केंद्र में सरकार कोई भी हो, जांच एजेंसियों की भूमिका और उनकी कार्यप्रणाली हमेशा से सवालों के घेरे में रही है.इन दिनों भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और आयकर विभाग की विभिन्न कार्रवाइयों को लेकर यही स्थिति बनी हुई है.इन्हीं सब मुद्दों पर सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक एन के सिंह से ‘भाषा’ के पांच सवाल और उनके जवाब:-
सवाल: हाल के वर्षों में केंद्रीय एजेंसियों की कार्यप्रणाली का आप कैसे आकलन करेंगे?
जवाब: केंद्रीय एजेंसियों की भूमिका को लेकर हाल के वर्षों में सवालों में तेजी आई है.ऐसा नहीं है कि पहले उन पर सवाल नहीं उठते थे.इनके दुरुपयोग को लेकर सवाल पहले भी उठते थे लेकिन पूर्व की तुलना में अब सवाल ज्यादा उठ रहे हैं.यही हकीकत है और यह स्थिति सही नहीं है।
सवाल: केंद्रीय एजेंसियां केंद्र व विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के बीच टकराव का कारण भी बनती जा रही हैं?
सवाल: केंद्रीय एजेंसियों पर दुरुपयोग का आरोप हमेशा से लगता रहा है.विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्य केंद्र पर ऐसे आरोप लगाते रहे हैं और फिर टकराव की स्थिति बनती है.केंद्र व राज्यों के बीच विश्वास की कमी के कारण ऐसा होता है.यह खाई इतनी बढ़ गई कि पश्चिम बंगाल सहित कई विपक्ष शासित राज्यों ने सीबीआई जांच के लिए आवश्यक आम सहमति वापस ले ली थी.इसके बाद से देखा गया है कि ईडी का इस्तेमाल बढ़ता गया।
सवाल: ऐसी क्या व्यवस्था हो सकती है जिससे ईडी या सीबीआई की निष्पक्षता पर सवाल ना उठे और दुरुपयोग के आरोप भी ना लगें?
जवाब: व्यवस्था तो है लेकिन उसे लागू करने दिया जाए तब तो.लोकपाल ही ठीक से बना दिया जाए और सीबीआई को उसके दायरे में ले आया जाए तो बहुत हद तक स्थिति सुधर जाएगी.इससे वह सरकार की निगरानी से बाहर आ जाएगा.या फिर सीबीआई को अर्धन्यायिक इकाई बना दिया जाए.रही बात ईडी की तो वह लोकपाल के अधीन नहीं आएगा.क्योंकि लोकपाल तो भ्रष्टाचार के खिलाफ संस्था है.इस स्थिति में ईडी में एक कानून बना दिया जाए कि वह केवल अंतरराष्ट्रीय तस्करी या ऐसे अन्य मामलों की जांच करेगा और बाकी मामलों की जांच सीबीआई या पुलिस करे.केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को सशक्त और स्वच्छंद करने की भी जरूरत है.तभी बहुत हद तक इन एजेंसियों का दुरुपयोग रुक सकता है।
सवाल: हाल ही में ईडी की बढ़ाई गई शक्तियों पर उच्चतम न्यायलय ने भी मुहर लगाई है.इसकी आलोचनाओं पर आप क्या कहेंगे?
जवाब: ईडी पर यह अभियोग लग रहा है कि उसे बहुत अधिकार दे दिए गए हैं.किसी भी केंद्रीय एजेंसी की तुलना में उसे सबसे ज्यादा अधिकार दिए गए हैं.चाहे वह गिरफ्तार करने का अधिकार हो, किसी क्षेत्र में जांच करने का अधिकार हो या संपत्तियों को जब्त करने का मामला हो या फिर जमानत के प्रावधान.जमानत को लेकर इसमें यह प्रावधान है कि आरोपी को जमानत लेने के लिए खुद को निर्दोष साबित करना पड़ेगा.यह तो कानून के साधारण सिद्धांत के विरुद्ध है.दूसरी बात यह है कि पहले सीबीआई या ईडी के निदेशकों का अनिवार्य कार्यकाल दो साल का होता था.यह व्यवस्था इस वजह से की गई थी ताकि इस पद पर अधिकारी स्वतंत्र, निष्पक्ष और बिना डरे अपना कानूनी कर्तव्य निभा पाएं.दो साल के कार्यकाल में इस पद पर अधिकारी को निरंतरता भी मिलती और सरकारें भी अपनी सुविधानुसार उन्हें पद से हटा नहीं पाती.अब सरकार उनका कार्यकाल तीन साल तक बढ़ा सकती है.ऐसे में इन एजेंसियों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठने लाजिमी हैं.सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि केंद्रीय एजेंसियों, खासकर ईडी का इस्तेमाल केवल विरोधी दल के लोगों के खिलाफ हो रहा है.सरकारी पक्ष के लोग के खिलाफ इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है.इस्तेमाल का समय भी गौर करने वाला होता है.चुनाव के समय हम देखते हैं, इनकी गतिविधियां तेज हो जाती हैं.यानी इसका राजनीतिक दुरुपयोग हो रहा है और यही अभियोग भी है।
सवाल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का आह्वान किया है.केंद्रीय एजेंसियों पर उठ रहे सवालों के मद्देनजर इसका आप कैसे आकलन करेंगे?
जवाब: लाल किले से उन्होंने कोई नई बात नहीं कही है.और कौन नहीं चाहता है कि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो.प्रधानमंत्री ने जो कहा है उसका स्वागत है.लेकिन सवाल उठता है कि कार्रवाई भ्रष्टाचारियों के खिलाफ होगी या विरोधियों के खिलाफ.भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो कानून की व्यवस्था है या उनके लिए जो एजेंसियां हैं, वे जब स्वछंदता से काम करेंगी तभी सही मायने में भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगा, अगर उसका गलत इस्तेमाल होगा तब तो भ्रष्टाचार बढ़ेगा ही.पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के कार्यकाल में सीबीआई का कार्यकाल बेहतरीन रहा.अन्य केंद्रीय एजेंसियों ने भी निष्पक्षता से काम किए.ऐसे उदाहरण मिलना मुश्किल है.