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Sunday, 22 December, 2024
होमदेश'जागरूकता की ज़रूरत', डीडीए EWS निवासियों को बेसिक सिविक अवेयरनेस सिखाने के लिए ले सकता है NGO की मदद

‘जागरूकता की ज़रूरत’, डीडीए EWS निवासियों को बेसिक सिविक अवेयरनेस सिखाने के लिए ले सकता है NGO की मदद

वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि निवासियों को बुनियादी नागरिक जागरूकता सिखाई जानी चाहिए, जिसमें कचरे को अलग करके फेंकना और अन्य बुनियादी चीजें शामिल होंगी, जैसे कि यह सुनिश्चित करना कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें.

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नई दिल्ली: डीडीए के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा स्लम पुनर्वास परियोजना के हिस्से के रूप में कालकाजी एक्सटेंशन में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए निर्मित 3,024 फ्लैट सौंपे जाने के करीब एक साल बाद, अब वह यहां के निवासियों को “बुनियादी नागरिक जागरूकता” में “शिक्षित” करने के लिए काम कर रहे हैं. इसमें “कचरे को फेंकने, उसके सही निपटारे” के तरीकों के साथ-साथ इन फ्लैटों में रहने वाले बच्चों की स्कूली शिक्षा की आवश्यकता भी शामिल है.

डीडीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “उन्हें [निवासियों] को यह सुनिश्चित करने के लिए थोड़े से प्रोत्साहन या सिखाने की ज़रूरत है कि वे नई जीवन स्थितियों को आसानी से कैसे अपना सकते है. इसके लिए, उन्हें स्वस्थ, शिक्षित और कुशल होने की आवश्यकता है. डीडीए निवासियों के साथ जुड़ने के लिए एक एनजीओ को शामिल करने पर विचार कर रहा है.”

अधिकारी ने बताया कि निवासियों के शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक परिवर्तन भी होना चाहिए.

उन्होंने कहा, “चूंकि डीडीए उस समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने में असमर्थ है जिसे वह हासिल करना चाहता है, इसलिए एक एनजीओ की आवश्यकता है.”

वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “निवासियों को बुनियादी नागरिक जागरूकता सिखाई जानी चाहिए, जिसमें कचरे को अलग करके फेंकना और अन्य बुनियादी चीजें शामिल होंगी, जैसे कि यह सुनिश्चित करना कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें. तभी हम कह सकते हैं कि निवासियों का पूरी तरह से पुनर्वास किया गया है.” उन्होंने कहा कि डीडीए इसे हासिल करने में मदद के लिए एक एनजीओ के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने के लिए सक्रिय रूप से विचार कर रहा था.

हालांकि, इस पहल की सामाजिक कार्यकर्ताओं और शोधार्थियों ने कुछ आलोचना की है, कुछ ने इसे “सही” नहीं बताया, जबकि अन्य ने बताया कि निवासियों की जीवनशैली भी “उन्हें प्रदान की जाने वाली सुविधाओं पर निर्भर करेगी”.

दिल्ली स्थित मानवाधिकार संगठन हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क की कार्यकारी निदेशक एनाक्षी गांगुली के अनुसार, विचार करने योग्य एक मुख्य कारक यह था कि निवासियों के परिवार बढ़ रहे थे और अब वे एक बेडरूम-हॉल-किचन (बीएचएल) फ्लैट तक ही सीमित थे, और जिसका साफ मतलब है जगह की कमी.

उन्होंने कहा कि आवास और उसके आसपास के रखरखाव की जिम्मेदारी केवल निवासियों पर नहीं डाली जा सकती. सच तो यह है कि ऐसा करके गरीबों को शहर से बाहर किया जा रहा है. इससे उनके लिए जीवन कठिन हो जाता है, खासकर जगह की कमी के कारण.

आवास और शहरी शोधकर्ता अरविंद उन्नी ने डीडीए के दृष्टिकोण को “अनुग्रहकारी” बताया, सुझाव दिया कि डीडीए को इस मुद्दे पर एक भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.

