scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशनई स्टडी का दावा- कुछ कोविड-19 मरीज़ों को नुक़सान पहुंचा सकती है डेक्सामेथासोन

नई स्टडी का दावा- कुछ कोविड-19 मरीज़ों को नुक़सान पहुंचा सकती है डेक्सामेथासोन

नाइट्रिक ऑक्साइड से क्लीनिकल नतीजों में सुधार होने की रिसर्च से लेकर शवों के पोस्टमॉर्टम तक, दिप्रिंट आपके सामने लाता है, कोविड-19 पर ताज़ा तरीन ख़बरें.

Text Size:

नई दिल्ली: कोरोनावायरस वैश्विक महामारी हर रोज़ दुनिया भर में, हज़ारों लोगों की जान लेती जा रही है, जबकि वैज्ञानिक सार्स-सीओवी-2 के बारे में नई नई बातें खोज रहे हैं.

ये हैं कोविड-19 पर चल रही रिसर्च के कुछ ताज़ा तरीन नतीजे.

ब्लट टेस्ट बता सकता है कि डेक्सामेथासोन से किसे फायदा होगा

एक सामान्य ब्लड टेस्ट- जिसमें सूजे हुए प्रोटीन्स का पता चलता है- डॉक्टर्स को ये तय करने में मदद कर सकता है कि कोविड-19 के कौन से मरीज़ हैं, जिन्हें स्टिरॉयड डेक्सामेथासोन के इलाज से फायदा पहुंच सकता है.

यूके रिकवरी ट्रायल, जिसमें कोविड-19 संक्रमित 6,000 से अधिक लोग शामिल थे, से पता चला है कि डेक्सामेथासोन ने, उन मरीज़ों की मौतों में क़रीब एक तिहाई की कमी कर दी जो वेंटिलेटर पर थे और जिन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत थी उनमें क़रीब 20 प्रतिशत की.

एल्बर्ट आइंसटाइन कॉलेज ऑफ मेडिसिन, और मॉन्टिफॉयर हेल्थ सिस्टम ने इन नतीजों की पुष्टि की है और दूसरे बहुत से सवालों का जवाब दिया है, जैसे कि वो मरीज़ कौन से हैं जिन्हें स्टिरॉयड के इलाज से फायदा पहुंचने की संभावना हो सकती है और वो कौन से हैं जिन्हें इससे नुकसान पहुंच सकता है.

जर्नल ऑफ हॉस्पिटल मेडिसिन में छपी रिसर्च से ये भी पता चलता है कि प्रेडनीसोन और मेथाइलप्रेडनीसोलोन जैसी स्टिरॉयड फॉर्म्युलेशंस से, जीवन रक्षक फायदे पहुंच सकते हैं.

शुरू में तक़रीबन सभी मरीज़ों का ब्लड टेस्ट किया गया जिससे उनके सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) स्तर का पता चल सके, जो लिवर सूजन के जवाब में पैदा करता है. ख़ून के अंदर सीआरपी लेवल जितना अधिक होगा, सूजन भी उतनी ही ज़्यादा होगी.

स्टडी में सीआरपी का जो सामान्य लेवल निकल कर आया, वो प्रति डेसीलीटर ब्लड में 0.8 मिलीग्राम्स से नीचे है. रिसर्चर्स को पता चला कि जिन मरीज़ों में सीआरपी स्तर 20 से अधिक था, स्टिरॉयड देने से उनके मिकेनिकल वेंटिलेशन में जाने, या मरने के जोखिम में, 75 प्रतिशत की कमी देखी गई.

लेकिन, जिन मरीज़ों का सीआरपी लेवल 10 से कम था, उनमें स्टिरॉयड के इस्तेमाल से, मिकेनिकल वेंटिलेशन में जाने, या मरने का ख़तरा 200 प्रतिशत बढ़ गया.


यह भी पढ़ें: अध्ययन में दावा- कोरोनावायरस कोविड की दवा रेमडेसिवीर के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर सकता है


कैंसर मरीज़ों को डेक्सामेथासोन से फायदे की उम्मीद नहीं

एक और स्टडी से पता लगा है कि डेक्सामेथासोन से, उन कैंसर मरीज़ों के मरने की संभावना बढ़ जाती है, जिन्हें कोविड-19 संक्रमण हो जाता है.

कैंसर डिस्कवरी में प्रकाशित आंकड़े, ख़ासकर कैंसर से जुड़ी उस स्टडी का हिस्सा हैं, जिसमें कोविड-19 के नतीजों में तथाकथित सुधार के लिए, किए जा रहे इलाज का अध्ययन किया गया.

स्टडी में देखा गया कि जिन मरीज़ों को कोविड-19 के किसी संभावित इलाज के साथ कोर्टिकोस्टिरॉयड का भारी डोज़ दिया जा रहा था, उनके मरने की संभावना, उन मरीज़ों के मुक़ाबले दोगुनी थी, जिन्हें दूसरी दवाएं दी जा रहीं थी या जिन्हें किसी इलाज की ज़रूरत नहीं थी.

रिसर्चर्स ने कहा कि ऐसे मरीज़ बहुत कम संख्या में थे, जिनका सिर्फ स्टिरॉयड से इलाज किया जा रहा था, जिसकी वजह से अकेले स्टिरॉयड का विश्लेषण करना मुश्किल था.

शोधकर्ताओं का कहना था कि कैंसर मरीज़ों में, पहले ही इम्युनिटी कम हो चुकी होती है, और स्टिरॉयड्स से चीज़ें और बिगड़ सकती हैं. लेकिन टीम ने कहा कि इन नतीजों की पुष्टि के लिए और ट्रायल्स की ज़रूरत है.

