नई दिल्ली: महाराष्ट्र के अमरावती से निर्दलीय सांसद, विवादास्पद नेत्री और पूर्व अभिनेत्री नवनीत कौर राणा की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. राणा को पिछले महीने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के बाहर हनुमान चालीसा का जाप करने के अपने इरादे की घोषणा करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था.
एक विशेष अदालत ने बुधवार को इस मामले में तो उन्हें जमानत दे दी, लेकिन कौर के एक अन्य मामले में अभी तक सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई नहीं हुई है, जिसमें उन्होंने पिछले साल बंबई हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय) द्वारा उनके अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र को रद्द किये जाने के खिलाफ अपील की थी.
नवनीत कौर राणा एक आरक्षित सीट अमरावती से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने में इस वजह से सक्षम रहीं, क्योंकि उनके पास एक प्रमाण पत्र था जिसमें उन्हें अनुसूचित जाति के ‘मोची समुदाय’ से संबंधित घोषित किया गया था.
इसलिए, पिछले साल 8 जून को हाईकोर्ट द्वारा उनके प्रमाण पत्र को रद्द करने के फैसले के उनके लिए गंभीर परिणाम थे: और इससे उन्हें संसद में अपनी सीट गंवानी होगी. इसी वजह से इस सांसद ने बिना कोई समय बर्बाद किये 17 जून 2021 को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया.
तब से लेकर अब तक के करीब दस महीनों में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए नौ तारीखें दी हैं. और इस मामले को अब तक आठ बार उठाया गया था, मगर कोई दलील नहीं पेश की जा सकी क्योंकि तब तक वह मामला स्थगित हो गया था.
इस मामले को अब न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ के समक्ष गुरुवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन इस मामले में पहले भी पेश हुए एक वकील ने दिप्रिंट को बताया कि इस बात की ‘खास संभावना नहीं’ है कि कोई सुनवाई होगी. इस वकील ने कहा, ‘न्यायमूर्ति सरन अगली 10 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. मामले को अब एक नई पीठ के समक्ष रखा जाएगा.’
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‘उच्च प्राथमिकता’ वाला मामला, लेकिन फिर भी अधर में सुनवाई’
8 जून 2021 के अपने एक आदेश में, बॉम्बेहाई कोर्ट ने माना था कि नवनीत कौर ने जाति जांच समिति के समक्ष ‘फर्जीवाड़े से गढ़े हुए दस्तावेज़’ पेश करके अपना अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र ‘धोखाधड़ी से मान्य’ करवाया था.
इसके कुछ ही दिनों के भीतर कौर ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसने इस मामले को प्राथमिकता दी क्योंकि इससे सांसद के रूप में उनकी स्थिति प्रभावित होगी.
ग्रीष्म अवकाश पर होने के बावजूद, शीर्ष अदालत ने उसके दरवाजे पर दस्तक दिए जाने के पांच दिनों के भीतर इस मामले की पहली सुनवाई की.
22 जून 2021 को न्यायमूर्ति सरन की अगुवाई वाली पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और कौर को उनकी सीट गंवाने से बचा लिया.
इस आदेश में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी भी शामिल थे, ने नवनीत कौर को अपनी याचिका की एक प्रति प्रतिवादियों को सौंपने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था.
इसके अलावा, अदालत ने इस मामले के सभी पक्षकारों को मामले में अपनी दलीलें पूरी करने का निर्देश दिया और इसे 27 जुलाई 2021 को ‘अंतिम’ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था.
इस आदेश में कहा गया था, ‘इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, यह निर्देश दिया जाता है कि 8 जून 2021 के चुनौती दिए गए फैसले के क्रियान्वयन पर रोक रहेगी. यह समझा जाता है कि सुनवाई की अगली तारीख पर ही इस सारे मामले में सुनवाई का अंत हो सकता है.‘
तब से, शीर्ष अदालत ने आठ मौकों पर यह मामला उठाया है – 2021 में चार बार (27 जुलाई, 16 सितंबर, 6 अक्टूबर और 30 नवंबर को) तथा 2022 में और चार बार (3 फरवरी, 23 फरवरी, 29 मार्च और 20 अप्रैल को).