उन्होंने कहा, “तथ्य यह है कि एक अलग प्रकार के आवास में जाने से उनके [पूर्व झुग्गी निवासियों] के [आजीविका और वित्तीय स्थितियों, जगह की कमी और झुग्गी में रहने की परेशानी के कारण] रहने के तरीके में बदलाव नहीं आएगा. कचरा पृथक्करण के बारे में शिक्षा फर्जी है, क्योंकि दिल्ली में कई घर, जिनमें संपन्न इलाके भी शामिल हैं, शुरू से ही इसका पालन नहीं करते हैं.”

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए व्हाट्सएप पर डीडीए प्रवक्ता बिजय शंकर पटेल से संपर्क किया. प्रतिक्रिया मिलते ही रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.


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यह कोई नई पहल नहीं

केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी के तहत डीडीए की इन-सीटू स्लम पुनर्वास (आईएसएसआर) परियोजना का हिस्सा, कालाकाजी एक्सटेंशन फ्लैट्स का उद्घाटन पिछले साल नवंबर में क्षेत्र के भूमिहीन कैंप के लाभार्थियों को चाबियां सौंपने के साथ किया गया था.

हालांकि, डीडीए अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि डीडीए द्वारा पुनर्वासित झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों के साथ एनजीओ के जुड़ने की अवधारणा नई नहीं है.

डीडीए के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दो गैर सरकारी संगठन स्वेच्छा से आनंद पर्वत पारगमन शिविर में निवासियों के साथ काम कर रहे हैं, जो दिल्ली की कॉलोनी के निवासियों के पुनर्वास के लिए डीडीए की अन्य आईएसएसआर परियोजना पूरी होने तक एक अस्थायी आवास है.

उन्होंने कहा कि डीडीए यह देखने के लिए उत्सुक था कि क्या झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को बेहतर जीवन स्थितियों के बारे में “शिक्षित” करने की ऐसी पहल को और अधिक आईएसएसआर परियोजनाओं तक बढ़ाया जा सकता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए डीडीए के पूर्व आयुक्त (योजना) ए.के. जैन ने कहा कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की जीवनशैली वास्तुकारों और योजनाकारों की “कल्पना” से बहुत अलग थी. उन्होंने कहा कि झुग्गी-झोपड़ियों के पुनर्वास में एक गैर सरकारी संगठन की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है.

जैन के अनुसार, डीडीए में पहले एक स्लम और जेजे (झुग्गी-झोपड़ी) विभाग शामिल था, जो स्वायत्त था लेकिन उसे डीडीए का समर्थन था और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के पुनर्वास के लिए गैर सरकारी संगठनों के साथ काम करता था.

जैन ने कहा, “एनजीओ झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की जरूरतों को पहचानेंगे और तदनुसार योजनाएं बनाई जाएंगी. झुग्गीवासियों को उनके नए घरों में स्थानांतरित करने के बाद भी, गैर सरकारी संगठन उनके साथ जुड़े रहे. लेकिन यह समझने की जरूरत है कि झुग्गीवासी बहुत परेशान हैं और उन्हें सहायता की जरूरत है. स्लम और जेजे विंग ने 1970 के दशक में देश में घोषित आपातकाल के दौरान दो लाख झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले परिवारों को स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.”

दिल्ली शेल्टर बोर्ड की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, स्लम और जेजे विभाग की स्थापना 1962 में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के हिस्से के रूप में की गई थी, लेकिन 1967 में इसे डीडीए में स्थानांतरित कर दिया गया था. 1974 और 1980 के बीच, 1992 में डीडीए से एमसीएस में स्थानांतरित होने से पहले, इसे डीडीए और एमसीडी के बीच आगे और पीछे स्थानांतरित किया गया था. यह अब दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड के हिस्से के रूप में दिल्ली सरकार के अधीन कार्य करता है.

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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