नई दिल्ली: भारतीय हॉकी टीम ने खेलों के महाकुंभ ओलंपिक में देशवासियों को रोमांच से भर दिया. भारतीय मेन्स हॉकी टीम ने ब्रान्ज मेडल जीत कर देश का 41 साल का सूखा खत्म कर दिया है. टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के शानदार प्रदर्शन के बाद भारत सरकार ने भारतीय खेल और खिलाड़ियों के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान खेल रत्न का नाम बदल दिया है. अब तक पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर दिए जाने वाले इस पुरस्कार का नाम मेजर ध्यान चंद होगा. पीएम मोदी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.
पीएम मोदी ने ट्वीट किया, ‘देश को गर्वित कर देने वाले पलों के बीच अनेक देशवासियों का ये आग्रह भी सामने आया है कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद जी को समर्पित किया जाए. लोगों की भावनाओं को देखते हुए, इसका नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया जा रहा है.’
पीएम ने सिलसिलेवार ट्ववीट किए. उन्होंने लिखा, ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रयासों से हम सभी अभिभूत हैं. विशेषकर हॉकी में हमारे बेटे-बेटियों ने जो इच्छाशक्ति दिखाई है, जीत के प्रति जो ललक दिखाई है, वो वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है.’
पीएम मोदी ने कहा कि मेजर ध्यानचंद भारत के उन अग्रणी खिलाड़ियों में से थे, जिन्होंने भारत को दुनियाभर में सम्मान और गौरव दिलाया. यह बिल्कुल ठीक है कि हमारे देश के सर्वोच्च खेल सम्मान का नाम उन्हीं के नाम पर रखा जाए.
बता दें कि ध्यान चंद को भारत रत्न दिए जाने की मांग भी लंबे समय से चल रही है. इस लेकर हर साल एक मुहिम भी चलाई जाती है जिसमें सरकार से हॉकी के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध इस खिलाड़ी को देश का सर्वोच्च सम्मान दिए जाने की बात कही जाती है.
I have been getting many requests from citizens across India to name the Khel Ratna Award after Major Dhyan Chand. I thank them for their views.
Respecting their sentiment, the Khel Ratna Award will hereby be called the Major Dhyan Chand Khel Ratna Award!
Jai Hind! pic.twitter.com/zbStlMNHdq
— Narendra Modi (@narendramodi) August 6, 2021
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कौन थे मेजर ध्यान चंद
ध्यान चंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था. चार बार जब जब भारत ने ओलंपिक में गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया है उसमें से तीन बार उस हॉकी टीम के अहम सदस्य ध्यान चंद ही थे. ध्यान चंद के नेतृत्व में भारत ने 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक मैच जीता था. उन्होंने 185 मैचों में 570 गोल किए थे.
दिप्रिंट के हमारे सहयोगी ने उनपर लिखे एक लेख में लिखा है कि एम्सटर्डम ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम पहली बार खेलने उतरी थी. ध्यानचंद के नेतृत्व में भारत ने गोल्ड मेडल जीता और उन्होंने अकेले ही 14 गोल किए. जिसके बाद उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा.
1932 के ओलंपिक खेलों में भारत ने सेमिफाइनल में यूएसए को 24-1 से हराया और फाइनल मुकाबले में जापान को 11-1 से हराया था. ध्यानचंद ने पूरी श्रृखंला में 12 गोल किए थे और उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल किए थे. इस जीत के बाद दोनों भाइयों का जोड़ी काफी प्रसिद्ध हो गई.
अपनी आत्मकथा गोल में ध्यानचंद ने लिखा है उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था.
भारत में इस दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते हैं. 17 साल की उम्र में उन्होंने भारतीय सेना ज्वाइन की थी और सेना की तरफ से ही खेलना शुरू किया था.
अपने हुनर के दम पर वो 20 साल के उम्र में ही भारतीय सेना की तरफ से खेलने के लिए चयनित हो गए थे. 1926 में न्यूजीलैंड के दौरे पर ध्यानचंद भी टीम के सदस्य थे जिसमें भारत ने 21 में से 18 मैच जीते थे. खेल में अच्छे प्रदर्शन के दम पर भारत लौटने के बाद उन्हें लांस नायक बना दिया गया था.
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