इनमें से प्रत्येक (सुनवाई की) तारीख पर, इस मामले को स्थगित कर दिया गया था. शीर्ष अदालत के पोर्टल पर अपलोड किए गए आदेश उन वजहों का खुलासा नहीं करते हैं कि पीठ ने उक्त तारीखों पर अपील की सुनवाई क्यों नहीं की. जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, न्यायमूर्ति सरन की आसन्न सेवानिवृत्ति के कारण गुरुवार को निर्धारित सुनवाई के होने की संभावना भी नहीं है.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के अधिकारियों ने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि इस मामले में सभी दलीलें छह महीने पहले पूरी हो गईं थी और तीन तारीखों- 27 जुलाई 2021, 20 नवंबर 2021 तथा 3 फरवरी 2022 को – पर दोनों पक्षों की सहमति से इस मामले को स्थगित कर दिया गया था.
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कैसे शुरू हुआ ‘फर्जी सर्टिफिकेट’ का झमेला?
नवनीत कौर और उनके पति रवि राणा का शिवसेना नेताओं के साथ ‘हनुमान चालीसा वाले विवाद’ से काफी पहले से ही झगड़ा चल रहा था. ‘फर्जी प्रमाणपत्र’ विवाद का भी शिवसेना से सम्बन्ध है और यह विवाद 2019 के लोकसभा चुनाव, जिसमें नवनीत कौर अमरावती सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीती थी, के काफी पहले से ही कुलबुला रहा था.
इस मामले ने उस समय तेज रफ़्तार पकड़ ली जब शिवसेना के वरिष्ठ नेता आनंदराव अडसुल – जिन्होंने 2014 के चुनावों में नवनीत कौर को हराया था, मगर 2019 में उनसे हार गए थे – ने इस मसले को उठाया.
साल 2018 की शुरुआत में, अडसुल और सामाजिक कार्यकर्ता राजू मानकर ने जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति (डिस्ट्रिक्ट कास्ट सर्टिफिकेट स्क्रूटिनी कमिटी -सीसीएससी), जिसने नवनीत कौर के प्रमाण पत्र को मान्य किया था, के नवंबर 2017 के आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया. इस प्रमाण पत्र को मुंबई के डिप्टी कलेक्टर द्वारा अगस्त 2013 में जारी किया गया था.
मानकर ने पहली बार साल 2015 में कौर पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर इस सर्टिफिकेट (प्रमाण पत्र) को हासिल करने का आरोप लगाया था. उन्होंने जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने के लिए सीसीएससी के समक्ष शिकायत भी दर्ज कराई थी.
समिति ने मानकर की शिकायत को यह देखते हुए खारिज कर दिया कि एक बार वैधता प्रमाण पत्र जारी होने के बाद इसे वापस या रद्द नहीं किया जा सकता है, लेकिन बॉम्बेहाई कोर्ट ने जून 2017 में सीसीएससी को कानून के प्रावधानों के अनुरूप एक नया निर्णय लेने का निर्देश दिया.
हाईकोर्ट के इस निर्देश के मद्देनजर, सीसीएससी ने एक नई समीक्षा की और नवंबर 2017 में, जाति प्रमाण पत्र को फिर से मान्य कर दिया.
सीसीएससी ने अपना फैसला लेने के लिए दो दस्तावेजों पर भरोसा किया: पहला था, खालसा कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स द्वारा जारी एक प्रमाण पत्र, जिसमें कौर के दादा की जाति का ‘सिख चमार’ के रूप में उल्लेख किया गया था और एक रेंट एग्रीमेंट जिसने इसकी पुष्टि की थी.
हालांकि, अडसुल और मानकर ने इन दस्तावेजों की वैधता पर ही विवाद खड़ा कर दिया और मामले को बॉम्बेहाई कोर्ट में ले गए.
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्यों किया जाति प्रमाण पत्र को ‘रद्द’?
