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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशइतिहास को औपनिवेशिक काल से निकालने में लगा स्मारक प्राधिकरण, इसके केंद्र में दिल्ली के 'फाउंडर-किंग' अनंगपाल

इतिहास को औपनिवेशिक काल से निकालने में लगा स्मारक प्राधिकरण, इसके केंद्र में दिल्ली के ‘फाउंडर-किंग’ अनंगपाल

इस केंद्रीय निकाय के प्रयासों का उद्देश्य राजधानी को ‘इस्लामी आक्रमणों और ब्रिटिश पूर्वाग्रहों के बीच कहीं गुम हो गए हिंदू-सिख इतिहास' को सामने लाना है. इसी तरह के प्रोजेक्ट कई अन्य राज्यों में भी चल रहे हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) दिल्ली के इतिहास को ‘उपनिवेश से आजाद’ करने के लिए तैयार है. एनएमए स्मारकों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए स्थापित एक सरकारी निकाय है जो संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करता है.

एनएमए के अध्यक्ष तरुण विजय ने दिप्रिंट को बताया कि इन प्रयासों का मकसद ‘इस्लामी आक्रमणों और ब्रिटिश पूर्वाग्रहों’ के बीच कहीं खो गए हिंदू-सिख इतिहास को सामने लाना है.

इस तरह के प्रोजेक्ट सिर्फ दिल्ली में चल रहे है, ऐसा नहीं है. एनएमए अन्य राज्यों में भी इसी तरह की योजनाओं पर काम कर रहा है. उनका उद्देश्य इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो चुके नायक-नायिकाओं और ऐतिहासिक महत्व के भूले हुए स्थानों को पुनर्जीवित करना है. यह इकाई एक तरफ महाराष्ट्र के सतारा में ताराबाई की समाधि को फिर से जीवंत करने में लगी है- छत्रपति शिवाजी के छोटे बेटे राजाराम की विधवा ताराबाई ने 1761 में अपनी मृत्यु होने तक मराठा साम्राज्य में एक केंद्रीय भूमिका निभाई थी.

तो वहीं दूसरी तरफ मानगढ़ हत्याकांड के पीड़ितों के लिए राजस्थान में एक स्मारक बनाने का काम भी चल रहा है. यहां 1913 में अंग्रेजों ने लगभग 15,000 आदिवासी लोगों को मार गिराया था.

लेकिन एनएमए के प्रोजेक्ट के केंद्र में अनंगपाल तोमर द्वितिय हैं. इन्हें बहुत से लोग दिल्ली के फाउंडर-किंग यानी उस राजा के रूप में जानते हैं जिसने दिल्ली को बसाया था. सरकारी निकाय की योजना मध्य दिल्ली में किसी स्थान पर उनकी एक प्रतिमा लगाने और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की है.

कौन हैं दिल्ली के ‘संस्थापक राजा’?

तोमर वंश के सदस्य अनंगपाल तोमर द्वितीय ने आठवीं और 12 वीं शताब्दी के बीच वर्तमान दिल्ली और हरियाणा के कुछ हिस्सों पर शासन किया था. दिल्ली के लौह स्तंभ पर मिले एक शिलालेख में उनके नाम का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि उन्होंने लगभग 1052 ईस्वी में ढिल्लिकापुरी से शासन किया था.

मध्यकालीन इतिहासकार प्रोफेसर के.ए. निज़ामी की उर्दू भाषा में लिखी गई किताब ‘एहद-ए-वस्ता की दिल्ली’ में जिक्र किया गया कि जब तोमर राजपूतों ने अरावली क्षेत्र में पहाड़ों पर अधिकार कर लिया था , तब दिल्ली 11वीं शताब्दी में एक शहर के रूप में उभरा था.

भाजपा के पूर्व सांसद रह चुके एनएमए के अध्यक्ष तरुण विजय ने कहा, ‘आज जब आप किसी से पूछते हैं कि दिल्ली का ‘संस्थापक राजा’ कौन है या दिल्ली को किसने बसाया, तो कोई इस बारे में नहीं जानता है, बुद्धिजीवी भी नहीं जानते. इस्लामी आक्रमणों और ब्रिटिश पूर्वाग्रहों ने इस इतिहास को दबा दिया. और फिर वामपंथी इतिहासकारों और वामपंथी झुकाव वाले पुरातत्वविदों ने कभी नहीं चाहा कि दिल्ली का हिंदू-सिख इतिहास सामने आए. मुगल आक्रमणकारी दिल्ली के विध्वंसक थे. वे जहां भी गए, बस अपने आक्रमण के निशान स्थापित करते चले गए.’

