नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार को तरल और ठोस कचरे का उचित प्रबंधन नहीं करने के लिए पर्यावरणीय मुआवजे के रूप में 120 करोड़ रुपये की राशि जमा करने का निर्देश दिया है।
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली पीठ ने बिना शोधन के कम से कम प्रतिदिन 5.5 करोड़ लीटर (एमएलडी) गंदा पानी नालों, नदियों और अन्य जल निकायों में बहाने के लिए राज्य को जिम्मेदार ठहराया।
पीठ में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के अलावा विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल और अफरोज अहमद भी शामिल रहे।
पीठ ने कहा, ‘‘राज्य की ओर से दायर रिपोर्ट से यह स्पष्ट नहीं है कि कितने उद्योगों के लिए ‘कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट’ (सीईटीपी) की योजना बनाई गई और यह जैवोपचारण कार्य के बाद पानी की गुणवत्ता में सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाती है।’’
पीठ ने कहा कि जल प्रदूषण जारी है और यह मुद्दा ‘‘महत्वपूर्ण पहलुओं में योजना के स्तर पर है।’’
यह माना गया कि गोरखपुर और उसके आसपास की नदियों में 55 एमएलडी सीवेज बहाने के लिए राज्य सरकार की देनदारी दो करोड़ रुपये प्रति एमएलडी की दर से बनती है।
पीठ ने ठोस कचरे के निपटान में असफल रहने से संबंधित मापदंड के मुताबिक, 110 करोड़ रुपये के अलावा मुआवजा राशि में 10 करोड़ रुपये की रकम और बढ़ाई।
भाषा शफीक नरेश
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