प्रयागराज, नौ मार्च (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक ऐसे अपराध के लिए अग्रिम जमानत देने का मामला नहीं बनता जिसके लिए जमानत दी जा सकती है।
अदालत ने मंगलवार को एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अग्रिम जमानत देने के लिए निर्देश, गैर जमानती और संज्ञेय अपराधों के संबंध में ही जारी किया जा सकता है। इस प्रकार अदालत ने मेसर्स वीके ट्रेडर्स एवं विपिन कुमार नामक व्यक्ति द्वारा दायर अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति समित गोपाल ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत आवेदन पर विचार करने के लिए इसके उपबंध (1) में दो जरूरतें बताई गई हैं। पहली जरूरत यह है कि याचिकाकर्ता पर गैर जमानती अपराध करने का आरोप हो। स्वभाविक तौर पर यह आरोप वर्तमान में लगाया गया हो या पहले से मौजूद तथ्यों से निकले किसी मामले में हो।
अदालत ने कहा कि दूसरी जरूरत यह है कि याचिकाकर्ता इस बात को लेकर आशंकित हो कि उसे ऐसे आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाएगा। जब ये दोनों जरूरतें पूरी होती हैं तो उच्च न्यायालय या सत्र अदालत अग्रिम जमानत के लिए अर्जी स्वीकार करेगी और उसके गुण के आधार पर उस पर विचार करेगी।
याचिकाकर्ता ने केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की धारा 132 (1) के तहत अग्रिम जमानत के लिए अदालत का रुख किया था। अदालत ने पाया कि जिन अपराधों के लिए अग्रिम जमानत मांगी गई है, वे गैर संज्ञेय और जमानती हैं।
भाषा राजेंद्र आशीष
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