नयी दिल्ली, 13 सितंबर (भाषा) भारत की पांडुलिपि विरासत पर आयोजित वैश्विक सम्मेलन ‘ज्ञान भारतम’ में शनिवार को इस बात पर जोर दिया गया कि पांडुलिपियां “केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शन करने वाला प्रकाश-पुंज हैं।”
विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन के आखिरी दिन पांडुलिपियों में निहित ज्ञान को सहेजने, उनका डिजिटलिकरण करने और उन्हें लोगों के बीच पहुंचाने के लिए नयी दिल्ली घोषणापत्र भी अपनाया गया।
नयी दिल्ली घोषणापत्र में कहा गया है कि पांडुलिपियां “किसी राष्ट्र की जीवंत स्मृति और सभ्यतागत पहचान का आधार हैं।”
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां प्राचीन पांडुलिपियों का सबसे समृद्ध संग्रह है। इस संग्रह में लगभग एक करोड़ ग्रंथ शामिल हैं, जिनमें देश का पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत समाहित है।
सम्मेलन में अपनाए गए घोषणापत्र में “मूल पांडुलिपियों को प्राप्त करने, उन्हें देश में लाने और उनकी डिजिटल प्रतियां सुरक्षित रखने” का भी संकल्प लिया गया है।
इसमें कहा गया है, “हम इस विशाल खजाने को सहेजने, उसका डिजिटलीकरण करने और उसे लोगों के बीच पहुंचाने का संकल्प लेते हैं। हमारा दृढ़ विश्वास है कि पांडुलिपियां केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शन करने वाला प्रकाश-पुंज हैं।”
केंद्र सरकार ने संस्कृति मंत्रालय के तहत एक प्रमुख पहल के रूप में ज्ञान भारतम मिशन की शुरुआत की है। इसका मकसद भारत भर के शैक्षणिक संस्थानों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों और निजी संग्रहों में मौजूद एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण, संरक्षण और डिजिटलीकरण करना तथा उनकी पहुंच सुलभ बनाना है।
घोषणापत्र में लोगों को जागृत करने और ज्ञान भारतम मिशन को जन आंदोलन बनाने का भी संकल्प लिया गया है।
भाषा पारुल पवनेश
पवनेश
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