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पारंपरिक ‘पंचकोष विकास’ सिद्धांत पर आधारित है राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा

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नयी दिल्ली, 20 अक्टूबर (भाषा) शिक्षा मंत्रालय ने 3-8 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिये बुनियादी स्तर पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा पेश की है जो पारंपरिक भारतीय ‘‘पंचकोष विकास’’ सिद्धांत पर आधारित है तथा इसमें बच्चों के शारीरिक, प्राणमय, मानसिक, बौद्धिक और चेतना संबंधी विकास पर जोर दिया गया है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने बृहस्पतिवार को बुनियादी स्तर के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा पेश की ।

पाठ्यचर्या रूपरेखा के मसौदे में कहा गया है कि शिक्षा, तंत्रिका विज्ञान एवं अर्थशास्त्र पर दुनियाभर में हुए शोधों से यह स्पष्ट होता है कि मुक्त, सुगमता से पहुंच वाली एवं बाल्यावस्था में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना किसी देश के भविष्य के लिये सबसे अच्छा निवेश हो सकता है।

इसके अनुसार, बाल्यावस्था के प्रथम आठ वर्षो में मस्तिष्क का सबसे तेज गति से विकास होता है, ऐसे में प्रारंभिक वर्षो में संज्ञानात्मक बोध और समाजिक भावनात्मक स्फूर्ति का काफी महत्व होता है।

मसौदे के अनुसार, यह पारंपरिक भारतीय ‘‘पंचकोष विकास’’ सिद्धांत पर आधारित है । इसमें शारीरिक विकास, प्राणमय विकास (जीवन ऊर्जा का विकास), भावनात्मक एवं मानसिक विकास, बौद्धिक विकास और चेतना संबंध एवं आध्यात्मिक विकास के तत्व शामिल हैं ।

इसमें कहा गया है कि पंचकोष का प्रत्येक स्तर में विशिष्ठ खूबियां समाहित हैं और बच्चे का समग्र विकास इन पांचों तत्वों के पोषण से जुड़ा होता है।

मसौदे के अनुसार इसके विषयवस्तु एवं अभ्यास इस बात को ध्यान में रखकर तैयार किये गए हैं कि प्रत्येक कोष एक दूसरे से जुड़ा हुए होते हैं। इसमें प्राचीन भारतीय स्मृति परिकल्पना को भी जोड़ा गया है।

पाठ्यचर्या में सावित्री बाई, ज्योति बा फुले, रवीन्द्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंदो, जिद्दू कृष्णामूर्ति के शिक्षा से जुड़े विचारों को समाहित किया गया है।

‘बुनियादी स्तर के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा’ में कहा गया है कि आंगनवाड़ी में शिक्षा को लेकर आपूर्ति एवं आधारभूत ढांचे से जुड़ी कमियां हैं तथा बाल्यावस्था के स्तर पर प्रशिक्षित शिक्षकों की भी कमी है। प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के स्तर पर निजी क्षेत्र में प्ले स्कूल या प्री स्कूल का सटीक आंकड़ा नहीं है।

इसमें कहा गया है कि समन्वित बाल विकास योजना की बेहतर पहुंच के बावजूद प्राथमिक स्कूलों की तुलना में आंगनवाड़ी में कम दाखिला एवं उपस्थिति मुख्य चुनौती बनी हुई है।

इसमें बच्चों में जिज्ञासा एवं तार्किक सोच के विकास के साथ समस्या समाधान, टीमवर्क पर जोर दिया गया है। इसमें खेल आधारित पठन पाठन तथा कला, शिल्प, संगीत आधारित गतिविधि को महत्व दिया गया है।

मसौदे के अनुसार, संस्थागत स्तर पर 3-8 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की श्रेणी को दो भागों में बांटा गया है जिसमें 3-6 वर्ष आयु वर्ग के आंगनवाड़ी, बाल वाटिकाओं में पढ़ने वाले बच्चों के लिये शुरूआती बाल्यावस्था शिक्षा कार्यक्रम तथा 6-8 वर्ष आयु वर्ग की श्रेणी में शुरूआती प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम शामिल है।

इसमें शुरूआती स्तर पर घर की भाषा को निर्देश एवं पढ़ाई का माध्यम बनाने पर जोर दिया गया है ।

भाषा दीपक

दीपक माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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