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Saturday, 21 December, 2024
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भारतीय सीमा पर विवादों का शिकार हुए नवनिर्मित बंकर

जम्मू कश्मीर से जुड़ती 200 किलोमीटर लंबी एलओसी और 740 किलोमीटर लंबी भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास कुल 14,460 बंकर बनाने का निर्णय लिया गया.

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जम्मू: लगभग आठ महीने पहले जब जम्मू-कश्मीर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने कठुआ ज़िले के हीरानगर तहसील के शेरपुर बाला गांव के राजकुमार से बंकर बनवाने के लिए पूछा तो उन्होंने विभाग को यह कहते हुए साफ मना कर दिया. उनका मानना है कि सीमावर्ती लोगों की सुरक्षा के लिए विभाग द्वारा बनाए जा रहे बंकर सुरक्षित नहीं हैं और इन बंकरों का आम लोगों को कोई खास लाभ होने वाला नही है. उनका मानना था कि यह मात्र सफ़ेद हाथी ही साबित होंगे.

जिस समय राजकुमार ने विभाग द्वारा बंकर बनवाने से मना किया तो वे अकेले थे मगर आज विभिन्न सीमावर्ती गांवों के लोग नवनिर्मित बंकरों को लेकर शिकायतें कर रहे हैं.

लगभग आठ महीने पहले जम्मू-कश्मीर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने शेरपुर बाला, पंजग्राईं, लौंडी, मंगूचक्क, सद्दा चक्क सहित अन्य कईं गांवों में बंकर बनवाने का काम शुरू किया. मगर जब हाल ही के सीमा विवाद के दौरान पहली बार स्थानीय लोगों को इन बंकरों की जरूरत महसूस हुई तो यह नवनिर्मित बंकर किसी काम के साबित नही हुए.

उलटा इन बंकरों के कारण लोगों को कईं तरह की परेशानियां झेलनी पड़ी. हाल की बारिशों का पानी सभी बंकरों में भरा हुआ था और कईं जगह नवनिर्मित बंकर क्षतिग्रस्त हो चुके थे और नवनिर्मित बंकर ज़मीन में धंस चुके थे. इन सब कारणों से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

नाराज़ हैं लोगֺ

लगभग सभी जगह सीमावर्ती लोग जम्मू कश्मीर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) द्वारा बनाए गए बंकरों को लेकर शिकायत कर रहे हैं और नाराज़ हैं. सांबा व कठुआ जिलों में भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब बनाए गए कुछ बंकर इस्तेमाल से पहले ही ‘असुरक्षित’ हो चुके हैं. कईं बंकरों में दरारें आ चुकी हैं.

उल्लेखनीय है कि गत 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले के बाद जिस तरह से भारत ने पाकिस्तान पर एअर स्ट्राइक की उसके बाद भारत व पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव पैदा हो गया था. सीमा पर तनाव की स्थिति बनने पर सीमावर्ती लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए नवनिर्मित बंकरों की जरूरत महसूस हुई. मगर अपने पहले ही इम्तिहान में यह नवनिर्मित बंकर लोगों की उम्मीदों पर खरा नही उतर पाए.


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हीरानगर सेक्टर के सीमावर्ती गांव मंगूचक्क के अमन शर्मा का कहना है कि जब से बंकर बने हैं पहली बार सीमा पर तनाव पैदा होने पर इन बंकरों की ज़रूरत पड़ी थी मगर यह बंकर लोगों की कोई मदद नही कर पाए. बंकरों को लेकर बेहद नाराज़ अमन का कहना है कि ‘सीमा पर तनाव की स्थिति में तो दूर यह नवनिर्मित बंकर तो समान्य हालात में भी किसी काम के नही, लोग इनका किसी भी तरह का इस्तेमाल नहीं कर कर सकते क्योंकि हल्की सी बारिश में ही बारिश का सारा पानी नवनिर्मित बंकरों के भीतर घुस जाता है.’

सांबा सेक्टर के सद्दा चक्क गांव के विजय सिंह का कहना है कि ‘बंकरों के नाम पर सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का मज़ाक़ बनाया है.’ लोगों का कहना है कि पहले कईं साल सीमावर्ती इलाकों के लोग पक्के बंकरों के लिए संघर्ष करते रहे और अब जब सरकार ने उन्हें बंकर दिए हैं तो उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है. वे मानते है कि सीमावर्ती लोगों की समस्याओं को लेकर नेता और नौकरशाह गंभीर नही हैं.

