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Monday, 25 November, 2024
होमदेशमौजूदा और पूर्व MPs, MLAs के खिलाफ करीब 5,000 आपराधिक मामले लंबित, सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट

मौजूदा और पूर्व MPs, MLAs के खिलाफ करीब 5,000 आपराधिक मामले लंबित, सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट

अंतिम रूप से निपटाए जाने के लिए अभी भी लंबित 1,339 मामलों के साथ यूपी इस सूची में शीर्ष पर है, जबकि बिहार दूसरे नंबर पर है. एमिकस क्यूरी विजय हंसरिया का कहना है कि केंद्र ने निगरानी पैनल के बारे में कोई सुझाव नहीं दिए.

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नई दिल्ली: अधीनस्थ (निचली) अदालतों में मौजूदा और पूर्व सांसदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की संख्या दिसंबर 2018 के 4,110 से बढ़कर दिसंबर 2021 में 4,984 हो गई है. यह जानकारी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश किये एक रिपोर्ट से सामने आई है. अक्टूबर 2020 में यह आंकड़ा 4,859 था.

संसद सदस्यों और विधानसभाओं के सदस्यों (विधायकों) से जुड़े हुए मामलों में त्वरित सुनवाई (एक्सपेडिशयस ट्रायल) के संबंध में दायर की गई रिपोर्ट में ऐसे लंबित मामलों का राज्य-वार ब्योरा प्रदान किया गया है.

अंतिम रूप से निपटाये जाने के लिए अभी भी लंबित के 1,339 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है. इस राज्य में दिसंबर 2018 में लंबित ऐसे मामलों में अब 347 मामलों की वृद्धि हुई है. हालांकि, अक्टूबर 2020 के आंकड़ों की तुलना में, जब 1,374 माननीयों पर मुकदमें चल रहे था, यह आंकड़ा मामूली सुधार वाला है.

दिसंबर 2018 और दिसंबर 2021 के बीच, यूपी 435 ऐसे मामलों को निपटने में सफल रहा. इनमें से 364 मामलों की सुनवाई सत्र अदालतों ने की और 71 की मजिस्ट्रेटों ने.

एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) और वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया द्वारा पेश की गयी इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह निवेदित किया जाता है कि इस माननीय न्यायालय द्वारा दिए गए कई निर्देशों और निरंतर रूप से की जा रही निगरानी के बावजूद फिलहाल 4984 ऐसे मामले लंबित हैं, जिनमें से 1899 मामले 5 वर्ष से अधिक पुराने हैं. यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि दिसंबर 2018 तक लंबित ऐसे मामलों की कुल संख्या 4110 थी और अक्टूबर 2020 तक 4859 ऐसे मामले लंबित थे.’

एडवोकेट हंसरिया 2018 से ही इस मामले से जुड़े हुए हैं, जब देश की सर्वोच्च अदालत ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए विशेष अदालतें स्थापित किये जाने हेतु अपना पहला निर्देश जारी किया था.

पिछले तीन वर्षों के दौरान माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में कई निर्देश जारी किये हैं, जिसमें केंद्र सरकार से सांसदों/विधायकों से जुड़े मामलों की जांच में हो रही देरी के कारणों का मूल्यांकन करने के लिए एक निगरानी समिति का गठन करने के लिए कहा जाना भी शामिल है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया एक और निर्देश यह था कि ऐसे मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतों को इंटरनेट सुविधाओं के माध्यम से अदालती कार्यवाही के संचालन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे से लैस किया जाए.

न्याय मित्र की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है: 4 दिसंबर, 2018 के बाद 2775 मामलों को निपटाए जाने के बाद भी सांसदों/विधायकों के खिलाफ ऐसे मामलों की संख्या 4122 से बढ़कर 4984 हो गयी है. इससे पता चलता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिक-से-अधिक लोग देश की संसद और राज्य विधानसभाओं की सीटों पर कब्जा कर रहे हैं. यह अत्यंत आवश्यक है कि लंबित आपराधिक मामलों के जल्द-से-जल्द निपटारे के लिए तत्काल और कड़े कदम उठाए जाएं.’

