नयी दिल्ली, एक दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने असम के कामरूप मेट्रोपॉलिटन जिले में वन भूमि के कथित अतिक्रमण के मामले में राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक से जवाब तलब किया है।
एनजीटी ने एक अखबार में प्रकाशित खबर पर स्वत: संज्ञान लिया, जिसमें दावा किया गया है कि कामरूप मेट्रोपॉलिटन जिले में 35,329 हेक्टेयर से अधिक के 16 आरक्षित वनों के एक बड़े हिस्से का अतिक्रमण किया गया है।
खबर में आरोप लगाया गया है कि जिले में जिन हिस्सों में अतिक्रमण किया गया है, उनमें फाटासिल, दक्षिण कालापहाड़, जलुकबारी, गोटानगर, हेंगराबारी, सरानिया और गर्भंगा जैसी पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण पहाड़ियां शामिल हैं।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ ने 19 नवंबर को पारित आदेश में खबर का जिक्र करते हुए कहा, ”जंगलों के अतिक्रमण के कारण राज्य के कई हिस्सों में मानव-पशु संघर्ष बढ़ रहा है, जो चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है। वनों के अतिक्रमण के कारण तापमान भी बढ़ा है और इस साल असम को अब तक के सबसे गर्म सितंबर महीने का सामना करना पड़ा।’
पीठ ने कहा कि खबर के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में 113 से अधिक बेदखली अभियान शुरू किए गए हैं, जिसमें 2022-23 में 402.32 हेक्टेयर और 2023-24 में 564.58 हेक्टेयर भूमि से अतिक्रमण हटाया गया है।
उसने कहा, ‘इसके अलावा, खबर में यह दावा किया गया है कि कुछ जंगलों में लोग वर्षों से रह रहे हैं और उन्हें बेदखल करना मुश्किल हो सकता है। सीमाओं पर स्थित जंगलों में भी पड़ोसी राज्यों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है और सीमा विवाद पूरी तरह से सुलझने के बाद ही उन्हें अतिक्रमण मुक्त किया जा सकता है।’
पीठ ने कहा कि खबर में पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन के संबंध में ‘पर्याप्त मुद्दे’ उठाए गए हैं और ‘वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन का भी संकेत दिया गया है।’
एनजीटी ने राज्य के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक और कामरूप मेट्रोपॉलिटन जिले के जिला आयुक्त को पक्षकार या प्रतिवादी के रूप में शामिल किया।
अधिकरण ने कहा, ‘उपरोक्त प्रतिवादियों को एनजीटी की (कोलकाता में) पूर्वी जोनल बेंच के समक्ष हलफनामे के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया/जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया जाता है।’
मामले में अगली सुनवाई के लिए 21 जनवरी की तारीख निर्धारित की गई है।
भाषा पारुल संतोष
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