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Saturday, 2 November, 2024
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नई शिक्षा नीति में ‘हिंदी’ पढ़ना होगा जरूरी, इसे लागू किए जाने को लेकर विरोध शुरू

2019 की नई शिक्षा नीति को विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है. इसमें कहा गया है कि हिंदी नहीं बोलने वाले राज्यों को क्षेत्रीय भाषा, अंग्रेज़ी और हिंदी को शामिल करना पड़ेगा.

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नई दिल्ली: अगर नई शिक्षा नीति लागू हुई तो हिंदी नहीं बोलने वाले राज्यों को क्षेत्रीय भाषा, अंग्रेज़ी और हिंदी को शामिल करना पड़ेगा. इस नीति के लागू न किए जाने को लेकर विरोध शुरू हो चुका है. इसका सबसे अधिक विरोध अभी तक दक्षिण भारत के राज्यों में देखने को मिल रहा है. शनिवार सुबह से सोशल मीडिया पर #StopHindiImposition यानी हिंदी को जबरदस्ती लागू किए जाने के विरोध में एक हैशटैग टॉप पर ट्रेंड कर रहा है. इस ट्रेंड के पीछे तमेलियन यानी तमिलनाडु के लोग हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये हैशटैग नई प्रस्तावित शिक्षा नीति में शामिल उस बात के ख़िलाफ़ है जिसमें शिक्षा के माध्यम से जुड़ी तीन भाषाओं में हिंदी के भी शामिल किए जाने की बात है.

तमिलनाडु की पार्टी अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कडगम के टीटीवी दिनाकरण ने मामले पर ट्वीट कर कहा, ‘हिंदी नहीं बोलने वाले लोगों पर हिंदी थोपे जाने के इस प्रयास से देश की विविधता को नुकसान होगा. जो हिंदी नहीं बोलते वो दोयम दर्जे के नागरिक में तब्दील हो जाएंगे. इसी वजह से केंद्र सरकार को इस प्रोजेक्ट तो तुरंत समाप्त कर देना चाहिए.’

वहीं डीएमके नेता टी सिवा ने त्रिची में कहा कि तमिलनाडु के लोगों पर हिंदी भाषा नहीं थोपी जा सकती है. हमलोग हिंदी भाषा का विरोध करेंगे और इसे रोकने का जो भी परिणाम होगा उसे झेलने के लिए यहां के लोग पूरी तरह तैयार हैं.

हिंदी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता से नेता बने मक्कल निधी मायम पार्टी के संस्थापक कमल हासन ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि मैंने कई हिंदी फिल्मों में काम किया है लेकिन मेरा मानना है कि हिंदी भाषा किसी पर भी जबरदस्ती थोपी नहीं जा सकती है.

क्या है नई शिक्षा नीति

2019 की नई शिक्षा नीति को विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है. इसमें कहा गया है कि हिंदी नहीं बोलने वाले राज्यों को क्षेत्रीय भाषा, अंग्रेज़ी और हिंदी को शामिल करना पड़ेगा. वहीं हिंदी बोलने वाले राज्यों को हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा भारत की अन्य आधुनिक भाषाओं को शामिल करना पड़ेगा.

नई नीति में ये भी कहा गया है कि छात्रों को भारतीय भाषाओं में अपने बोलने की और लिखित दक्षता का भी प्रमाण देना होगा. भाषा से जुड़े इन्हीं प्रस्तावित बदलावों को ट्विटर पर ख़ूब ट्रोल किया जा रहा है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की पार्टी डीएमके के सासंद तिरुचि शिवा ने इस नीति के विरोध में कहा, ‘हिंदी को तमिलनाडु पर थोपना किसी गोदाम में आग़ लगाने जैसा है.’ उन्होंने कहा कि इसका विरोध करने के लिए जो भी करना पड़े उनकी पार्टी वो करेगी.

हिंदी का तमिलनाडु में विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है. राज्य में पहली बार ये विरोध 1937 में हुआ था. इसके बाद 1946 से 1950 के बीच कई प्रदर्शन हुए जिनके केंद्र में हिंदी ही थी. तब से लेकर अब तक राज्य में न जाने कितने ही हिंदी विरोधी प्रदर्शन हुए हैं. वहीं, नई शिक्षा नीति में हिंदी की वकालत किए जाने के ख़िलाफ़ तमिलनाडु के लोग सोशल मीडिया पर विरोध शुरू कर चुके हैं.

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