नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर (भाषा) नयी दिल्ली और चेन्नई सहित भारत के पांच महानगरों में लगभग 900 वर्ग किलोमीटर भूमि संभवत: धंस रही है और इससे 19 लाख लोगों को प्रति वर्ष चार मिलीमीटर से अधिक की भू धंसाव दर का सामना करना पड़ सकता है। एक अध्ययन में यह आकलन किया गया है।
अमेरिका के वर्जीनिया पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट और स्टेट यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने 2015-23 के दौरान एकत्रित उपग्रह चित्रों का विश्लेषण किया और पाया कि 2,400 से अधिक इमारतों पर पहले से ही संरचनात्मक क्षति का खतरा मंडरा रहा है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि भूमि धंसने से बाढ़ और भूकंप का खतरा बढ़ सकता है। उन्होंने बताया कि जब किसी शहर के नीचे की जमीन असमान रूप से धंसती है, तो इससे नींव कमज़ोर हो सकती है, बिजली की लाइनें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं और ढांचा कमजोर हो सकता है।
‘नेचर सस्टेनेबिलिटी’ पत्रिका में प्रकाशित अनुसंधान पत्र के मुताबिक अगर भूमि में धंसाव की यह दर जारी रही, तो अगले 50 वर्षों में 23,500 से ज्यादा इमारतों को बहुत ज्यादा संरचनात्मक क्षति का सामना करना पड़ सकता है। अध्ययन में दिल्ली और चेन्नई के अलावा मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु की इमारतों का अध्ययन किया गया।
वर्जीनिया पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट एंड स्टेट यूनिवर्सिटी के स्नातक छात्र और अनुसंधान पपत्र के प्रमुख लेखक नितेशनिर्मल सदाशिवम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि अध्ययन में शामिल शहरों में भूमि धंसाव के प्रमुख कारकों में अत्यधिक भूजल का दोहन शामिल है, तथा घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भवनों का भार भी भूमि धंसाव का कारण बन रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान धंसाव दर और भविष्य की स्थितियों का सटीक विश्लेषण इंगित करता है कि दिल्ली-एनसीआर में भवनों को नुकसान पहुंचने का खतरा सबसे अधिक है।’’
अनुसंधान पत्र के लेखकों ने कहा कि अनुमान है कि 2030 तक नई दिल्ली, जापान के तोक्यो को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे बड़ा महानगर बन जाएगा तथा भारत में दो अतिरिक्त महानगर भी उभरने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि देश की जनसंख्या 2024 तक 0.92 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है, जिससे कई शहरी क्षेत्रों में पानी की गंभीर कमी हो सकती है।
अनुसंधानकर्ताओं ने पांचों महानगरों में 13 लाख से अधिक भवनों का अध्ययन किया जहां आठ करोड़ आबादी रहती है। उन्होंने पाया, ‘‘878 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भू धंसाव की जानकारी मिली, जिससे लगभग 19 लाख लोग प्रति वर्ष चार मिलीमीटर से अधिक की धंसाव दर से प्रभावित हो रहे हैं।’’
अध्ययन के मुताबिक शहरों में व्यापक पैमाने पर भू-धंसाव देखा गया, जिसमें नयी दिल्ली में सबसे अधिक दर 51 मिलीमीटर प्रति वर्ष से भू धंसाव देखी गई। इसके बाद चेन्नई में 31.7 मिलीमीटर प्रति वर्ष तथा मुंबई में 26 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से भू-धंसाव दर्ज किया गया।
कोलकाता में भू-धंसाव की दर सबसे अधिक 16.4 मिलीमीटर प्रति वर्ष दर्ज की गई, जबकि बेंगलुरु में यह दर 6.7 मिलीमीटर प्रति वर्ष देखी गई।
अध्ययन के दौरान शहर के भीतर भू-धंसाव वाले स्थानों की भी पहचान की गई है, दिल्ली-एनसीआर में बिजवासन, फरीदाबाद और गाजियाबाद में क्रमशः 28.5 मिलीमीटर प्रति वर्ष, 38.2 मिलीमीटर प्रति वर्ष और 20.7 मिलीमीटर प्रति वर्ष भू-धंसाव होने का अनुमान है।
अनुसंधानकर्ताओं ने शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्तर पर भू धंसाव में वृद्धि देखी गई। उदाहरण के लिए दिल्ली-एनसीआर में द्वारका के निकट,प्रति वर्ष 15 मिलीमीटर से अधिक की दर से भू धंसाव हो रहा है।
अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि चेन्नई में, सबसे तेज भू-धंसाव दर अडियार नदी के आसपास के बाढ़ के मैदानों और शहर के केंद्रीय इलाके में देखी गई, जिनमें वलसरवक्कम, कोडम्बक्कम, अलंदूर और टोंडियारपेट शामिल हैं।
भाषा धीरज प्रशांत
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