीं था.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “ FSL आगरा (फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला) के विशेषज्ञों की एक टीम ने मकान नंबर D-5 की गहन जांच की और किसी भी संदिग्ध दाग के संकेत के साथ सभी वस्तुओं को जब्त कर लिया. CBI ने एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) के विशेषज्ञों की एक टीम भी गठित की, जिन्होंने 12.1.07 और 13.1.07 को मकान नंबर D-5 की सूक्ष्मता से जांच की और कई नमूने भी एकत्र किए. हालांकि, न तो कोई मानव अवशेष मिला, न ही खून से सने कपड़े, न ही कोई खून से सना हुआ सामान जैसे कालीन आदि.”
HC ने पाया कि पीड़ित के कपड़ों पर पाया गया स्पर्म और खून कोली की रजाई से लिए गए नमूनों से मेल नहीं खाता. इसमें यह भी कहा गया है कि हालांकि सात सदस्यीय फोरेंसिक टीम ने D-5 का दौरा किया था, लेकिन बाथरूम के सिंक और अज्ञात मूल के पाइप में खून के धब्बे को छोड़कर, घर में कोई अन्य जैविक या फोरेंसिक सामग्री नहीं मिली थी.
(संपादन: ऋषभ राज)
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