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Tuesday, 19 November, 2024
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नैनो, माइक्रो, स्मॉल: भारत में विभिन्न तरह के ड्रोन हैं और क्या जम्मू जैसी घटना को टाला जा सकता है

जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर रविवार को हुए एक ड्रोन हमले ने मानव रहित एयर व्हीकल की ओर फिर ध्यान आकृष्ट किया है, और यह इसका संकेत भी है कि वे कैसे भारत के लिए एक नई आतंकी चुनौती बन सकते हैं.

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नई दिल्ली: सोशल मीडिया व्लॉगर्स और फसल विशेषज्ञों से लेकर वेडिंग फोटोग्राफर और आपदा राहत कर्मियों तक- ड्रोन का इस्तेमाल हर क्षेत्र में एक अभिन्न हिस्सा बन गया है.

जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर रविवार को हुए ड्रोन हमले के बाद मानव रहित एयर व्हीकल भारत के लिए एक नई आतंकी चुनौती के तौर पर सामने आए हैं.

यह खतरा उस समय और भी बड़ा नजर आया जब रविवार रात से सोमवार सुबह के बीच रत्नुचक-कालूचक सैन्य क्षेत्र में दो ड्रोन देखे गए. हालांकि, सेना के जवानों की तरफ से फायरिंग के बाद ड्रोन वहां से गायब हो गए.

जम्मू ड्रोन हमले की जांच जारी रहने के बीच रक्षा सूत्रों ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी नियमित, गैर-सैन्य ड्रोन का इस्तेमाल किया गया हो.

चीनी उत्पादों सहित भारत में खरीदने के लिए आसानी से उपलब्ध सिविलियन ड्रोन विभिन्न आकार और वजन वाले होते हैं.

भारत सरकार ने ड्रोन संचालन को नियंत्रित करने के लिए नियम बनाए हैं- इन्हें पहली बार 2018 में लागू किया गया था इस साल इसमें कुछ संशोधन किए गए हैं-लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये दिशानिर्देश रविवार जैसी हमले की घटनाओं को रोकने के लिए अपर्याप्त हैं. उनका कहना है कि दुष्ट ड्रोन पर लगाम लगाना मुश्किल है.

भारत में ड्रोन

ड्रोन मानव रहित एयर व्हीकल है जिन्हें दूर बैठे किसी पायलट द्वारा संचालित किया जा सकता है.

भारतीय ड्रोन उद्योग अभी शुरुआती दौर में है. जून 2020 की फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘देश में 200,000 रिक्रिएशनल और कॉमर्शियल ड्रोन हैं, जिनमें से हर एक की कीमत 200,000 रुपये (2,600 डॉलर) से लेकर दो करोड़ रुपये (26,000 डॉलर) तक है, जो कि उसके आकार और उसकी कार्यक्षमता पर निर्भर करती है.’

फिक्की-अर्नस्ट एंड यंग की जुलाई 2018 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत का ड्रोन उद्योग 2021 तक लगभग 900 मिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा.

सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत में 30 से अधिक पंजीकृत फर्म हैं जो विभिन्न प्रकार के ड्रोन बनाने या असेंबल करने का काम करती हैं.


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ड्रोन को उनके वजन के आधार पर पांच श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है- नैनो (250 ग्राम तक वजन), माइक्रो (250 ग्राम से 2 किलोग्राम), स्मॉल (2 से 25 किग्रा), मीडियम (25 से 150 किग्रा), और लार्ज ( 150 किग्रा से अधिक). नैनो को छोड़कर बाकी सभी ड्रोन के संचालन के लिए एक लाइसेंस प्राप्त पायलट और नागरिक उड्डयन महानिदेशक (डीजीसीए) से परमिट की जरूरत पड़ती है. ड्रोन की श्रेणी के आधार पर ऊंचाई और गति के संबंध में भी अलग-अलग पाबंदियां लागू होती हैं.

मानव रहित विमान प्रणाली नियम, 2021 ड्रोन के संचालन के लिए कुछ शर्तें निर्धारित करता है. उदाहरण के तौर पर, यह दिल्ली के विजय चौक, गृह मंत्रालय की तरफ से अधिसूचित रणनीतिक स्थानों के आसपास, राज्यों की राजधानियों में स्थित केंद्रीय सचिवालयों और पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में ड्रोन उड़ाने को प्रतिबंधित करता है.

मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु और हैदराबाद स्थित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों के आसपास पांच किलोमीटर तक और किसी भी नागरिक, निजी या सैन्य एयरपोर्ट की परिधि से तीन किलोमीटर की दूरी तक ड्रोन का संचालन प्रतिबंधित है.

ड्रोन को अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से 25 किलोमीटर के दायरे में, जिसमें नियंत्रण रेखा भी शामिल है और सैन्य ठिकानों या सैन्य गतिविधियों वालों अन्य क्षेत्रों के आसपास नहीं उड़ाया जा सकता (जब तक इसके लिए स्थानीय सैन्य ठिकाने से मंजूरी नहीं ली जाती).