इन 4,984 लंबित मामलों में से, 1,651 पर सत्र न्यायालय द्वारा सुनवाई की जा सकती है- इसका मतलब है कि ये ऐसे जघन्य आपराधिक मामले हैं जिनमें सात साल से अधिक की जेल की सजा, आजीवन कारावास या मृत्यु की सजा भी हो सकती है. शेष 3,322 मामले मजिस्ट्रियल मामलों में लंबित हैं.


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राज्यों के हालात

सभी उच्च न्यायालयों से प्राप्त जानकारी (इनपुट) के आधार पर तैयार की गई इस रिपोर्ट से पता चलता है कि यूपी के बाद बिहार वह राज्य है जहां ऐसे मामलों में काफी वृद्धि हुई है.

दिसंबर 2018 में यहां 304 मामलों सुनवाई के विभिन्न चरणों में लंबित थे और इनकी संख्या अक्टूबर 2020 में 557 और फिर दिसंबर 2021 में 571 हो गई. जहां 341 मामले मजिस्ट्रेट अदालतों में हैं, वहीं 68 मामले सत्र न्यायाधीशों द्वारा सुने जा रहे हैं. दिसंबर 2018 और दिसंबर 2021 के बीच बिहार में इस संख्या में लगभग उतने ही नए मामले- 163- जोड़े गए जितनों का अंतिम रूप से निपटारा किया गया.

बॉम्बे हाई कोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक, महाराष्ट्र में 482 ऐसे मामलों में फैसला होना बाकी है. दिसंबर 2018 में ऐसे 320 मामले थे लेकिन अक्टूबर 2020 में इस संख्या में 27 की वृद्धि हो गई थी. हालांकि, पिछले तीन वर्षों में 218 ऐसे मामलों में फैसला सुनाये जाने के साथ, महाराष्ट्र में मामलों के निपटाये जाने दर (निपटान दर) की इनके लंबित होने की दर (पेंडेंसी दर) से कुछ बेहतर है.

केरल, जहां ऐसे मामलों की संख्या दिसंबर 2018 में 312 से बढ़कर अक्टूबर 2020 में 324 और फिर दिसंबर 2021 में 401 हो गई, मामलों का निपटान काफी अधिक था. इस राज्य में सांसदों/विधायकों से संबंधित 204 मामलों में अंतिम निर्णय होते देखा गया.

इसी तरह, मध्य प्रदेश ने भी निपटान दर के मामले में अच्छा प्रदर्शन किया. हालांकि यहां लंबित मामलों की संख्या दिसंबर 2018 के 168 से बढ़कर दिसंबर 2021 में 316 हो गई, परन्तु इस राज्य में उसी समय अवधि में 324 मामलों पर फैसला भी सुनाया गया.

तेलंगाना में, ऐसे मामलों पर बड़ी तेजी के साथ निर्णय लिया गया है, दिसंबर 2018 के बाद से 292 ऐसे मामलों का निपटारा किया गया है. इसी अवधि में, इस राज्य ने लंबित मामलों में पहले वृद्धि और फिर कमी दोनों का अनुभव किया. एक तरफ जहां ऐसे मामले पहले दिसंबर 2018 में 99 से बढ़कर 143 हो गए, वहीँ दिसंबर 2021 तक यह एक बार फिर घटकर 50 हो गए.


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केंद्र की ओर से कोई सुझाव नहीं: न्याय मित्र

न्याय मित्र हंसरिया ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि जांच में हो रही देरी के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए निगरानी समिति के गठन के संबंध में शीर्ष अदालत द्वारा 25 अगस्त 2021 को दिए गए आदेश के बाद केंद्र ने कोई सुझाव नहीं दिया है.

इसके अलावा, इसने न्याय मित्र को सांसदों/विधायकों के मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालतों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए दिए गए एक अन्य निर्देश के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी है.

एडवोकेट हंसारिया ने कहा कि यह बहुत जरूरी है कि इन मामलों की सुनवाई करने वाली सभी अदालतें इंटरनेट सुविधा के माध्यम से अपनी कार्यवाही के संचालन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे से लैस हों. साथ ही उन्होंने शीर्ष अदालत से यह सुनिश्चित करने के लिए अपने पहले के निर्देश को फिर दोहराने के लिए कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई केवल विशेष अदालतों द्वारा ही की जाए.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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