नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में अपने ‘आंख-कान’ के तौर पर काम करने के लिए सेवानिवृत्त आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को ‘स्पेशल रैपोर्टर्र’ नियुक्त किया है. ये रैपोर्टर्र सांप्रदायिक दंगों से लेकर एलजीबीटी समुदायों तक राज्यों में मानवाधिकारों के उल्लंघन की ‘जांच, निगरानी, मूल्यांकन के साथ रिपोर्ट और सलाह’ भी देंगे.
एनएचआरसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि एनएचआरसी कई सालों से विशेष दूतों की भर्ती कर रहा है, लेकिन हमेशा सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कवर नहीं किया गया और उन्हें जरूरत के आधार पर नियुक्त किया जाता था.
ताजा कवायद के तहत आयोग ने 15 रैपोर्टर्र नियुक्त किए हैं, जिनमें तीन पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और 12 पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं जो पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद से रिटायर हुए हैं या केंद्र और राज्य सरकारों में वरिष्ठ पदों पर रहे हैं. सूची पिछले शुक्रवार को जारी की गई थी.
एनएचआरसी के अधिकारी ने कहा कि कुछ रैपोर्टर्र को एक से अधिक राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों का प्रभार दिया गया है.
एनएचआरसी की तरफ से नियुक्त किए गए अधिकारियों को एक कम्युनिकेशन के जरिये इस फैसले से अवगत करा दिया गया है. जिसे दिप्रिंट ने हासिल किया है.
कम्युनिकेशन के मुताबिक, नियुक्त अधिकारियों को सांप्रदायिक दंगों, शहरी आतंकवाद, सीमा पार आतंकवाद, तस्करी, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के खिलाफ हिंसा से संबंधित मुद्दों और एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर) अधिकारों से संबंधित सभी मामलों’ के अलावा जनजातीय कल्याण आदि पर रिपोर्ट करने का निर्देश दिया गया है.
संचार में यह भी कहा गया है कि फ्रांसीसी शब्द ‘रैपोर्टर्स’ का आशय ‘जांचकर्ताओं’ होता है.
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प्राथमिक जिम्मेदारियां
कम्युनिकेशन के मुताबिक, ‘दौरा करने और मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से उभरते मुद्दों पर सलाह प्रदान करने आदि के साथ विशेष प्रक्रियागत गतिविधियों के माध्यम से मानवाधिकारों की समस्याओं की जांच, निगरानी, मूल्यांकन, सलाह और रिपोर्ट करना आदि’ रैपोर्टर्स की ‘प्राथमिक जिम्मेदारी’ है.
इसमें कहा गया है, ‘आयोग दिल्ली में स्थित है, ऐसे में उसके लिए इन क्षेत्रों में मानवाधिकारों की स्थिति का पता लगाने के लिए देशभर के विभिन्न हिस्सों में उपस्थित होना संभव नहीं है. देश के सभी क्षेत्रों में आयोग की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, इसने स्पेशल रैपोर्टर्स नियुक्त करने का निर्णय लिया है जो आयोग की आंख-कान बनकर काम करेंगे.’
पिछले कुछ सालों में एनएचआरसी राजनीतिक हिंसा, सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं और मानवाधिकारों के उल्लंघन के कुछ मामलों की जांच और रिपोर्ट पेश करने करने के लिए अपनी टीमों को विभिन्न राज्यों में भेजता रहा है.
एनएचआरसी ने 2021 में विधानसभा चुनाव के बाद हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए एक टीम पश्चिम बंगाल भेजी थी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस समेत क्षेत्रीय दलों ने कथित राजनीतिक हत्याओं की जांच के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट की तरफ से नियुक्त एनएचआरसी की अगुवाई में वाली समिति पर राजनीतिक पूर्वाग्रह का आरोप लगाया था.
समिति के सदस्यों ने सीबीआई जांच की सिफारिश करते हुए हाई कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी थी. हालांकि ममता बनर्जी सरकार ने एनएचआरसी की रिपोर्ट का विरोध करते हुए कोर्ट में हलफनामा पेश किया.
एनएचआरसी के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में उसे मिली कुल शिकायतों में 38.2 प्रतिशत उत्तर प्रदेश से थीं, उसके बाद दिल्ली से 7 प्रतिशत और ओडिशा, बिहार और पश्चिम बंगाल से पांच-पांच प्रतिशत शिकायतें मिली थीं.
हालांकि, एनएचआरसी के वरिष्ठ अधिकारी ने पहले कहा था कि राज्यों में आयोग के समकक्ष अधिकांश निकाय ‘निष्क्रिय’ हैं.
अधिकारी के मुताबिक, ‘अधिकांश राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) लगभग निष्क्रिय हैं. राज्य सरकार सामान्यत: वहां नई नियुक्तियों के विचार के खिलाफ है, और आम लोगों का अब उन संस्थानों में विश्वास नहीं रहा है. एसएचआरसी को ज्यादातर पूर्वाग्रह से ग्रसित माना जाता है. हमने कई मामलों में देखा है कि राज्य एसएचआरसी की सिफारिशों का पालन करने से इनकार करते हैं, लेकिन एनएचआरसी के मामले में, वे आम तौर पर इन्हें स्वीकार कर लेते हैं’
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