नई दिल्ली: भारतीय ब्रॉडकास्टिंग मीडिया उद्योग दो हिस्सों में बंट गया लगता है, क्योंकि समाचार चैनलों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो संगठन तैयार हो गए हैं.
न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (एनबीएफ) नाम से एक नया संगठन बनाया गया है, जिसके सदस्यों में तीन प्रमुख राष्ट्रीय समाचार चैनल शामिल हैं. अर्नब गोस्वामी का रिपब्लिक टीवी एवं रिपब्लिक भारत और टीवी 9 भारतवर्ष. करीब 45 क्षेत्रीय चैनल भी इस नए संगठन से जुड़ चुके हैं.
प्रसारण उद्योग के जानकारों का कहना है कि नया संगठन पहले से ही विद्यमान न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के समानांतर काम करेगा. वर्तमान में इंडिया टीवी के रजत शर्मा एनबीए के प्रमुख हैं. एनबीए की वेबसाइट के मुताबिक इस वक्त 70 समाचार चैनल उससे सदस्य के रूप में संबद्ध हैं. अधिकांश राष्ट्रीय समाचार चैनल अक्टूबर 2008 में गठित एनबीए में शामिल हैं.
एनबीए ने ही देश में समाचार चैनलों की प्रसारण सामग्री (कंटेंट) पर निगरानी रखने वाली संस्था न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड ऑथिरिटी (एनबीएसए) का गठन किया है. चैनलों के कंटेंट के स्व-नियमन के अलावा यह संस्था कई अन्य दायित्व भी निभाती है, जिनमें समाचार चैनलों की परेशानियों को सरकार के समक्ष रखने का काम शामिल है. लेकिन, अब समाचार प्रसारण उद्योग में लगभग एक समान उद्देश्य वाले दो संगठन हो जाने के बाद भ्रम की स्थिति बन गई है कि ब्रॉडकास्टिंग से जुड़े अहम मुद्दों पर इनमें से किसकी बात को सर्वोपरि माना जाएगा. सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा एनबीएफ को बधाई दिए जाने के बाद अनिश्चितता और बढ़ गई है.
जावड़ेकर ने अपने संदेश में कहा, ‘मुझे पूरा यकीन है कि न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन टीवी समाचार उद्योग से जुड़े मुद्दों की चर्चा का मंच बनेगा… मैं एनबीएफ को अपनी शुभकामनाएं देता हूं.’
नए संगठन की ज़रूरत
प्राइड ईस्ट एंटरटेनमेंट, जिसके पांच चैनल एनबीएफ के सदस्य हैं, की प्रमुख रिंकी भुयान शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि अभी तक प्रसारकों का कोई भी संगठन क्षेत्रीय चैनलों के हितों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा था. उन्होंने कहा, ‘क्षेत्रीय चैनलों के लिए कोई भी मंच उपलब्ध नहीं था. अब एनबीएफ के ज़रिए राष्ट्रीय स्तर पर हमारा प्रतिनिधित्व हो सकेगा. क्षेत्रीय चैनलों की बहुत सारी ऐसी समस्याएं होती हैं, जिन्हें प्रसारकों की किसी संस्था को देखने की ज़रूरत
होती है.’
2014 में छोटे और मध्यम आकार के समाचार चैनलों के प्रमुखों/मालिकों ने विशेष कर क्षेत्रीय चैनलों के लिए ऑल इंडिया न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन का गठन किया था, पर ब्रॉडकास्टिंग से जुड़े मामलों को लेकर इन दिनों इस संगठन की सक्रियता नहीं है.
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एनबीएफ के चार्टर में क्षेत्रीय चैनलों के हितों की रखवाली के अलावा तकनीकी, व्यावसायिक और अन्य बदलावों के मद्देनज़र सरकार और इंडस्ट्री के समक्ष ‘टैलेंट’ (कर्मचारियों) के हितों के प्रतिनिधित्व का भी जिक्र है. एनबीएफ की योजना पायरेसी की समस्या से निपटने के लिए कार्यक्रम तैयार करने की भी है. एनबीएफ के सूत्रों ने बताया कि नया संगठन फेक न्यूज़ के अवांछित प्रसार के खिलाफ भी उपाय करेगा और यह अपने सदस्यों की अनुचित और/या अनैतिक तौर-तरीके अपनाने वाले या मीडिया को बदनाम करने वाले ‘व्यक्तियों’ या संस्थानों से भी रक्षा करेगा.
