लखनऊ: उत्तर प्रदेश कैडर के 1988 बैच के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी नवनीत कुमार सहगल ने मंगलवार को प्रसार भारती के चेयरपर्सन पद से इस्तीफा दे दिया. उनका अचानक दिया गया इस्तीफा कई लोगों के लिए हैरानी की बात है क्योंकि उन्हें इस पद पर आए अभी दो साल भी नहीं हुए थे.
सहगल ने 16 मार्च 2024 को पदभार संभाला था. इससे पहले वह पिछले साल यूपी में अतिरिक्त मुख्य सचिव (खेल और युवा कल्याण) के रूप में रिटायर हुए थे.
35 साल से अधिक के सरकारी अनुभव के साथ, उन्होंने कई अहम विभागों का नेतृत्व किया और केंद्र तथा राज्य स्तर पर शासन और नीतिगत मामलों में अहम योगदान दिया. वह 31 जुलाई 2023 को सेवा से रिटायर हुए थे.
यूपी की राजनीतिक गलियारों में उन्हें पिछले दो दशकों में लगातार सरकारों के दौरान प्रभाव बनाए रखने वाले एक महत्वपूर्ण पावर सेंटर के रूप में देखा जाता है.
कभी राज्य के सबसे प्रभावशाली आईएएस अधिकारियों में गिने जाने वाले सहगल को तीन मुख्यमंत्रियों—मायावती, अखिलेश यादव और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ—का भरोसा अलग-अलग दौर में मिला.
31 अगस्त 2022 तक, वह सूचना और जनसंपर्क, एमएसएमई और निर्यात प्रोत्साहन, हैंडलूम और टेक्सटाइल, और खादी एवं ग्रामोद्योग जैसे अहम विभागों के अतिरिक्त मुख्य सचिव रहे.
ध्यान देने वाली बात यह है कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से कोई नियुक्ति नहीं मिली. जबकि उनके एक करीबी सहयोगी अवनीश अवस्थी को सितंबर 2022 में सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद मुख्यमंत्री का सलाहकार बना दिया गया.
मायावती के भरोसेमंद, अखिलेश-योगी के संकट प्रबंधक
सहगल 2007 से 2012 तक मायावती के सचिव रहे. राज्य नौकरशाही के सूत्रों के अनुसार, इसी दौर में वह एक बड़े पावर सेंटर के रूप में स्थापित हुए और मायावती के सबसे भरोसेमंद अधिकारियों में शामिल हुए.
बाद में, 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें ‘ऑफिसर ऑन वेटिंग’ की सूची में भेज दिया गया और धार्मिक कार्य विभाग जैसा कम महत्व वाला विभाग दिया गया. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अखिलेश सरकार ने उन्हें संकट प्रबंधन के लिए प्रधान सचिव (सूचना) बनाकर वापस बुलाया. वह यूपी एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के सीईओ भी रहे और अखिलेश की ड्रीम परियोजना लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे की निगरानी की.
हालांकि वर्तमान में यूपी में सत्ता में मौजूद भाजपा ने अखिलेश सरकार पर एक्सप्रेसवे निर्माण में अनियमितताओं के आरोप लगाए, लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आते ही सहगल को फिर से ‘ऑफिसर ऑन वेटिंग’ की सूची में डाल दिया गया.
लेकिन 2020 के हाथरस बलात्कार और हत्या मामले के बाद मुख्यमंत्री ने उन पर फिर भरोसा किया और 2022 तक वह फिर प्रमुख भूमिका में रहे. तब से उन्हें सरकार का “समस्या समाधानकर्ता” माना जाता है, खासकर उनकी तेज मीडिया मैनेजमेंट क्षमता के कारण.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, “शुरू में योगीजी उन्हें किसी अहम विभाग की जिम्मेदारी देने के इच्छुक नहीं थे. लेकिन हाथरस मामले के दौरान सुनील बंसल और अन्य भाजपा पदाधिकारियों ने उन्हें हाई कमान को सुझाया, जिसके बाद योगीजी को उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका देनी पड़ी.”
समाजवादी पार्टी के एक नेता ने भी उन्हें एक बहुमुखी और प्रभावी प्रबंधक बताया.
उन्होंने कहा, “अखिलेशजी ने शुरुआत में उन्हें अपेक्षाकृत कम प्रोफाइल वाला धार्मिक कार्य विभाग दिया था. लेकिन उन्होंने इसकी काफी चर्चा बनाई, जिससे अखिलेशजी भी प्रभावित हुए. बाद में उन्हें अन्य अहम विभाग सौंपे गए. वह जानते हैं कि मुख्यमंत्री का भरोसा कैसे जीता जाता है.”
सहगल उत्तर प्रदेश में अपने विस्तृत राजनीतिक नेटवर्क के लिए जाने जाते हैं. यह बात इस साल मार्च में लखनऊ में उनके बेटे के विवाह समारोह में भी दिखी. इस समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, बसपा महासचिव सतीश मिश्रा, और कांग्रेस विधायक दल की नेता आराधना मिश्रा समेत कई बड़े नेता मौजूद थे.
अखिलेश की मौजूदगी ने 2017 में सत्ता गंवाने के बाद सहगल के प्रति उनके नाराज होने की अटकलों को खारिज किया. वहीं योगी की उपस्थिति ने यह दिखाया कि सहगल और सीएम के बीच मजबूत रिश्ता है, भले ही सहगल को अक्सर “केंद्र का आदमी” कहा जाता हो.
एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी जिन्होंने सहगल के साथ काम किया है, ने कहा कि वह “सुलभ, बेहद जुड़े हुए और मीडिया मैनेजमेंट में बेहद कुशल” हैं. उन्होंने यह भी कहा कि “उनका नेटवर्क नौकरशाहों और नेताओं से कहीं आगे तक फैला है. वह किसी को भी मैनेज कर सकते हैं.”
सहगल 2018 निवेशक सम्मेलन और 2023 ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट से पहले यूपी सरकार की ब्रांडिंग के पीछे प्रमुख अधिकारियों में से एक थे. उन्होंने इन आयोजनों से पहले अनेक बड़े औद्योगिक घरानों के साथ मीटिंग कराने में अहम भूमिका निभाई.
उनकी पहुंच के बारे में अधिकारी ने कहा, “मैंने देखा कि जब मुकेश अंबानी लखनऊ निवेशक सम्मेलन के लिए आए थे, तो जिन चंद नौकरशाहों का उन्होंने नाम लिया, उनमें नवनीत शामिल थे.”
“इसी तरह जब अभिनेता अक्षय कुमार शूटिंग के लिए आए, तो उन्होंने भी ‘नवनीत’ का नाम लिया. इससे उनकी पहुंच का अंदाजा लग जाता है.”
अधिकारी ने कहा कि सहगल के राजनीति में आने की अटकलें लंबे समय से चल रही हैं, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, “शायद जल्दी हो.”
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