नई दिल्ली: मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने दि प्रिंट को बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार इस सप्ताह एक अध्यादेश लाने की जुगत में है, यह अध्यादेश विश्वविद्यालयों में चल रहे फैकल्टी भर्ती कार्यक्रम के विवादास्पद फॉर्मूले को खत्म करने की एक और कोशिश होगी.
केंद्रीय कैबिनेट ने कहा कि इस अध्यादेश पर बुधवार को बैठक होनी है. अधिकारी ने आगे बताया कि इस मामले में आखिरी बैठक लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले भी हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई नई गणना के अनुसार इनदिनों एससी, एसटी ट्राइब्स और बैकवार्ड क्लास का कोटा विभाग के स्ट्रेंथ के आधार पर तय होता है जबकि पहले उस पूरे संस्थान के स्ट्रेंथ के आधार पर तय होता था.
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एक अप्रैल 2017 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को आगे बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे दो बार दोहराया है एक (अक्टूबर 2017 और जनवरी 2019 में). फिलहाल नया फॉर्मूला विभिन्न विश्वविद्यालय के विभागों में कोटा पाने वाले लाभार्थियों के लिए अधिक संतुलित करने की कोशिश है. हालांकि, इस सिस्टम की बहुत आलोचना हुई है, आलोचकों का आरोप है कि यह उन पदों की संख्या को बहुत कम कर देगा जिनके लिए वे आवेदन कर सकते थे.
न्याय का गर्भपात हुआ है
नरेंद्र मोदी की सरकार अध्यादेश को अब अपना अंतिम रास्ता मान रही है. क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के जनवरी में दिए आदेश के खिलाफ मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने याचिका दायर की थी जिसे पिछले हफ्ते अदालत ने खारिज कर दिया है.
अपनी याचिका में मंत्रालय ने इस बात का वर्णन किया था कि विभाग के आधार पर नियुक्तियां करना न्याय का गर्भपात करने जैसा है. अगर यह नई प्रणाली लागू कर दी जाती है तो विश्वविद्यालयों में एससी के प्रतिनिधित्व में 58-97 फीसदी, एसटी में 78-100 फीसदी और ओबीसी के सभी पदों की नियुक्तियों में 25-100 फीसदी तक कि गिरावट दर्ज होगी. यानी एसोसिएट प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर और प्रोफेसर. यह विश्लेषण 20 विश्वविद्यालयों में किए गए एक अध्ययन पर आधारित था.
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बता दें कि अध्यादेश पहले के फार्मूले के आधार पर ही इसे बहाल करना चाहता था. जहां आरक्षण संस्थान के पूरे कर्मचारियों की संख्या के आधार पर दिया जाता था. यह सरकार के जनादेश जिसमें वह ओबीसी के लिए 27 फीसदी, एससी के लिए 15 फीसदी और एसटी के लिए 7.5 फीसदी को सुनिश्चित करने के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता रहा है. केंद्र सरकार ने इस रोस्टर प्रणाली को 2006 में शुरू किया था जिसमें यह आवश्यक था कि हर पोस्ट के लिए 14 रिक्तियां आवश्यक थी.
उदाहरण के तौर पर यदि किसी स्कूल में 15 शिक्षकों की नियुक्तियां की जा रही हैं तो हर चौथा रिक्त स्थान ओबीसी कैटेगरी के लिए आरक्षित था जबकि सातवां अनुसूचित जाति और हर 14 वां रिक्त स्थान अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित था. लेकिन अगर विभाग को एक इकाई माना जाता है तो जनादेश को संतुष्ट करना मुश्किल काम हो गया है क्योंकि किसी भी विभाग में किसी भी विशेष स्तर पर 10 से अधिक सदस्य होने की संभावना नहीं के बराबर ही होती है.
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