विवादों का शिकार रहे हैं बंकर

लगभग 416 करोड़ की लागत से भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय और भारत-पाक नियंत्रण रेखा के करीब आम लोगों की सुरक्षा के लिए बनाए जा रहे बंकर पूरी तरह से बनने से पहले ही किसी न किसी कारण विवादों में घिरते रहे हैं. उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की ओर से आए दिन होने वाली गोलाबारी को देखते हुए सीमावर्ती लोगों की मांग थी कि सरकार उनके लिए बंकर बनाए.

आखिर लंबे विचार विमर्श के बाद 2017 के अंत में बंकर बनाए जाने के फ़ैसले पर मुहर लगी. जम्मू कश्मीर से जुड़ती 200 किलोमीटर लंबी भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा और 740 किलोमीटर लंबी भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास कुल 14,460 बंकर बनाने का निर्णय लिया गया. इनमें से 7,298 बंकर भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा और 7,162 किलोमीटर लंबी भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर बनाए जाने हैं.


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पहले केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच इस बात को लेकर विवाद रहा कि बंकर बनाए कौन ? बंकरों के निर्माण के लिए धन केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध करवाया जा रहा है. ऐसे में केंद्र सरकार चाहती थी कि बंकरों का निर्माण केंद्र सरकार द्वारा ही किया जाए. केंद्र द्वारा बंकर बनाए जाने के लिए बकायदा विदेशी विशेषज्ञ भी बुलाए गए मगर राज्य की तत्कालीन महबूबा मुफ्ती सरकार ने आपत्ति दर्ज करा दी कि बंकरों का निर्माण राज्य सरकार खुद करेगी और केंद्र सिर्फ धन उपलब्ध करवाए.

केंद्र व राज्य सरकार के बीच बंकरों के निर्माण को लेकर शुरू हुआ विवाद आखिर लंबी कश्मकश के बाद खत्म हुआ और जम्मू कश्मीर के लोक निर्माण विभाग(पीडब्ल्यूडी) ने 2018 के मध्य में कठुआ व जम्मू ज़िलों के सीमावर्ती इलाकों में बंकरों का निर्माण शुरू किया.

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एक नवनिर्मित बंकर में आ चुकी दरारें/ मनु श्रीवत्स

सीमावर्ती लोगों के लिए दो तरह के बंकर बनाए जा रहे हैं. एक व्यक्तिगत दूसरा सामूहिक बंकर हैं. व्यक्तिगत बंकर लगभग 160 वर्ग फ़ुट बड़ा है और इसमें आठ लोगों के बैठने की व्यवस्था है जबकि सामूहिक बंकर 800 वर्ग फ़ुट में फैला है और इसमें एकसाथ 40 लोग बैठ सकते हैं.

पर अब निर्माण एजेंसी व्यक्तिगत बंकर बनाने पर अधिक ज़ोर दे रही है. इससे भी लोग नाराज़ है, लोगों का कहना है कि संकट के समय लोग एक दूसरे का सहारा होते हैं. ऐसे में अगर गोलाबारी के समय गांव के लोग एक साथ सामूहिक बंकर में छिपते हैं तो एक दूसरे की मदद कर सकते हैं. मगर व्यक्तिगत बंकर में अकेले रहना हर तरह से खतरनाक है. मनोवैज्ञानिक रूप से भी आपातकालिक स्थिति में किसी बंकर में अकेले रहना ठीक नही है.

हर दिन नया विवाद

बंकरों के निर्माण को लेकर जारी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. हर दिन कोई नया विवाद बंकरों के साथ जुड़ रहा है. कईं सीमावर्ती इलाकों के लोगों ने आरोप लगाए कि जानबूझ कईं गांवों में बंकर नही बनाए जा रहे. कईं जगह प्रशासनिक गलतियों से और कईं जगह राजनीतिक कारणों से बंकर बनाने की योजना से कईं गांव बाहर रखे गए. शेरपुर पाईं गांव के लोगों को शिकायत है कि बंकर बनाते समय लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने उनके गांव को छोड़ दिया और एक भी बंकर उनके गांव में नही बनाया गया.

शेरपुर पाईं के रहने वाले महेश शर्मा ने बताया कि विभाग से जब पूछा गया तो विभाग का कहना था कि गलती से शेरपुर पाईं गांव छूट गया. महेश कहते हैं कि जब शेरपुर पाईं के आगे पीछे के सभी गांव में बंकर बन चुके हैं या बनाए जा रहे हैं तो शेरपुर पाईं गांव को छोड़ देना बताता है कि सरकार सीमावर्ती गांव के लोगों की सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है. शेरपुर पाईं गांव से भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा मात्र एक किलोमीटर दूर है.

