नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) के नॉन कॉलेजिएट वीमेंस एजुकेशन बोर्ड (एनसीवेब) की गेस्ट फैकल्टी को 2018 के सेमेस्टर और 2019 के पहले सेमेस्टर के पैसे अभी तक नहीं मिले हैं. फैकल्टी में पैसे न मिलने की वजह से असंतोष व्याप्त है. हालांकि बोर्ड के वित्त विभाग का कहना है 10 कॉलेजों की फैकल्टी की पैसे भेज दिए गए हैं. लेकिन शिक्षकों का आरोप है एनसीवेब से जुड़े 27 सेंटरों में से महज 3-4 फैकल्टी को ही उनके पैसे मिले हैं. एनसीवेब के डिप्टी डायरेक्टर उमा शंकर की मानें तो हर सेंटर में 40 के करीब फेकल्टी हैं, ऐसे में 27 सेंटरों में उनकी संख्या करीब 1000 या फिर थोड़ी ज़्यादा होगी. इनमें से महज़ 100 के करीब शिक्षकों को ही पैसे मिली है.
बोर्ड के वित्त विभाग ने यह भी दावा किया कि 10 कॉलेजों के अलावा किसी को भी पूरे अकादमिक सत्र का पैसा नहीं मिला. आम तौर पर एक सत्र का पैसा जनवरी और दूसरे का जून-जुलाई तक आ जाता है. पहला सत्र सितंबर से दिसंबर और दूसरा सत्र दिसंबर से अप्रैल के अख़िरी हफ्ते में समाप्त होता है. यहां यह बताना जरूरी है कि इन गेस्ट फेकल्टी को पूरे सत्र का पैसा एकमुश्त दिया जाता है. दिप्रिंट को एनसीवेब के डिप्टी डायरेक्टर ने कहा कि उन्होंने इन सेंटरों से जुड़े बिल दिल्ली यूनिवर्सिटी के वित्त विभाग के पास भेज दिए हैं.
क्या है एनसीवेब
एनसीवेब के तहत दिल्ली यूनिवर्सिटी लड़कियों के लिए रविवार को क्लास चलवाता है. इसकी वजह से शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ ऐसी लड़कियों को काम करने के लिए छह दिन का समय मिल जाता है. इसकी वजह से लड़कियों को लैंगिक भेदभाद, कट-ऑफ की जंग और अटेंडेंस की मार से बचने के साथ-साथ पढ़ाई का भी मौका मिल जाता है. इसमें पढ़ाने वाले शिक्षकों को हर साल आवेदन करना पड़ता है. पैसे मिलने में हो रही देरी की वजह से शिक्षक प्रदर्शन की तैयारी में हैं जिससे सैंकड़ों लड़कियों की पढ़ाई में अड़चन आ सकती है.
शिक्षकों को हर बार मिलता है टालने वाला जवाब
मामले में कई शिक्षक एनसीवेब के डिप्टी डायरेक्टर उमा शंकर और अन्य अधिकारियों को संपर्क कर रहे हैं. संपर्क करने वालों को हर बार नई तारीख़ या 15 दिन का समय दे दिया जाता है लेकिन पैसे नहीं मिलते. एनसीवेब के एक शिक्षक ऋतुराज आनंद ने कहा, ‘मैंने ख़ुद उमा शंकर जी को दो बार कॉल किया था. लेकिन मुझे भी टाल दिया गया.’
मामले पर डिप्टी डायरेक्टर ने कहा, ‘हम बिल पास करके भेज सकते हैं. हमने बिल वित्त विभाग के पास भेज दिया है.’ शिक्षकों के मुताबिक जब अप्रैल महीने में वो रामानुजन कॉलेज में डिप्टी डायरेक्टर से मिले थे तब उन्हें जल्द पैसे मिलने का आश्वासन दिया गया था लेकिन अब तक उन्हें पैसे नहीं मिले.
शिक्षकों का आरोप है कि फोन और मैसेज करने पर टालने वाले जवाब मिलते हैं. दिप्रिंट को दी गई जानकारी में डिप्टी डायरेक्टर ने कहा कि सभी स्टाफ बीए और बीकॉम की परीक्षा से जुड़े एडमिट कार्ड बनाने में व्यस्त थे इसलिए बिल भेजने में देर हुई. उनके सुर में सुर मिलाते हुए वित्त विभाग ने भी यही बात दोहराई. डिप्टी डायरेक्टर ने ये भी कहा कि ऐसी देरी पहली बार हुई है और शिक्षकों को इसे मुद्दा नहीं बनाना चाहिए.
नहीं भेजे गए दूसरे सत्र के भी बिल, शिक्षकों ने मांगा हर्ज़ाना
शिक्षकों को पहले सत्र की पैसे जनवरी महीने में मिल जानी चाहिए थी. डिप्टी डायरेक्टर ने कहा कि पहले सत्र के बिल भेजने में भले ही देरी हुई हो. दूसरे सत्र में ऐसा नहीं होगा. हालांकि, शिक्षकों की शिकायत है कि इसमें भी देरी हो रही है. डिप्टी डायरेक्टर के मुताबिक, ‘वित्त विभाग के पास सिर्फ एनसीवेब ही नहीं बल्कि पूरे डीयू के बिल जाते हैं, ऐसे में वो धीरे-धीरे इन बिलों को पास करते हैं. इसी वजह से कुछ विभागों के बिल छह से आठ महीने बाद पास होते हैं.’
दिप्रिंट को बताया गया कि बिल भेजे जाने के बाद 15-20 दिन का समय लगता है. जिस सेंटर का नंबर पहले आता है उन्हें पहले पैसे मिल जाते हैं. एक-एक सेंटर से 40-45 टीचरों का बिल जाता है. इनकी जांच करने में समय लगता है.
स्थायी स्टाफ की पैसे महीने के अंत तक आ जाती है लेकिन गेस्ट टीचरों को पैसे मिलने में समय लगता है. लेकिन इस मामले में लगभग छह महीने बीत गए हैं जिससे गेस्ट टीचर बहुत परेशान हैं और पीड़ित शिक्षकों ने सैलरी में हुई देर के लिए हर्ज़ाने की भी मांग की है.