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Monday, 23 December, 2024
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तैरती दुकानें, सड़कें बनीं नदियां – कैसे बाढ़ ने आर्थिक रूप से असम के सिलचर को घुटनों पर ला दिया

NDRF सिलचर में राहत अभियान चला रही है, जो कि अधिकतर पानी में डूबा हुआ है. लेकिन बहुत से परिवारों को अभी भी आवश्यक वस्तुओं की ज़रूरत है. अधिकारियों का कहना है कि राहत अभियान अभी कुछ और दिन जारी रहेगा.

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सिलचर, कछार: ‘पिछले कुछ दिनों में पानी का स्तर सिर्फ कुछ सेंटीमीटर कम हुआ है’, ये कहना था असम में कछार ज़िले के सिलचर के काथल क्षेत्र में, एक इमारत की छत पर बैठे 27 वर्षीय ज़ाकिर लस्कर का. बहुत से दूसरे लोगों की तरह लस्कर और उसके परिवार को उस समय मजबूरन एक बहु-मंज़िली इमारत में पनाह लेनी पड़ी, जब रविवार को बेथुकांडी में बराक नदी ने एक जगह पुश्ते को तोड़ दिया.

राहत सोमवार को आई जब राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) ने इलाक़े में अपना राहत कार्य शुरू किया. चमकीली नारंगी पोशाक पहने लोगों ने रबर की नौका पर पानी की बोतलों के कार्टन्स, मोमबत्तियां, और केक लादे थे जिन्हें पानी में घिरे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को बांटा जाना था.

पेशे से ऑटो चलाने वाले लस्कर ने कहा, ‘सोमवार रात से पानी काथल रोड पर आ गया, हमने सोचा नहीं था कि वो हमारे घरों में घुस जाएगा. लेकिन घरों को नुक़सान पहुंचा; मैं एक ऊंचाई वाली जगह पर गया जहां मेरे ससुर मेरे बच्चों के साथ रहते हैं. लेकिन वहां भी कमरे में पानी भरा हुआ था. वो रात हमारे लिए बहुत मुश्किल थी. हमें आख़िरकार यहां आना पड़ा’.

असम में 2,254 गांव और 22 ज़िले बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. असम के फ्लड रिपोर्टिंग एंड इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (फ्रिंम्स) के अनुसार, सोमवार तक 21.52 लाख लोग और 74,655.89 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली फसलें बाढ़ से प्रभावित हो चुकी थीं. सोमवार को आठ और मौतों के साथ मृतकों की संख्या 134 पहुंच गई.

असम की 40 प्रतिशत से अधिक ज़मीन पर बाढ़ के नुक़सान का ख़तरा बना रहता है, लेकिन बराक घाटी का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले सिलचर शहर का अधिकांश हिस्सा अब पानी में डूबा है. स्थानीय और सिलचर से बाहर रहने वाले नागरिकों में काफी बेचैनी है कि प्रशासन ने बराक घाटी में बाढ़ की स्थिति को ठीक से नहीं संभाला है, जिसमें करीमगंज, हैलाकांडी और कछार ज़िले आते हैं.

पूरे असम में राहत शिविरों में पनाह लेने वाले 1.91 लाख लोगों में से 1 लाख से अधिक केवल कछार ज़िले में हैं. इसी तरह फ्रिम्स के आंकड़ों के अनुसार, कुल 715 राहत वितरण शिविरों में से 333 राहत शिविर केवल कछार में काम कर रहे हैं.

सिलचर कछार का ज़िला मुख्यालय है. गुवाहाटी से 326 किमी दूर स्थित सिलचर का एक सामरिक महत्व है, चूंकि ये मणिपुर और मिजोरम के पड़ोसी इलाक़ों का प्रमुख आर्थिक प्रवेश द्वार है.

रविवार को असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बाढ़ की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए, तीन दिन में दूसरी बार सिलचर का दौरा किया. उन्होंने दावा किया कि ये बाढ़ ‘मानव-निर्मित’ थी, चूंकि उनके पास जानकारी थी कि कुछ लोगों ने तटबंध को तोड़ा था.

कुछ इलाक़ों में पीने का पानी नहीं

एनडीआरएफ की 12वीं बटालियन के कर्मी जो इटानगर से आए हैं, अपनी नौकाओं पर काथल इलाके से गुज़रते हुए अंबिकापुर ग्राम पंचायत क्षेत्र के सिंगारी गांव पहुंचते हैं, जो काथल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है.

तमाम घर और पेड़ बाढ़ के पानी में डूबे हैं जो क़रीब 5 फीट गहरा है. खासकर पानी की बोतलों के लिए उठती मदद की आवाज़ें, जल्द ही नौका पर सवार एनडीआरएफ कर्मियों तक पहुंच जाती हैं.

एक निवासी ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता था, कहा, ‘मैं असम रायफल्स में हूं और छुट्टियों में सिलचर आया था जहां मैं फंस गया हूं. मैंने ऐसी बाढ़ पहले कभी नहीं देखी. इस घर में तीन परिवार हमारे साथ फंसे हुए हैं’.

NDRF personnel with relief material leave for the outskirts of Silchar town | Angana Chakrabarti | ThePrint
राहत सामग्री के साथ एनडीआरएफ के जवान सिलचर कस्बे के बाहरी इलाके के लिए रवाना होते हुए। | अंगना चक्रवर्ती | दिप्रिंट

आवश्यक सप्लाई लाने के लिए कुछ निवासी कामचलाऊ कश्तियों पर बैठकर एनडीआरएफ नौका तक पहुंचते हैं, जो उन्होंने बांस, थर्मोकोल, और टायरों से बनाई हैं. अगले तीन घंटों के भीतर, एनडीआरएफ कर्मी पानी की सभी बोतलें बांट देते हैं, लेकिन मांग पूरी करने के लिए ये पर्याप्त नहीं है.

एक एनडीआरएफ सदस्य ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर सप्लाई वितरित करते हैं. हम उन्हें कहते हैं कि जितना हो सके उतना उन्हें आपस में साझा करें’.

बचाव और राहत अभियान की निगरानी कर रहीं कछार चुनाव अधिकारी और कार्यकारी मजिस्ट्रेट नवनीता हज़ारिका ने कहा, ‘फिलहाल सबसे बुनियादी ज़रूरत है पानी, इसलिए हम उन्हें पानी और दूसरी चीज़ें मुहैया करा रहे हैं जो हम अपनी नौकाओं में ले जा सकते हैं. फिलहाल के लिए राहत शिविरों में राशन उपलब्ध कराया जा रहा है. एक दो दिन में हम उसका वितरण शुरू कर देंगे’.

तंग राहत शिविर

An elderly man takes rest at the relief camp set up in Maharishi Vidya Mandir School | Angana Chakrabarti | ThePrint
महर्षि विद्या मंदिर स्कूल में बने राहत शिविर में विश्राम करते बुजुर्ग। | अंगना चक्रवर्ती | दिप्रिंट

शहर के काथल रोड पर स्थित महर्षि विद्या मंदिर स्कूल अब सैकड़ों परिवारों के लिए एक अस्थायी आश्रय है. हर कमरे को सात आठ हिस्सों में बांटा गया है, जिन्हें एक एक परिवार को दिया गया है.

54 वर्षीय तमीज़ुद्दीन बोरबोइया कहते हैं, ‘यहां हमारे पास सिर्फ कुछ बरतन और एक बेड कवर है. घर में अभी भी कंधों तक पानी भरा है. मैं मज़दूरी का काम करता था लेकिन अब मेरे पास कुछ नहीं है. बाढ़ की वजह से अब कोई काम नहीं है, और मैंने अपना सब कुछ गंवा दिया है’.

उनका कहना है कि राहत सामग्री परिवारों के लिए नाकाफी रही है. ‘पहले उन्होंने भोजन के पैकेट्स गिराए थे, और फिर एनडीआरएफ के हाथों और सामान भेजा था, लेकिन वो काफी नहीं है. हमारे पास अभी तक कोई मेडिकल टीम भी नहीं पहुंची है’.

35 वर्षीय मछली विक्रेता दीपू चंद्र दास कहते हैं कि आसपास के लोगों को ताले तोड़कर अंदर दाख़िल होना पड़ा. ‘मैंने अपने बच्चे को अपने कांधे पर बिठाया हुआ था, और मेरे एक हाथ में एक बैग था. हम अपने कोई कागज़ात साथ नहीं ले जा सके’.

ज़िले के अधिकारियों के अनुसार, कछार ज़िले में बचाव और राहत अभियान अभी और कुछ दिन जारी रहेगा.

अपने दौरे के दौरान मुख्यमंत्री ने रविवार को मीडिया से कहा, कि अगर कोई ताज़ा बारिश नहीं होती है, तो अगले 48 घंटों में बाढ़ का पानी उतरना शुरू हो जाएगा.

सरमा ने मीडिया से कहा, ‘असम के बहुत से ज़िलों का पहले भी बाढ़ से सामना हुआ है, लेकिन हमने कहीं भी इतनी तैनाती नहीं देखी. अड़सठ नौकाएं काम पर लगी हैं; एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, (प्रदेश आपदा प्रतिक्रिया बल),सेना, और भारतीय वायु सेना ये सुनिश्चित का अनथक प्रयास कर रही हैं, कि आख़िरी बिंदु तक राहत पहुंच जाए’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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