नई दिल्ली : आत्महत्या को लेकर समाज की सबसे संवेदनशील कटेगरी- 2022 तक 5 सालों में दैनिक वेतन भोगी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, इसके बाद गृहिणियों, स्व-रोज़गार करने वाले और बेरोजगार व्यक्ति, छात्र और किसानों का नंबर है. इस अवधि में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि किसानों के आंकड़े, जिसमें उत्पादक और मजदूर दोनों शामिल हैं, आम तौर पर इन समूहों में सबसे कम हैं.
आत्महत्या से मरने वाले दैनिक वेतन भोगियों की संख्या 2018 में 30,124 से लगातार बढ़कर 2019 में 32,559, 2020 में 37,657, 2021 में 41,997 और 2022 में 45,185 हो गई. दूसरी ओर, खेत मजदूरों और किसानों की संयुक्त संख्या में नंबर इन 5 सालों में से चार साल में 10,000 और 11,000 रही.
2018 में किसानों और किसान मजदूरों की कुल संख्या 10,349 थी, जो उस वर्ष दर्ज किए गए आत्महत्या के कुल 1,34,516 मामलों में से 7.7 प्रतिशत थी. कुल आंकड़े में वेतनभोगी पेशेवरों जैसे अन्य समूह भी शामिल हैं.
अगले वर्ष, यह संख्या मामूली रूप से घटकर 10,281 हो गई, साथ ही कुल (1,39,123) किसानों का नंबर भी घटकर 7.4 प्रतिशत रहा.
अगले 3 वर्षों में मामूली वृद्धि देखी गई जैसा कि 2020 में यह संख्या 10,677 मामलों तक पहुंच गई, जो 1,53,052 मामलों के साथ 7 प्रतिशत थी.
2021 में, किसानों के 10,881 मामले दर्ज किए गए, लेकिन कुल संख्या लगभग 11,000 बढ़कर 1,64,033 हो गई, जो कि कुल हिस्से का 6.6 प्रतिशत थी.
2022 में, 11,290 किसानों के आत्महत्या करने का पता चला, लेकिन कुल संख्या फिर से बढ़कर 1,70,924 हो गई, जिससे यह प्रतिशत 6.6 प्रतिशत पर बरकरार रहा.
गृहणियां
2018 से 2022 के बीच हर साल आत्महत्या से जान देने वाली गृहिणियों की कुल संख्या लगातार किसानों की तुलना में दोगुने से अधिक थी.
2018 में गृहिणियों के बीच आत्महत्या के अधिकतम 22,937 मामले दर्ज हुए, जो उस साल के कुल मामलों का 17.1 प्रतिशत था.
अगले वर्ष 21,359 मामलों के साथ संख्या अधिक बनी रही, जो कुल मामलों का 15.4 प्रतिशत थी.
अगले वर्ष यह आंकड़ा 1,000 से अधिक मामलों की वृद्धि के साथ 22,372 हो गया – जो कुल मामलों का 14.6 प्रतिशत रहा.
2021 में, 23,178 गृहिणियों (14.1 प्रतिशत) ने अपना जीवन समाप्त कर लिया, जबकि 2022 में पिछले 5 वर्षों में यह संख्या सबसे अधिक 25,309 (14.8 प्रतिशत) देखी गई.
स्व-रोजगार
दैनिक वेतन भोगी और गृहिणियों के बाद, स्व-रोज़गार वाले लोग हर 5 सालों में आत्महत्या से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, जिनमें हर साल उल्लेखनीय वृद्धि हुई.
2018 में, ऐसे 13,149 लोगों ने अपना जीवन समाप्त किया, जो उस साल के लगभग 9.6 प्रतिशत मामले थे.
यह प्रवृत्ति अगले साल भी जारी रही और स्व-रोज़गार करने वालो लोगों में आत्महत्या के मामले लगभग 3,000 बढ़कर 16,098 हो गए, जो कुल मामलों का 11.6 प्रतिशत थी.
2020 और 2021 में, यह संख्या 17,332 और 20,231 थीं, जो क्रमशः 11.3 प्रतिशत और 12.3 प्रतिशत होती है.
हालांकि, 2022 में मामूली गिरावट आई और 19,484 मामले रहे.
बेरोजगार और छात्र
हर 5 सालों में, खेत किसानों और मजदूरों की तुलना में छात्र और बेरोजगार दोनों अधिक प्रतिकूल हालत से प्रभावित हुए.
2018 में, बेरोजगार व्यक्तियों के बीच आत्महत्या के 12,936 मामले दर्ज किए गए, जो कि कुल मामलों का 9.6 प्रतिशत थे.
इसी तरह, छात्रों की संख्या 10,159 थी, जो कुल मामलों का 7.6 प्रतिशत रही.
अगले 4 वर्षों में दोनों समूहों को लेकर ये रुझान बना रहा, क्योंकि बेरोजगार लोगों का आंकड़ा 2019 में 14,019 (10.1 प्रतिशत), 2020 में 15,652 (10.2 प्रतिशत), 2021 में 13,714 (8.4 प्रतिशत) और 2022 में 15,714 (9.2) हो गया.
2019 में छात्रों का आंकड़ा 10,335 (7.4 प्रतिशत) था, जो 2020 में बढ़कर 12,526 (8.2 प्रतिशत) और 2021 में 13,089 (8 प्रतिशत) रहा. 2022 में यह मामूली गिरावट के साथ 13,044 (7.6 प्रतिशत) रहा.
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(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
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