नियमों के तहत निजी स्तर पर व्यक्तियों और कंपनियों के लिए ड्रोन के आयात, निर्माण, कारोबार, स्वामित्व या संचालन के लिए डीजीसीए की अनुमति लेना जरूरी है.

इसके अलावा, ड्रोन का आयात, निर्माण, व्यापार, स्वामित्व या संचालन करने वाला कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक और 18 वर्ष से अधिक आयु का होना चाहिए.

इसका उल्लंघन करने पर 25,000 रुपये से 50,000 रुपये के बीच जुर्माना लग सकता है.

नैनो ड्रोन आसानी से ऑनलाइन खरीदे जा सकते हैं, जिनमें चीनी दिग्गज कंपनी डीजेआई भी शामिल है. 2018 में ब्रांड ने कथित तौर पर नीति दिशानिर्देशों को अपवाद माना था, जिसके तहत प्रत्येक ड्रोन के लिए भारत में संचालन की अनुमति संबंधी कुछ शर्तों को पूरा करना अनिवार्य होता है.

भारत में इस समय शीर्ष ड्रोन निर्माताओं में आइडियाफोर्ज, एस्टेरिया एयरोस्पेस, आरव अनमैन्ड सिस्टम (एयूएस), आईओटेक और हब्बल फ्लाई शामिल हैं.

ड्रोन की कीमत उसके इस्तेमाल और क्षमता पर निर्भर करती है. उदाहरण के तौर पर कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों का छिड़काव करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन की कीमत पांच लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच हो सकती है; एक सर्वे-मैपिंग ड्रोन की कीमत आठ लाख रुपये से 12 लाख रुपये के बीच हो सकती है; वहीं, सैन्य इस्तेमाल वाले ड्रोन की कीमत उनकी विशिष्टताओं और कार्यक्षमताओं के आधार पर पांच लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक हो सकती है.

ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीएफआई) की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, अरबन प्लानिंग, वन्यजीवों की निगरानी और जंगलों में अवैध गतिविधियां रोकने के अलावा परिवहन योजनाओं, खनन, आपदा प्रबंधन, कृषि संबंधी आकलन और सुरक्षा और निगरानी के उद्देश्य से

भारतीय रेलवे, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और राज्य सरकारों आदि के लिए डाटा जुटाना और उनका विश्लेषण करना कुछ ऐसे काम हैं जिनके लिए भारत में ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है.

‘आवारा ड्रोन’

विशेषज्ञों का कहना है कि तमाम नियमों के बावजूद आवारा ड्रोन एक बड़ा सुरक्षा खतरा बन सकते हैं, खासकर यह देखते हुए कि उनका इस्तेमाल स्टिल फोटोग्राफी, वीडियो रिकॉर्ड करने और भविष्य की कार्रवाई के लिए संभावित जगह की पूरी खोज-खबर लेने में किया जा सकता है.

भारतीय सेना के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘ड्रोन का इस्तेमाल महत्वपूर्ण खुफिया जानकारियां जुटाने और महत्वपूर्ण संपत्तियों और ठिकानों का पता लगाने में किया जा सकता है.’

सूत्र ने कहा, ‘कैमरे इतने शक्तिशाली होते हैं कि आप दो किलोमीटर दूर और काफी ऊंचाई पर होने के बावजूद उसे जूम इन करके बेहद गहन और सटीक जानकारी हासिल कर सकते हैं.’

सूत्र ने कहा, ‘ड्रोन खरीदने और इसका उपयोग करने वाले लोगों की बढ़ती संख्या एक बड़ी चुनौती है. सरकार के नए नियमों की अपनी सीमाएं हैं और उनका (ड्रोन का) पता लगाना बेहद मुश्किल होता है.’

डीएफआई में डायरेक्टर ऑफ पार्टनरशिप स्मित शाह ने जम्मू की घटना पर कहा, ‘ड्रोन पॉलिसी का हरसंभव बेहतर उपयोग भी जम्मू जैसी घटना को रोक नहीं सकता. अगर कोई ड्रोन को असेंबल करना चाहता है और उसे देश के किसी भी हिस्से में उड़ाना चाहता है, तो वह निश्चित तौर पर ऐसा करने में सक्षम है.’

उन्होंने कहा, ‘कोई भी उदार या सख्त नीति दुष्ट ड्रोन के मसले का समाधान नहीं हो सकती. हमें ड्रोन का मुकाबला करने की दिशा में तकनीकी क्षमताएं विकसित करने की जरूरत हैं जिसमें दुष्ट ड्रोन का पता लगाने, पहचानने या मार गिराने में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता हो. हमारे पास कुछ कंपनियां हैं जो यह काम करती हैं लेकिन इस पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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