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Sunday, 16 June, 2024
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तेलंगाना में नीम के पेड़ फिर बीमारी की चपेट में

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हैदराबाद, 23 दिसंबर (भाषा) नीम में भले ही बैक्टेरिया एवं कवक रोधी एवं अन्य बहुपयोगी गुण हों लेकिन ये (गुण) भी नीम के पेड़ों को कीटों एवं रोगों के हमले से बचा नहीं पाते।

पिछले कुछ सालों में तेलंगाना और कुछ अन्य दक्षिणी राज्यों में यह नजारा आम हो चला है जहां नीम के वृक्षों के पत्ते एवं टहनियां सूख जाती हैं।

तेलंगाना नीम के पेड़ों के लिए खतरा बने रोग की पहचान ‘ट्वीग ब्लाइट और डायबैक’ रोग के रूप में हुई है जो इस साल भी बड़े पैमाने पर नीम के पेड़ों को प्रभावित कर रहा है।

तेलंगाना के सिद्दीपेट जिले के सरकारी फोरेस्ट कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के सहायक प्रोफेसर (पादक संरक्षण) जगदीश बत्थूला ने कहा कि इस मौसम में यह रोग व्यापक पैमाने पर फैला हुआ है।

उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा कि डायबैक रोग सभी उम्र के नीम के पेड़ों की पत्तियों , टहनियों और फूलों को प्रभावित करता है तथा बुरी तरह प्रभावित पेड़ों में पुष्प पल्लवन शत-प्रतिशत बर्बाद हो जाता है।

उन्होंने कहा कि डायबैक बीमारी देश में पहली बार 1990 के दशक में उत्तराखंड के देहरादून में सामने आयी थी और उसके बाद फिर उसे 2019 में तेलंगाना में देखा गया।

उन्होंने कहा कि तीन साल पहले तेलंगाना में यह बीमारी देखी गई थी लेकिन बाद में यह कम हो गई।अब एक बार फिर इसने अपना अपना सिर उठाया है। प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना स्टेट एग्रिकल्चरल यूनिवर्सिटी के अनुसंधान निदेशक जगदीश्वर ने कहा कि डायबैक बीमारी मुख्यत: फोमोपसिस अजाडिराचटे कवक से फैलती है।

इस बीमारी की रोकथाम के बारे में पूछे जाने पर बत्थूला ने कहा कि अन्य कृषि फसलों की भांति कवकनाशक या कीटनाशक का छिड़काव करना मुश्किल काम होता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए पहले क्षतिग्रस्त टहनियां काट दी जाती हैं और फिर कवकनाशक एवं कीटनाशक को मिलाकर पेड़ पर छिड़काव किया जा सकता है।

भाषा राजकुमार नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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