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Thursday, 9 May, 2024
होमदेश‘कभी रिश्वत नहीं लेना’—2001 में गुजरात के सीएम बनने जा रहे मोदी को मां से मिली थी नसीहत

‘कभी रिश्वत नहीं लेना’—2001 में गुजरात के सीएम बनने जा रहे मोदी को मां से मिली थी नसीहत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मां हीराबेन के 100वें जन्मदिन पर एक मार्मिक ब्लॉग लिखा है. इसमें उन्होंने एक मुस्लिम लड़के अब्बास का भी जिक्र किया है, जो कई सालों तक उनके परिवार के साथ रहा था.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी के बचपन के समय अब्बास नाम का एक मुस्लिम लड़का कई सालों तक गुजरात में उनके और उनके परिवार के साथ रहा था, क्योंकि उसके पिता की असमय ही मृत्यु हो गई थी. प्रधानमंत्री ने शनिवार को अपनी मां हीराबेन के 100वें जन्मदिन पर लिखे ब्लॉग में यह जानकारी दी है.

मोदी ने पूरी श्रद्धा के साथ अपनी मां का नमन करते हुए बताया कि जब वह 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने जा रहे थे, तब उनकी मां ने कहा कि वह उनके ‘सरकारी कामकाज’ के बारे में कुछ भी नहीं जानती हैं, लेकिन साथ ही यह नसीहत जरूर दी कि ‘कभी किसी से रिश्वत नहीं लेना.’

यह बताते हुए कि उनकी मां कैसे दूसरों की खुशियों में खुश हो जाती थीं, मोदी ने अब्बास की कहानी सुनाई, जिसके पिता की मृत्यु तभी हो गई थी जब वह पढ़ाई ही कर रहा था. प्रधानमंत्री ने ब्लॉग में लिखा कि उनके पिता दामोदरदास मोदी उसे परिवार के साथ रहने के लिए ले आए.

अंग्रेजी में लिखे इस ब्लॉग में मोदी ने बताया, ‘हमारा घर भले ही छोटा रहा हो लेकिन वह (मेरी मां) बहुत बड़े दिल वाली हैं. मेरे पिता के एक करीबी दोस्त पास के गांव में रहते थे. उनकी असमय मृत्यु के बाद मेरे पिता अपने मित्र के पुत्र अब्बास को हमारे घर ले आए. उसने हमारे साथ रहकर ही अपनी पढ़ाई पूरी की.’

उन्होंने बताया, ‘मां अब्बास की भी उसी तरह देखभाल करती और उतना ही स्नेह भाव रखतीं जितना हम सभी भाई-बहनों के लिए रखती थीं. हर साल ईद के मौके पर वह उनके मनपसंद पकवान बनातीं. त्योहारों पर पड़ोस के बच्चों का हमारे घर आना और मां की विशेष तैयारियों का लुत्फ उठाना आम बात थी.’

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मोदी ने अपने ब्लॉग में बचपन की तमाम स्मृतियों को साझा किया, खासकर उन खास पलों को याद किया जो उन्होंने अपनी मां के साथ बिताए थे. प्रधानमंत्री ने बताया कि यह पहली बार है जब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी मां और खुद पर उनके प्रभाव के बारे में लिखा है.

एक बेटे के तौर पर उन्होंने पाया कि हीराबेन का जीवन आसान नहीं था. मोदी लिखते हैं, यह जीवन गरीबी और कमरतोड़ मेहनत में डूबा था. लेकिन फिर भी वह दूसरों की खुशियों में ही अपनी खुशी तलाश लेती थीं.

उन्होंने लिखा, ‘मां ने मुझे हमेशा एक दृढ़निश्चयी बनने और गरीब कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया है. मुझे याद है जब यह तय किया गया था कि मैं गुजरात का मुख्यमंत्री बनूंगा, मैं राज्य में मौजूद नहीं था. मैं विमान से वहां उतरते ही सीधे मां से मिलने गया. वह बेहद खुश थी और उन्होंने पूछा कि क्या मैं फिर से उनके साथ रहने जा रहा हूं. लेकिन उन्हें मेरा जवाब पता था.’


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‘मुश्किलों भरा बचपन’

मोदी ने लोगों को गरीबी से त्रस्त अपने परिवार की झलक भी दिखाई, उन्होंने बताया कि कैसे उनकी मां का बचपन ‘बेहद कठिनाइयों भरा’ था और कैसे उन्हें छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ घरों में ‘बर्तन धोने’ तक के लिए मजबूर होना पड़ा.

उन्होंने लिखा, ‘बहुत मामूली आय को देखते हुए वह खर्च की भरपाई के लिए चरखा कातने के लिए भी समय निकालती थीं. वह कपास छीलने से लेकर सूत कातने तक सब कुछ करतीं. इस कमरतोड़ मेहनत के बीच वह इस बात का भी पूरा ध्यान रखतीं कि कहीं हमें कपास के कांटे न चुभ जाएं.’

उन्होंने लिखा, ‘आज की तुलना में मां का बचपन बेहद कठिन था. शायद, भगवान ने यही नियति तय कर रखी थी. मां भी मानती हैं कि ये सब भगवान की मर्जी थी. लेकिन बचपन में अपनी मां को खो देना और यह बात कि वह अपनी मां का चेहरा भी नहीं देख पाई थीं, उन्हें काफी दर्द पहुंचाती थी.’

मोदी ने बताया कि उनका परिवार एक ‘बहुत छोटे से घर में रहता था जिसमें खिड़की तक नहीं थी.’

उन्होंने लिखा, ‘वडनगर में हमारा परिवार एक छोटे से घर में रहता था, जिसमें एक खिड़की तक नहीं थी, शौचालय या बाथरूम जैसी विलासिता की बात तो छोड़ ही दीजिए. मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत वाले इस एक कमरे के मकान को हम अपना घर कहते थे. और हम सभी—मेरे माता-पिता, मेरे भाई-बहन और मैं—इसमें ही रहकर पले-बढ़े.’

उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता ने मां के लिए खाना बनाना आसान करने के लिए बांस की डंडियों और लकड़ी के तख्तों से एक मचान बना दिया था.

उन्होंने लिखा, ‘यह ढांचा हमारी रसोई थी. मां खाना बनाने के लिए मचान पर चढ़तीं और पूरा परिवार उस पर बैठकर खाना खाता था.’

पिता की थी चाय की दुकान

प्रधानमंत्री मोदी ने इस ब्लॉग में उस चाय की दुकान का भी जिक्र किया जो उनके पिता चलाते थे.

उन्होंने लिखा, ‘एकदम घड़ी देखकर सुबह चार बजे मेरे पिता काम पर निकल जाते थे. उसके कदमों की आहट सुनकर ही पड़ोसी जान जाते थे कि सुबह के चार बज गए हैं और दामोदर काका काम पर निकल रहे हैं. अपनी छोटी-सी चाय की दुकान खोलने से पहले एक स्थानीय मंदिर में पूजा-अर्चना करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था.’

उनकी मां हीराबेन ने कभी भी अपने बच्चों से पढ़ाई छोड़ने और घर के कामों में मदद करने के लिए नहीं कहा.

उन्होंने आगे लिखा, ‘हालांकि, उनको इतनी मेहनत करते देखकर उनकी मदद की कोशिश करना हमरा परम कर्तव्य था. मुझे स्थानीय तालाब में तैरने का सच में बहुत आनंद आता था. तो मैं घर से सारे गंदे कपड़े लेकर तालाब पर चला जाता और उन्हें धो डालता. इससे कपड़े धोना और मेरा खेल, दोनों साथ-साथ हो जाते थे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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