नयी दिल्ली, 12 अक्टूबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार को उस याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें ईंट भट्टों को दो मीटर तक खनन या खुदाई को पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता से छूट देने वाले उसके परिपत्र पर सवाल उठाया गया है।
राज्य सरकार ने 1 मई, 2020 के एक परिपत्र में ईंट भट्टों और एक विशेष मिट्टी के बर्तन (हस्तनिर्मित मिट्टी के बर्तन) के लिए छूट प्रदान की थी। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से पर्यावरण प्रभाव आकलन मंजूरी को अनिवार्य करने वाले उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन नहीं करने के आधार पर इस परिपत्र पर सवाल उठाया गया था।
याचिका में कहा गया कि शीर्ष अदालत का 2012 का निर्देश उन लघु खनिज खनन परियोजनाओं से संबंधित था, जिन्हें पांच हेक्टेयर से कम या उसके बराबर क्षेत्र के लिए पट्टे पर दिया गया था। याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के निर्देशों के बाद, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जनवरी 2016 में अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी के संबंध में एक अधिसूचना जारी की थी।
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ ने कहा कि याचिका में जो मुद्दा उठाया गया है उसमें पर्यावरण संबंधी कानूनों के अनुपालन के संदर्भ में महत्वपूर्ण प्रश्न है।
पीठ ने हालिया आदेश में कहा, ‘‘प्रतिवादी संख्या 3, उत्तर प्रदेश राज्य को सुनवाई की अगली तारीख को या उससे पहले जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है।’’
अधिकरण ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और उत्तर प्रदेश राज्य सहित उत्तरदाताओं को भी नोटिस जारी किया।
मामले में अगली सुनवाई 11 दिसंबर को होगी।
अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल ने एक पर्यावरण कार्यकर्ता की ओर से याचिका दायर की गयी थी।
बंसल ने कहा कि भट्टों को दी गयी छूट मंत्रालय की अधिसूचना और पर्यावरण कानूनों के खिलाफ है।
भाषा वैभव माधव
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