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Tuesday, 1 October, 2024
होमदेशनेशनल मेडिकल कमीशन ने 'कन्वर्जन थेरेपी' पर लगाया बैन, कहा- ये चिकित्सकीय पेशे के खिलाफ

नेशनल मेडिकल कमीशन ने ‘कन्वर्जन थेरेपी’ पर लगाया बैन, कहा- ये चिकित्सकीय पेशे के खिलाफ

कन्वर्जन थेरेपी एक ऐसा तरीका है जिसके जरिये समलैंगिक लोगों को जबरन ‘ठीक’ करने की कोशिशें की जाती हैं. एनएमसी ने मद्रास हाई कोर्ट को बताया है कि उसने पिछले महीने ही इस थेरेपी पर प्रतिबंध लगाने संबंधी नोटिफिकेशन जारी किया है.

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नई दिल्ली: भारतीय चिकित्सा नियामक नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने शुक्रवार को कहा कि उसने कन्वर्जन थेरेपी— जो समलैंगिक लोगों को ‘ठीक’ करने के नाम पर अपनाया जाने वाला एक अवैध तरीका है— को पेशेवर कदाचार घोषित किया है.

एनएमसी ने शुक्रवार को एक सुनवाई के दौरान मद्रास हाई कोर्ट को बताया कि उसने कोर्ट के 8 जुलाई के आदेश का पालने करते हुए भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 के तहत इस प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगा दिया है.

एनएमसी ने कोर्ट को बताया कि उसने 25 अगस्त को ही राज्य चिकित्सा परिषदों को इस संबंध में एक अधिसूचना भेज दी है.

यह कदम लीजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय का जीवन बेहतर बनाने के लिए मद्रास हाई कोर्ट की तरफ से जारी किए गए कुछ आदेशों के बाद उठाया गया है.

जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश की अध्यक्षता वाली पीठ ने 8 जुलाई के अपने आदेश में एनएमसी को आदेश दिया था कि उसकी तरफ से कन्वर्जन थेरेपी को चिकित्सकीय कदाचार के तौर पर सूचीबद्ध किया जाए ताकि यह तरीका अपनाने वाले डॉक्टरों पर मुकदमा चलाना सुनिश्चित हो सके.

यह आदेश हाई कोर्ट के पिछले निर्देशों के क्रम में ही था, जिसमें आयोग को यह गारंटी देने के लिए कहा गया था कि राज्य चिकित्सा परिषदें एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए कन्वर्जन थेरेपी को कदाचार घोषित करेंगी.

विशेषज्ञों ने इस उपाय का यह कहते हुए स्वागत किया है कि इससे इलाज के नाम पर गैर-कानूनी तरीके अपनाने पर रोक लगाने में मदद मिलेगी.


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कोर्ट ने क्या कहा

कन्वर्जन थेरेपी के तहत मनोवैज्ञानिक स्तर पर किसी व्यक्ति के सेक्सुअल ओरिएंटेशन, लिंग पहचान या लिंग अभिव्यक्ति को जबरन बदलने का प्रयास किया जाता है. इसे कई बार रिपेरेटिव थेरेपी भी कहा जाता है, इसमें काउंसिलिंग और प्रार्थना के साथ-साथ कई अन्य तरीके भी अपनाए जाते हैं जैसे झाड़-फूंक, शारीरिक हिंसा और भूखा रखना आदि. इन तरीकों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति की यौन या लिंग पहचान बदलने या दबाने की कोशिश करने के लिए किया जाता है ताकि उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन या लिंग पहचान को बदलकर उन्हें ‘ठीक’ किया जा सके.

मद्रास हाई कोर्ट ने शुक्रवार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित (अधिकारों का संरक्षण) नियमों को अधिसूचित करने के लिए तमिलनाडु सरकार को 12 हफ्तों का समय दिया, जब सरकार ने कोर्ट को बताया कि अधिनियम अपने अंतिम चरण में है.

अदालत ने यह नीति लागू करने में देरी के लिए राज्य सरकार को फटकार भी लगाई.

कोर्ट ने कहा, ‘यह प्रक्रिया एक साल से अधिक समय से जारी है और समझ नहीं आ रहा कि 2019 के अधिनियम में उल्लिखित ट्रांसजेंडर नीति और नियमों को लागू करने के लिए छह महीने का समय क्यों मांगा जा रहा है.’

हाई कोर्ट ने नीति को अंतिम रूप देने के लिए छह माह का समय देने के राज्य सरकार के अनुरोध को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि ये दर्शाता है कि इस मुद्दे पर उचित तरीके से ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) एस. सिलम्बनन ने कोर्ट को बताया कि एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के संदर्भ में इस्तेमाल होने वाली शब्दावली को आधिकारिक गजट में प्रकाशित किया गया था और क्वीर (समलैंगिक) समुदाय को संबोधित करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाएगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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