नई दिल्ली: पंजाब के पटियाला में राजीव गांधी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (आरजीएनयूएल) के कुलपति जय शंकर सिंह के खिलाफ प्रदर्शनकारी छात्रों द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए, राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार को उचित कार्रवाई करने और 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है.
छात्रों ने एनसीडब्ल्यू को पत्र लिखकर कुलपति को “अनुचित और लैंगिक भेदभावपूर्ण व्यवहार” के लिए हटाने की मांग की थी क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर बिना किसी पूर्व सूचना या सहमति के गर्ल्स हॉस्टल के कमरों का निरीक्षण किया था, जिससे उनकी निजता का उल्लंघन हुआ.
30 सितंबर को लिखे पत्र में एनसीडब्ल्यू की सदस्य ममता कुमारी ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को संबोधित करते हुए अधिकारी से “मामले की जांच करने और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने” का आग्रह किया.
पत्र में लिखा गया है, “मौजूदा शिकायत निजता के अधिकार और सम्मान के साथ जीने के अधिकार के कथित उल्लंघन से संबंधित है…इस पत्र के मिलने के 15 दिनों के भीतर इस मामले में की गई कार्रवाई से आयोग को अवगत कराया जाना चाहिए.”
वीसी द्वारा जारी नोटिस के अनुसार, “कैंपस में विवाद को सुलझाने” के लिए दो-सदस्यीय बाहरी समिति का गठन किया गया है, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट ने भी देखी है. समिति की स्थापना पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के निर्देशन में की गई थी, जो आरजीएनयूएल के कुलाधिपति भी हैं.
समिति में डॉ. बी.आर. आंबेडकर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, सोनीपत की कुलपति प्रोफेसर अर्चना मिश्रा और जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, भोपाल की अध्यक्ष गिरिबाला सिंह शामिल हैं. बाहरी सदस्यों का 2 से 3 अक्टूबर तक यूनिवर्सिटी कैंपस का दौरा करने का कार्यक्रम है.
हालांकि, छात्रों ने इस बात पर अनिश्चितता ज़ाहिर की है कि क्या सदस्यों का चयन कुलपति द्वारा किया गया था, जबकि समिति का गठन कुलाधिपति के निर्देश पर किया गया था. उन्होंने निर्देश के बारे में भी चिंता जताई है और पैनल के गठन के आदेश की एक प्रति मांगी है.
11 दिनों से विरोध कर रहे छात्रों ने आगे बताया कि सदस्यों का इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़ाव है — ऐसा संस्थान जहां कुलपति सिंह पहले भी काम कर चुके हैं — जिससे संभावित “पक्षपात की उपस्थिति” पर चिंता जताई जा रही है.
उन्होंने कहा, “हम कुलपति की नियुक्ति और कार्यों की स्वतंत्र जांच की अपनी मांग दोहराते हैं. ‘विवाद में मध्यस्थता’ करने के लिए बनाई गई समिति का गठन छात्रों की सहमति से नहीं किया गया था.”
800 से अधिक छात्रों ने एक ‘अविश्वास पत्र’ पर हस्ताक्षर किए हैं और इसे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या कुलाधिपति को सौंप दिया है, जिसमें कुलपति के प्रशासन के प्रति अपना असंतोष व्यक्त किया गया है.
दिप्रिंट द्वारा प्राप्त पत्र की एक प्रति में उनकी शिकायतों का उल्लेख है.
पत्र में लिखा है, “वीसी के संक्षिप्त कार्यकाल की खासियतें शैक्षणिक संस्कृति में ठहराव और गिरावट, महिलाओं के प्रति द्वेष, लैंगिक भेदभाव, छात्रों के प्रति उदासीनता और उनकी आवाज़ को जानबूझकर दबाना रही हैं.इन मुद्दों की गंभीरता और उन्हें संबोधित करने में वीसी की लगातार विफलता को देखते हुए हमारा मानना है कि वीसी और उनका समर्थन करने वाले प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों पर अब छात्र समुदाय का भरोसा नहीं रह गया है. उनके कार्यों ने न केवल हमारे भरोसे का उल्लंघन किया है, बल्कि RGNUL की प्रतिष्ठा को भी धूमिल किया है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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