एनएमए प्रमुख ने बताया कि सरकारी निकाय मध्यकालीन शासक द्वारा स्थापित महरौली में एक बावड़ी ‘अनंगताल’ में हेरिटेज वॉक आयोजित करके राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय के बारे में जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहा है.

विजय ने दिप्रिंट को बताया, ‘कुतुब परिसर में विष्णु गरुड़ ध्वज (लौह स्तंभ) भी राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय द्वारा लाया गया था. यह 27 हिंदू मंदिरों और मंदिरों के पीछे एक तालाब से घिरा हुआ था. इसके नामों-निशां अब धूमिल होने की स्थिति में है. इन मंदिरों को कुतुबुद्दीन ऐबक ने मस्जिद और मीनार बनाने के लिए गिरा दिया था. हम उसी तालाब के चारों ओर हेरिटेज वॉक का आयोजन कर रहे हैं. यह अनंगताल को फिर से जीवंत और पुनर्जीवित करने के लिए है.’

एनएमएअब तक अनंगताल में तीन हेरिटेज वॉक का आयोजन कर चुका है. इसमें दिल्ली के मुख्य सचिव विजय कुमार देव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल, केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी और अर्जुन राम मेघवाल और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय शामिल हुए थे.

बी.आर. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक मणि ने भी हेरिटेज वॉक में भाग लिया था. उन्होंने 1993 के बाद से अनंगताल में दो साल की खुदाई का निरीक्षण किया है. मणि को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल की खुदाई के दौरान एक मंदिर के अवशेष खोजने का श्रेय दिया गया है.


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इतिहासकारों ने कहा, पर्याप्त सबूत नहीं

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर सैयद अली नदीम रिजवी इस दावे का समर्थन करते हैं कि अनंगपाल तोमर नाम का एक शासक था जिसने कुछ संरचनाओं का निर्माण किया, जहां दिल्ली के सबसे पुराने अवशेष खड़े हैं. वह कहते हैं, लेकिन ये उन्हें ‘ संस्थापक राजा’ घोषित करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

प्रोफेसर रिजवी ने कहा, ‘दिल्ली के विकास का पता लगाने वाले इतिहासकारों का मानना है कि लाल कोट दिल्ली का पहला शहर था. लगभग 10 वीं से 11 वीं शताब्दी के दौरान उस जगह पर एक बस्ती मौजूद थी. यहां आज कुव्वत-उल-इस्लाम परिसर स्थित है. वह किला जिसे अब लाल कोट के नाम से जाना जाता है और जिसका विस्तार पृथ्वीराज चौहान और बाद में तुर्कों द्वारा किया गया था, मूल रूप से अनंगपाल तोमर द्वितीय के युग के दौरान बनाया गया था. लेकिन यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि क्या वह ‘संस्थापक राजा’ थे.’

प्रोफेसर रिजवी ने इन आरोपों के बारे में पूछे जाने पर कि क्या ‘वामपंथी इतिहासकारों’ ने दिल्ली के इतिहास पर लीपापोती की है, उन्होंने कहा, ‘2014 के बाद से एक प्रवृत्ति उभर कर आ रही है. पौराणिक कथाओं को बिना किसी सबूत के इतिहास के रूप में पेश किया जा रहा है. कभी इसका आरोप वामपंथियों पर लगाया जाता है तो कभी नेहरू पर, या फिर कभी औरंगजेब या बाबर पर. आधा सच, एक पूरे झूठ से कहीं तेजी से फैलता है.’

अशोक विश्वविद्यालय में इतिहास के सहायक प्रोफेसर प्रत्यय नाथ भी कहते हैं कि दिल्ली की नींव रखने की सही तारीख के बारे में जान पाना मुश्किल है.

उन्होंने कहा, ‘पाषाण युग के बारे में जानने के लिए, दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में प्रागैतिहासिक काल से मानव निवास के प्रमाण मौजूद हैं. तोमर राजपूतों ने 10वीं-11वीं शताब्दी के आसपास दिल्ली के दक्षिणी हिस्सों को अपने राजनीतिक दायरे में शामिल कर लिया था. उन्होंने एक किला बनवाया जिसे आज हम लाल कोट के नाम से जानते हैं. आखिर में उन्हें चौहान राजपूतों ने पराजित कर दिया और वे विस्थापित हो गए. बाद में लाल कोट का विस्तार किया गया और इसे किला राय पिथौरा या पृथ्वीराज का किला कहा जाने लगा.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘चौहान भी 1192 में तुर्कों द्वारा पराजित और विस्थापित हो गए थे. तोमर, चौहान और तुर्क सभी आज की दक्षिणी दिल्ली में महरौली और उसके आसपास के क्षेत्र में रहते थे. धीरे-धीरे बस्तियां बसती चली गई और इसी तरह धीरे-धीरे शहर का उदय हुआ.’