हालांकि, एनबीएफ ने एनबीए से टकराव की संभावना से इनकार किया है, पर प्रसारण उद्योग के जानकारों का कहना है कि नए संगठन की स्थापना ही प्रमुख समाचार प्रसारकों के बीच प्रतिस्पर्द्धा की वजह से हुई है और इसके पीछे ये
कारण भी कि विगत में एनबीए अपनी जिम्मेदारी को पूर्णता से नहीं निभा पाया है.
इस बारे में एक जानकार सूत्र ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, फेक न्यूज़ की समस्या और समाचार कंटेंट के प्रसारण पर लगने वाले ऊंचे कैरेज शुल्क जैसे मुद्दों पर एनबीए ने कभी काम नहीं किया. साथ ही, एनबीए क्षेत्रीय चैनलों का पर्याप्त
प्रतिनिधित्व नहीं करता है और यह एक अभिजातवादी संगठन बन कर रह गया है.’
दिप्रिंट ने इस विषय पर प्रतिक्रिया के लिए एनबीए प्रमखु रजत शर्मा और संगठन की महासचिव एनी जोसेफ से बात करने की कोशिश की, पर उनसे संपर्क नहीं हो सका.
एनबीए का पक्ष
हालांकि, समाचार प्रसारण उद्योग के कई जानकारों ने एनबीए की तरफदारी करते हुए उसे अनेक पहलकदमियों का श्रेय दिया है.
एक सूत्र ने कहा, ‘एनबीए ने पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पहल की और केबल सेक्टर में पायरेसी की समस्या को खत्म करने के लिए इसने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा सरकार के शीर्षस्थ लोगों से केबल सेक्टर को डिजिटल बनाने की पैरवी की. जिससे आगे चल कर पूरे देश में चार चरणों में डिजिटल एड्रेसेबल केबल टीवी सिस्टम के कार्यान्वयन की योजना बन सकी.’ समाचार प्रसारण उद्योग के उपरोक्त सूत्र का ये भी कहना था कि एनबीए ने ही कैरेज शुल्क का मुद्दा उठाया था, जिसके बाद 2017 में भारतीय दूरसंचार नियामक संगठन का शुल्क को युक्तिसंगत बनाए जाने का आदेश आया.
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एनबीए ने ही सरकार के दृश्य एवं प्रचार निदेशालय की दरों के पुनरीक्षण का दबाव बनाया ताकि प्रसारकों को बाज़ार दर पर सरकारी विज्ञापन मिल सके. उपरोक्त सूत्र ने आगे कहा, ‘साथ ही, एनबीएसए अभी तक करीब 3,000 शिकायतों का निपटारा कर चुका है, और इसके दिशा-निर्देशों को शीर्ष अदालतों और चुनाव आयोग ने भी मान्यता दी है.’
हालांकि, प्रसारण उद्योग के एक अन्य सूत्र ने इसे एनबीए के लिए एक झटका बताया, क्योंकि उसकी मांग एनबीएसए के दिशा-निर्देशों को वैधानिक दर्जा दिए जाने की रही है.
सह-अस्तित्व संभव
एनबीएफ के सूत्रों का कहना है कि यदि चार्टर में भिन्नता हो तो उद्योग से जुड़े दो समानांतर संगठनों का अस्तित्व संभव है और कंटेंट का स्व-नियमन तो विभिन्न उत्तरदायित्वों में से सिर्फ एक जिम्मेदारी है. एनबीएफ के एक सूत्र ने बताया, ‘एनबीएफ अभी भी कंटेंट के स्व-नियमन के बारे में अपनी योजना पर काम कर रहा है, पर ब्रॉडकास्टिंग सेक्टर से जुड़े कई अन्य मुद्दे भी हैं जिनका कि समाधान किया जाना है.’
एनबीएफ के सूत्र ने ये भी कहा कि समाचार चैनल दोनों संगठनों की सदस्यता ले सकते हैं, जैसा कि रिपब्लिक टीवी की वर्तमान स्थिति है. दिप्रिंट ने इस पूरे मुद्दे पर रिपब्लिक टीवी के प्रमुख गोस्वामी से संपर्क की कोशिश की, पर उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.
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