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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशउत्तर का नागर, दक्षिण का द्रविड़ - अखिल भारतीय स्थापत्य शैली की झलक दिखेगी राम मंदिर में

उत्तर का नागर, दक्षिण का द्रविड़ – अखिल भारतीय स्थापत्य शैली की झलक दिखेगी राम मंदिर में

मंदिर की पहली मंजिल तैयार है, जबकि दूसरी और तीसरी मंजिल का निर्माण अभी चल रहा है. राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि गर्भगृह जहां भगवान को रखा जाएगा, वह भी तैयार है.

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अयोध्या: अयोध्या में बनाए जा रहे राम मंदिर में उत्तर और दक्षिण भारतीय वास्तुकला से प्रेरणा लेकर और इसे अखिल भारतीय रंग रूप दिया गया है.

मंदिर के डिज़ाइन निर्माण प्रबंधक, गिरीश सहस्त्रभोजिनी ने मंगलवार को कहा कि उत्तर की नागर वास्तुकला शैली के साथ दक्षिण भारतीय मंदिरों जिसमें, रामेश्वरम, तिरूपति और कांचीपुरम के तत्वों से प्रेरणा लेकर इसे बनाया गया है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “राम मंदिर में भारतीय वास्तुकला का सुंदर मिश्रण है. इसमें नागर शैली के भीतर समाहित द्रविड़ वास्तुकला की झलक देखने को मिलेगी.”

जिस तरह से नागर मंदिर अपने ऊंचे, पिरामिडनुमा टावरों से पहचाने जाते हैं जिन्हें शिखर कहा जाता है, ठीक वैसे ही राम मंदिर का निर्माण भी एक ऊंचे चबूतरे पर किया गया है. सहस्त्रभोजिनी ने कहा कि मुख्य मंदिर जहां भगवान राम की मूर्ति रखी जाएगी वह नागर शैली में है, कोनों पर बने चार मंदिर द्रविड़ वास्तुकला को ध्यान में रखकर डिजाइन किए गए हैं.

राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होने वाला है और यह 2025 तक पूरा हो जाएगा.

मंगलवार को, निर्माणाधीन मंदिर तक मीडिया कर्मियों को एक विशेष स्थान तक ले जाया गया जहां इंजीनियरों, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के सदस्यों और राम जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने उन्हें मंदिर की वास्तुकला के बारे में जानकारी दी.

शुरुआत में, वास्तुकार प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय गोपुरम शैली से प्रवेश द्वार को तराशना चाहते थे, लेकिन भूमि की कमी कारण वह इसे नहीं कर पाए. इसलिए, उन्होंने इसे व्यापक दक्षिण भारतीय मंदिर का रूप देने के लिए उस वास्तुकला से कुछ तत्वों को चुनने का फैसला किया.

सहस्त्रभोजिनी ने कहा, “दक्षिण के मंदिरों में, हर जगह आपको गोपुरम दिखाई देगा. लेकिन यहां ये संभव नहीं था. इसलिए हमने दक्षिण भारतीय वास्तुकला से विभिन्न तत्व को इसके निर्माण में शामिल किया. ”


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‘पूरे भारत से मंगाई गई निर्माण के लिए सामग्री’

निर्माण में प्रयुक्त ग्रेनाइट तेलंगाना और कर्नाटक से, फर्श सामग्री मध्य प्रदेश से और अधिरचना राजस्थान से मंगाई गई थी. ओडिशा की कुशल मूर्तियों ने जटिल बलुआ पत्थर को तराशा गया है यानी पूरे भारत की विशेषता को ध्यान में रखते हुए देशभर के विभिन्न हिस्सों से प्राप्त सामग्रियों को यहां यूज किया गया है.

सहस्त्रभोजिनी ने कहा, “तमिलनाडु के श्रमिकों के साथ लकड़ी का काम आंध्र प्रदेश स्थित एक कंपनी को सौंपा गया था. पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से और सोने का काम महाराष्ट्र से मंगाया गया है जबकि मंदिर का मुख्य वास्तुकार एक गुजराती है. ”

जहां तक कार्यबल का सवाल है, निर्माण कंपनी लार्सन एंड टुब्रो ने पत्थरों को तराशने के लिए स्थानीय पत्थर तराशने वालों और राजस्थान और मैसूरु के कारीगरों सहित लगभग 4,000 श्रमिकों ने मिलकर इस मंदिर को आकार देने में दिन रात एक किया है.

राय ने कहा, “वर्तमान में, मंदिर की पहली मंजिल फर्श और प्रवेश द्वार के साथ पूरी तरह से तैयार है. जहां भगवान राम को रखा जाएगा वह गर्भगृह भी तैयार हो चुका है. दूसरी और तीसरी मंजिल निर्माणाधीन है. ”

सुपरस्ट्रक्चर में स्टील, लोहे का उपयोग नहीं किया गया

सहस्त्रभोजिनी ने बताया कि, राम मंदिर के निर्माण के दौरान कारीगरों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.

ऐतिहासिक रूप से, सरयू नदी मंदिर परिसर के निकट बहती थी, जिससे मिट्टी ढीली और कमजोर हो जाती थी. सहस्त्रभोजिनी ने दिप्रिंट को बताया। “हमने मिट्टी को बदल दिया और लीन कंक्रीट से इंजीनियरिंग भराई शुरू कर दी. निर्माण से पहले, कोई ऐसी जगह चुनना चाहेगा जहां आप खर्चों में बचत कर सकें. चूंकि भगवान राम के स्थापित किए जाने के स्थान का चयन पहले से ही किया जा चुका था. इसलिए, हमें उनकी उम्मीदों से मेल खाते हुए बड़ी चालाकी से अपनी कला को प्रदर्शित करना पड़ा. ”

मंदिर के निर्माण में स्टील और कंक्रीट का इस्तेमाल नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि मंदिर एक हजार साल तक खड़ा रहे, कार्बन फाइबर, ग्लास रॉड और मिश्रित सामग्री जैसी किसी आधुनिक सामग्री का उपयोग नहीं किया गया. इसकी बड़ी वजह यह है कि मंदिर की संरचना को किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा की सामना से बचाना भी है कि वह इनका सामना कर सके.

सहस्त्रभोजिनी ने बताया, “जब हम एक सहस्राब्दी से अधिक समय तक चलने वाले मंदिर के बारे में बात करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से, हम किसी ऐसी चीज़ का परीक्षण नहीं करेंगे जिसका कोई सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड न हो. इसलिए, कंक्रीट और स्टील को खारिज कर दिया गया. तो क्या बचा था? हमें पुरातन काल में वापस जाना पड़ा और उस कला को अपनाना पड़ा. ”

उन्होंने कहा, आजकल उपयोग की जाने वाली आधुनिक सामग्रियां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सामने आई हैं और उनकी “एक सहस्राब्दी के लिए उपयुक्तता स्थापित करने” की कोई विरासत नहीं है.

उन्होंने कहा, “ मंदिर के निर्माण में ऐसी किसी भी चीज़ का उपयोग नहीं किया गया है जिसका कुछ सदियों का ट्रैक रिकॉर्ड न हो. वर्तमान में, मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मंदिर की आयु एक हजार वर्ष से अधिक है. ”

सहस्त्रभोजिनी ने आगे कहा, “मिट्टी बदलने के लिए की गई खुदाई के दौरान साइट से कई कलाकृतियां मिलीं जिससे यह प्रतीत होता है कि कि यहां एक नहीं बल्कि कई राम मंदिर थे.”

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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