प्रोफेसर नाथ का कहना है कि कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को ब्रिटिश अधिकारियों ने औपनिवेशिक काल के दौरान लोकप्रिय बनाया था. क्योंकि यह हिंदू और मुसलमानों के दो अलग-अलग और विरोधी समुदायों के संदर्भ में भारतीय अतीत की उनकी कल्पना के अनुरूप था.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मूल मस्जिद का निर्माण आसपास के क्षेत्रों के हिंदू और जैन मंदिरों के कुछ हिस्सों का पुन: उपयोग और भूमि के पुनर्विकास करके किया गया था. इस तरह की सामग्री का पुन: उपयोग – धार्मिक और किसी अन्य प्रायोजन के लिए – मध्ययुगीन भारत में आम था. और यह धार्मिक सीमाओं से परे था. इस मूल मस्जिद का विस्तार तेरहवीं शताब्दी में नई सामग्री का इस्तेमाल करके किया गया था.’

बाबा बंदा सिंह बहादुर

राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण की पहल का एक हिस्सा बंदा सिंह बहादुर के महरौली स्थित शहीदी-स्थल (शहादत स्थान) का पुनरुद्धार करना भी है. यह एक हिंदू तपस्वी थे जिन्होंने 10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के संरक्षण में सिख धर्म अपना लिया था. वह बाद में सिख आइकन बनकर उभरे.

एनएमए प्रमुख विजय ने कहा, ‘दिल्ली के लोगों को केवल मुगल इतिहास के बारे में बताया गया है. मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों के अत्याचारों का सामना करने वालों को आसानी से भुला दिया गया. बंदा सिंह बहादुर और गुरु तेग बहादुर के बलिदान के बारे में अब बात की जा रही है क्योंकि पीएम मोदी इसमें खास रुचि लेते हैं.’

उन्होंने महरौली में बाबा बंदा सिंह बहादुर की शहादत स्थल तक पैदल मार्ग बनाने की एनएमए की योजनाओं का खुलासा करते हुए कहा, ‘दिल्ली मुगल शहर नहीं है – यह तेहरान का हिस्सा नहीं है. इसका अपना इतिहास है, जो आक्रमण और अज्ञानता के चलते नीचे कहीं दब गया है. ये दिल्ली के आइकन हैं.’

विजय ने दिप्रिंट को बताया, ‘जहां वह शहीद हुए थे, उस जगह पर उनकी स्मृति में कोई पट्टिका भी नहीं है…हम उस जगह को विकसित करना चाहते हैं और भविष्य में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित करेंगे. उनके वंशज जतिंदर पाल सिंह सोढ़ी भी पुनरुद्धार के इन प्रयासों से खुश हैं. हमारे पास एम एस सिरसा और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका का समर्थन है. प्रसिद्ध इतिहासकार हरबंस कौर सागू भी हमारे साथ हैं.’

पहले जहां सिर्फ मुगल काल से पहले के स्मारकों को ही तवज्जों मिल रही थी. उन्हीं पर ध्यान दिया जाता रहा था. लेकिन अब एनएमए एक विचार ‘ ऑल इनक्लूसिव स्काइलाइन’ लेकर आया है जिसमें अन्य स्मारक को भी शामिल किया गया है.

तरुण विजय ने कहा, ‘हम पहले मुगल-निर्मित स्मारकों कुतुब मीनार, हुमायूं का मकबरा को ही तवज्जों देते आ रहे थे. लेकिन अब हमने बचे हुए महत्वपूर्ण स्मारकों और पूजा स्थलों को भी इसमें शामिल कर लिया है’ कुतुब मीनार लगभग तीन शताब्दियों तक मुगल साम्राज्य की स्थापना से पहले की है.

उनकी इस योजना में ताजमहल और लाल किला भी शामिल हैं. इन दोनों स्मारकों को मुगल शासकों ने बनवाया था. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में गुरुद्वारा दाता बंदी के अलावा, कश्मीर में मार्तंड सूर्य मंदिर, अरुणाचल में तवांग मठ, केरल में वल्लारपदम चर्च, राजस्थान के रणकपुर में जैन मंदिर, महाराष्ट्र के दहानू में बहरोट गुफाएं, जो पारसियों के लिए पूजनीय हैं, और असम के चराईदेव में अहोम मैदाम को भी शामिल किया गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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