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शुक्रवार, 6 जून, 2025
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नरसिम्हा राव, जिनके प्रधानमंत्रित्व काल में देश में दूरगामी आर्थिक सुधारों की शुरूआत हुई

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नयी दिल्ली, नौ फरवरी (भाषा) बहुभाषाविद्, राजनेता और विद्वान, पी. वी. नरसिम्हा राव को भारतीय राजनीति के चाणक्य के रूप में जाना जाता है, जिनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान देश में दूरगामी आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई थी।

राव के निधन के 19 साल बाद शुक्रवार को उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजे जाने की घोषणा की गई है। वह 1991 से 1996 तक देश के प्रधानमंत्री पद पर रहे थे।

वह किसी दक्षिणी राज्य से देश के पहले प्रधानमंत्री थे। वह नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के ऐसे पहले कांग्रेस नेता थे जिन्होंने प्रधानमंत्री के पद पर पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। उन्होंने 1990 के दशक की शुरूआत में भारत को आर्थिक भंवर से निकाला।

प्रधानमंत्री के पद पर उनके पांच साल के कार्यकाल के दौरान बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाये जाने की घटना हुई, भगवा ताकतें उभरीं और देश को एक नये आर्थिक पथ पर मजबूती से आगे बढ़ाया गया, जो सार्वजनिक क्षेत्र के समाजवाद के नेहरू काल से हटकर था।

अपनी विद्वता और राजनीतिक कौशल का परिचय देते हुए, उन्होंने 1992 के बाबरी विध्वंस के बाद मुस्लिम मौलवियों को उर्दू भाषा में समझाया-बुझाया। घटना वाले सप्ताह में बाद में, उन्होंने अपने आवास पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के परिवीक्षा अधिकारियों को संबोधित करते हुए भगवद् गीता के श्लोक उद्धृत किए।

उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से एक दिन पहले कहा था कि वह इस समय ‘अभिभूत’ और ‘एक प्रभावशाली व्यक्ति की तरह’ महसूस कर रहे हैं।

राव राजनीतिक विमर्श से कभी भी बाहर नहीं रहे। कांग्रेस के निष्ठावान सदस्य को उनकी पार्टी में सहकर्मी मणिशंकर अय्यर सहित कुछ लोगों ने उनके विरोधाभासी वैचारिक रुख को लेकर देश के ‘पहले भाजपा प्रधानमंत्री’ के रूप में संदर्भित किया था। और भाजपा के कई नेताओं ने आरोप लगाया कि राव को उनकी ही पार्टी ने अस्वीकार कर दिया था।

अविभाजित आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले के वंगारा गांव में एक कृषक परिवार में 28 जून, 1921 को राव का जन्म हुआ था। उन्होंने उस्मानिया, मुंबई और नागपुर विश्वविद्यालयों में शिक्षा हासिल की, जहां से उन्होंने बीएससी और एलएलबी की उपाधि ली।

राजनीति के क्षेत्र में उनका पदार्पण 1938 में उनके कॉलेज में ‘वंदे मातरम’ गाने पर निज़ाम सरकार के प्रतिबंध के विरोध के दौरान हुआ था।

नेहरू-गांधी परिवार के विश्वस्त राव ने 1980 के दशक में अलग-अलग अवधि के दौरान केंद्र में महत्वपूर्ण गैर-आर्थिक विभाग–विदेश मंत्रालय, रक्षा और गृह मंत्रालय-संभाला था।

राव उस समय प्रधानमंत्री बने, जब वह सुर्खियों से दूर हो गए थे। उन्होंने 1991 का चुनाव नहीं लड़ा था, राष्ट्रीय राजधानी में समय देना लगभग छोड़ दिया था और कहा जा रहा था कि उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया है।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। राजीव गांधी की 21 मई 1991 को हत्या हो गई। राव, कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए आम सहमति वाले उम्मीदवार बन गए, जिसने उन्हें चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बना दिया।

उन्होंने कुछ समय अल्पमत वाली सरकार का नेतृत्व किया और बाद में विवादास्पद परिस्थितियों में लोकसभा में बहुमत हासिल किया, जिसके बारे में उनके विरोधियों का कहना है कि उन्होंने यह संदिग्ध तरीके से हासिल किया।

राव, ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने आपराधिक आरोपों का सामना किया।

उन्होंने जिन तीन मामलों में मुकदमे का सामना किया उनमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) सांसद रिश्वत कांड, सेंट किट्स फर्जीवाड़ा मामला और विवादास्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी की संलिप्तता वाला लक्खूभाई पाठक धोखाधड़ी मामला शामिल है। हालांकि, तीनों मामलों में वह पाक-साफ साबित हुए।

लक्खूभाई पाठक मामले में उन्हें राहत 23 दिसंबर 2004 को 83 वर्ष की आयु में उनका निधन होने से कुछ समय पहले मिली।

‘हवाला’ कांड में फंसाये जाने पर राव अपनी ही पार्टी के सहयोगियों और विपक्षी नेताओं के निशाने पर आ गए।

उनके आर्थिक सुधारों का एजेंडा मुख्य रूप से ‘‘उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण’’ पर केंद्रित रहा, जिसे अक्सर ‘एलपीजी’ कहा जाता है।

राव-मनमोहन सिंह की जोड़ी को देश को गंभीर विदेशी मुद्रा संकट से बाहर निकालने का श्रेय जाता है।

हालांकि, उनके शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में, दिसंबर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे का विध्वंस और उसके बाद हुए देशव्यापी सांप्रदायिक दंगे भी शामिल हैं।

वह 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों के समय केंद्रीय गृह मंत्री थे और उन्हें ‘आपराधिक अकर्मण्यता’ तक के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।

प्रतिभूति घोटाले के एक साल बाद 1993 में, हर्षद मेहता ने उस समय सनसनी फैला दी जब उन पर आरोप लगा कि उन्होंने राव को उनके आवास पर एक करोड़ रुपये से भरा एक सूटकेस सौंपा था। राव को इस राजनीतिक संकट से बाहर आने में थोड़ा समय लगा।

कई घोटालों ने उनकी सरकार को अलोकप्रिय बना दिया, जिसके बाद मई 1996 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को शिकस्त मिली।

सोनिया गांधी के पार्टी की कमान संभालने के बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा।

इसके बाद, राव फिर से लेखन करने लगे। उन्होंने 700 पन्नों से अधिक की अर्ध-आत्मकथा ‘द इनसाइडर’ लिखी, जिसका विमोचन उनके कट्टर-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी लेकिन करीबी दोस्त एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया।

हिंदी में साहित्य रत्न, राव स्पेनिश सहित कई भाषाओं में पारंगत थे।

राजीव गांधी से प्रेरणा लेते हुए, राव ने तेजी से प्रौद्योगिकी को अपनाया। जब वह कंप्यूटर के आदी हुए, तब उनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक थी। वह उस दौर में कंप्यूटर पर घंटों बिताते थे, जब अधिकांश राजनीतिक नेता कंप्यूटर में साक्षर भी नहीं थे।

नवोदय विद्यालय योजना का विचार उन्होंने ही दिया था।

वाशिंगटन में 1994 में, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ एक शिखर बैठक के बाद राव के कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों में तेजी से प्रगति हुई।

राव को संगीत, सिनेमा और रंगमंच पसंद थे, जबकि उनकी विशेष रुचि भारतीय दर्शन और संस्कृति में थी। उनकी रूचि कहानी और राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएं सीखने, तेलुगू और हिंदी में कविताएं लिखने तथा साहित्य में भी थी।

भाषा सुभाष नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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