अडसुल और मानकर के अनुसार, सीसीएससी ने कॉलेज प्रमाण पत्र और किराए के समझौते को छोड़कर, नवनीत कौर द्वारा अपने अनुसूचित जाति से होने के दावे संबंधित अधिकांश दस्तावेजों को खारिज कर दिया था. हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें भी फर्जीवाड़े से गढ़ा गया था और उनका यह भी कहना था कि समिति ने इन दस्तावेजों की प्रामाणिकता के बारे में सतर्कता प्रकोष्ठ द्वारा व्यक्त संदेह को भी नजरअंदाज कर दिया.
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि नवनीत कौर ने आरक्षित अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के स्पष्ट उद्देश्य से ही यह फर्जी अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र हासिल किया था. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कौर के पिता भी इस सब में शामिल थे क्योंकि उन्होंने भी अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए ‘धोखाधड़ी’ वाला तरीका अपनाया ताकि उनकी बेटी इसे प्राप्त कर सके.
नवनीत कौर ने हाईकोर्ट में इन आरोपों का खंडन किया, जिसने न केवल उनके बचाव की दलील को खारिज कर दिया, बल्कि ‘लापरवाह’ सीसीएससी पर ‘अपनी जिम्मेदारी से बचने’ का आरोप भी लगाया.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 100 पन्नों में दिए गए अपने कड़े शब्दों वाले आदेश में कहा कि नवनीत कौर के पिता ने सांसद द्वारा इस तरह के प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किये जाने से पहले अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए दो बार प्रयास किए थे.
हालांकि, जुलाई 2012 में पालघर के तहसीलदार के समक्ष किए गए उनके पहले आवेदन को खारिज कर दिया गया था, मगर जुलाई 2013 में मुंबई में डिप्टी कलेक्टर के समक्ष किया गया दूसरा आवेदन स्वीकार कर लिया गया था.
इन दोनों ही अवसरों पर कौर के पिता ने बॉम्बे नगर निगम के पोइसर हिंदी स्कूल, बोरीवली द्वारा निर्गत स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र (स्कूल लीविंग सर्टफिकेट) यह दावा करने के लिए प्रस्तुत किया था कि वह ‘मोची जाति’ से संबंध रखते हैं.
हालांकि, हाईकोर्ट ने यह देखा कि मुंबई में जमा किया गया स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र पालघर में दाखिल किए गए प्रमाण पत्र से अलग था. साथ ही, जिस स्कूल के बारे में कहा जाता है कि उसने यह प्रमाण पत्र जारी किया था, वह उस समय अस्तित्व में नहीं था जब वह (कौर के पिता) वहां के छात्र रहे होंगें.
जहां तक कॉलेज के प्रमाण पत्र का सवाल था, उच्च न्यायालय ने उस ‘सतर्कता रिपोर्ट’ पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि यह एक फोटोकॉपी है और जांच अधिकारी को इसकी मूल प्रति का निरीक्षण करने के लिए कॉलेज के रजिस्टर की जांच करने की अनुमति नहीं थी.
‘रेंट एग्रीमेंट’ पर, हाईकोर्ट को यह बात अजीब लगी कि 1932 में तैयार किए गए इस दस्तावेज़ में नवनीत कौर के दादा की जाति का उल्लेख ‘सिख चमार’ के रूप में किया गया था, जबकि उस समय ऐसा करने की कोई क़ानूनी आवश्यकता नहीं थी.
हाईकोर्ट ने एक विरोधाभास यह भी पाया कि हालांकि नवनीत कौर के दादा के प्रमाण पत्र में कहा गया था कि वह ‘सिख चमार’ थे, मगर उनका कहना था कि वह ‘मोची जाति’ से सम्बन्ध रखती हैं.
कौर के इस तर्क को खारिज करते हुए कि दोनों जातियां एक ही अर्थ वाली (समानार्थी) हैं, उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘सिख चमार’ राज्य की अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल नहीं है.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब बॉम्बेहाई कोर्ट के इस के आदेश पर रोक लगा दी है, मगर यह मामला फिलहाल अधर में लटका है.
अडसुल की ओर से पेश हुए एक वकील ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अदालत इस मामले में तेजी के साथ कोई फैसला करेगी, खासकर अपने पहले आदेश को देखते हुए. इस वकील ने कहा, ‘दुर्भाग्यवश, हम नहीं जानते कि अदालत ने एक बार भी हमारी सुनवाई क्यों नहीं की.’
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