खराब डिज़ायन की शिकायतें

नवनिर्मित बंकरों के डिज़ायन के लेकर कईं तरह की शिकायते भी सामने आ रही हैं.आमतौर पर बंकर का मतलब है कि दूर से देखने पर बंकर आसानी से दिखाई न दे. बंकर पूरी तरह से घास व मिट्टी से ढका होना चाहिए. पर जम्मू कश्मीर में बन चुके नवनिर्मित बंकर दूर से ही नज़र आ जाते हैं.अभी तक बन कर तैयार हो चुके बंकरों में एक बड़ी समस्या बारिश के पानी का भर जाना है. इसे भी डिज़ायन का एक बड़ा दोष माना जा रहा है.

रणबीर सिंह पुरा सेक्टर के अब्दुल्लियां गांव के मोहन लाल का कहना है कि नवनिर्मित बंकरों का डिज़ायन ऐसा है कि बारिश का सारा पानी बंकरों के अंदर भर जाता है, जिस कारण बारिश में बंकरों का इस्तेमाल नामुमकिन है. मोहन लाल बंकरों की सीढ़ियों को भी दोषपूर्ण मानते हैं. उनका कहना है कि सीढ़ियां ऐसी बनाई गईं हैं कि वह दूर से दिखाई देती हैं और अगर सीढ़ियों को ही निशाना बना कर पर बम गिराया जाता है तो बंकर में छुपा कोई भी व्यक्ति सुरक्षित बच नहीं सकता.

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बुरी तरह से क्षतिग्रस्त बंकर को देखते हुए एक व्यक्ति/ मनु श्रीवत्स

बंकरों की डिज़ायन को लेकर की जा रही शिकायतें काफी हद तक सही साबित हो रही हैं. नवनिर्मित बंकर चारों तरफ से खुले हैं. बंकरों का निर्माण इस ढंग से किया गया है कि लोग इनमें अपने को सुरक्षित समझने के बजाए असुरक्षित मान रहे हैं. बारिश के पानी का बंकरों के भीतर पहुंचने से साफ है कि निर्माण और डिज़ायन में कईं कमियां हैं. पंजग्राईं गांव में लोगों का कहना है कि नवनिर्मित बंकरों की छत भी कमज़ोर है.

सांबा ज़िले के सद्दा चक्क गांव में कुछ क्षतिग्रस्त बंकरों के मामले सामने आए हैं. इन बंकरों को बने हुए अभी मात्र आठ महीने हुए हैं,ऐसे में इन बंकरों में बड़ी-बड़ी दरारों का आना साफ बताता है कि निर्माण में कहीं न कहीं लापरवाही हुई है. दिवारों पर पलास्टर तक नहीं किया गया है.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि लोक निर्माण विभाग(पीडब्ल्यूडी) ने बंकरों के निर्माण में क्वालिटी से समझौता किया है. कईं जगह निर्माण में घटिया सामग्री के इस्तेमाल के भी मामले सामने आ रहे हैं. बंकरों के निर्माण की रफ़्तार को लेकर भी काफी शिकायते हैं. बहुत सी ऐसी जगह हैं यहां बंकरों का काम तो शुरू हुआ पर बीच में ही निर्माण कार्य रोक दिया गया.

सेना जैसे बंकर बने

रणबीर सिंह पुरा सेक्टर के अब्दुल्लियां गांव के लोग मानते हैं कि कुछ समय पहले सेना ने गांव के लोगों की सुरक्षा के लिए एक बंकर का निर्माण किया था वही बंकर संकट के समय लोगों की सुरक्षा के काम आने वाला है. सेना द्वारा 2002 में गांव में बनाए गए बंकर में एक समय में 60 लोग बैठ सकते हैं. गांव के हर व्यक्ति के मुंह से सेना के इस बंकर की तारीफ़ सुनी जा सकती है. गांव के दर्शन लाल का कहना है कि सेना का यह बंकर इतना सुरक्षित है कि बंकर के भीतर चिड़िया भी पर नहीं मार सकती.

बन चुके हैं 960 बंकर

अभी तक सिर्फ 960 बंकर बन सके हैं, इनमें 900 व्यक्तिगत व 60 सामुदायिक बंकर शामिल हैं. कठुआ, जम्मू और राजौरी ज़िलों में विभिन्न जगह लगभग 250 बंकरों का निर्माण जारी है. विभागीय सूत्रों के अनुसार कठुआ और जम्मू ज़िलों के मुकाबले भारत-पाक नियंत्रण रेखा के साथ सटे पुंछ व राजौरी ज़िलों की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए बनने वाले बंकरों पर अधिक लागत आ रही है.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं .लंबे समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे अब स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं .)

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