हाइपरटेंशन की दवाओं से कोविड-19 का ख़तरा बढ़ने की संभावना नहीं

चूहों पर हुई एक नई स्टडी से पता चला है, कि हाइपरटेंशन, दिल और गुर्दों की बीमारियों के इलाज के लिए, व्यापक रूप से इस्तेमाल की जा रही कुछ दवाओं से, गंभीर और संभावित रूप से घातक, कोविड-19 संक्रमण के ख़तरे में इजाफा नहीं होता, जैसा कि पहले डर था.

मेडिकल कम्युनिटी ने पहले ये चिंता ज़ाहिर की थी कि ये दवाएं, जो एस इनहिबिटर्स और एंजियोटेंशन रिसेप्टर ब्लॉकर्स (एआरबी) होती हैं, एसीई2 को बढ़ा सकती हैं- ये वो प्रोटीन है जो मेज़बान सेल्स से चिपकने में, सार्स-सीओवी-2 की मदद करता है. ऐसी सूरत में, कोविड-19 संक्रमण और उसकी गंभीरता का ख़तरा, बढ़ने की संभावना हो सकती है.

लेकिन नए नतीजों में, चूहों के गुर्दों की झिल्लियों में एसीई-2 में कमी देखी गई, जबकि लंग्स की झिल्लियों में कोई बदलाव नहीं दिखा. कोविड-19 महामारी के समय में स्टडी ने इन दवाओं के सुरक्षित होने का समर्थन किया है.

पोस्टमॉर्टम में कोविड-19 मरीज़ों में दिखा दिल पर असर

सिलसिलेवार पोस्टमॉर्टम्स से पता चला है कि कोविड-19 मरीज़ों के दिल को नुकसान पहुंचा है. दिल की मांसपेशियों में सूजन की जगह मांसपेशियों के छितरे हुए अलग-अलग सेल्स में एक अनोखा पैटर्न देखा गया

सर्क्युलेशन पत्रिका में छपे नतीजों में कुछ सूक्ष्म बदलावों की पहचान की गई है, जो इस धारणा को चुनौती देते हैं कि मायोकार्डिटिस- जिसमें किसी वायरल इन्फेक्शन की वजह से, दिल की मांसपेशियां सूज जाती हैं- गंभीर सार्स-सीओवी-2 इन्फेक्शन में मौजूद रहती है.

कोविड-19 में दिल को हुए नुक़सान का मैकेनिज़्म, अच्छे से समझा नहीं गया है लेकिन शोधकर्ताओं ने कई सिद्धांत पेश किए हैं, जिनके लिए आगे जांच की ज़रूरत है.

ये पोस्टमॉर्टम उन 22 मरीज़ों पर किए गए जो अमेरिका में कोविड से मारे गए थे और जिनमें अधिकांश अफ्रीकन अमेरिकन थे.

टीम को छोटी ब्लड वैसल्स की लाइनिंग में, कुछ सेल्स के अंदर वायरल इन्फेक्शन दिखाई दिया. कम लेवल पर भी ये किसी निजी सेल को शिथिल कर सकता है जिससे वो ख़त्म हो सकता है. कोविड-19 से जुड़े साइटोकीन स्टॉर्म के प्रभाव भी, इसमें अपना रोल निभा सकते हैं जिसमें संक्रमण से लड़ने में, इम्यून सिस्टम के सेल्स में अत्याधिक प्रतिक्रिया हो सकती है.

नाइट्रिक ऑक्साइड से कोविड-19 मरीज़ों के नतीजों में हो सकता है सुधार

1993 से प्रकाशित रिसर्च की समीक्षा से पता चला है कि नाइट्रिक ऑक्साइड को अंदर खींचने से, कोविड-19 मरीज़ों के क्लीनिकल नतीजे सुधर सकते हैं.

नाइट्रिक ऑक्साइड एक एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इन्फ्लेमेटरी मॉलीक्यूल है, जो वायरल संक्रमण और फेफड़ों की दूसरी बीमारियों के संदर्भ में, पलमोनरी वैस्कुलर क्रिया में एक प्रमुख रोल अदा करता है.


यह भी पढे़ं: एचसीक्यू से कोविड का ख़तरा घटने संबंधी आईसीएमआर के अध्ययन पर एम्स दिल्ली और रायपुर के डॉक्टरों ने उठाए सवाल


स्टडी के अनुसार, सार्स-सीओवी-1 इन्फेक्शन जिससे 2003 में सार्स का प्रकोप फैला था, नाइट्रिक ऑक्साइड से वायरल के दोहराए जाने में रुकावट लाने में मदद मिली. ये उन कई संभावित कोविड-19 ट्रीटमेंट्स में से एक है जिसे अमेरिका के एफडीए के इमर्जेंसी एक्सपैंडेड एक्सेस प्रोग्राम में शामिल किया गया है.

रिसर्चर्स ने कहा कि नाइट्रिक ऑक्साइड, सामान्य वैस्कुलर क्रिया को बनाए रखने और इन्फ्लेमेटरी कैस्केड्स को नियमित करने में मुख्य भूमिका निभाता है जिससे एक्यूट लंग इंजरी (एएलआई) और एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (आर्ड्स) हो सकता है.

रिसर्चर्स नाइट्रिक ऑक्साइड के साथ काम जारी रखे हुए हैं और टीम की सिफारिश है कि स्टडीज़ के मूल्यांकन में, डोज़ और प्रोटोकोल्स के परिवर्तन की जांच होनी चाहिए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments