नयी दिल्ली, पांच मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 15 जून को होने वाली राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-स्नातकोत्तर (नीट-पीजी) 2025 में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए क्षैतिज आरक्षण की मांग करने वाली याचिका पर सोमवार को केंद्र और अन्य पक्षों से जवाब मांगा।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ उन तीन ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई, जो चिकित्सक हैं और जिन्होंने राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा-स्नातकोत्तर (नीट-पीजी) 2025 के संबंध में 16 अप्रैल के नोटिस और 17 अप्रैल के सूचना बुलेटिन को चुनौती दी है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि यह अधिसूचना उच्चतम न्यायालय द्वारा 2014 के फैसले में दिए गए निर्देशों का उल्लंघन करते हुए जारी की गई है, क्योंकि इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए क्षैतिज आरक्षण की किसी योजना/नीति का उल्लेख नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह उपस्थित हुईं।
याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने 2014 के अपने फैसले में केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया था कि वे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नागरिकों के रूप में मानने के लिए कदम उठाएं और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सार्वजनिक नियुक्तियों के मामलों में सभी प्रकार के आरक्षण का विस्तार करें।
अधिवक्ता पारसनाथ सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया, ‘‘विवादित नोटिस के परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ताओं के पास बिना किसी उपाय के एक अधिकार रह गया है, जिसके तहत इस न्यायालय द्वारा कानून की बाध्यकारी घोषणा के बावजूद अब संस्थानों में चिकित्सा शिक्षा के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कोई आरक्षण नहीं है। ’’
पीठ ने केंद्र, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग सहित अन्य को नोटिस जारी कर याचिका पर जवाब मांगा और मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की।
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