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Tuesday, 19 November, 2024
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कट्टरपंथ से निपटने के लिए सूफीवाद को पुनर्जीवित करने के अभियान पर मुस्लिम धार्मिक उपदेशक

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श्रीनगर, नौ फरवरी (भाषा) जम्मू-कश्मीर में एक आतंकवादी हमले के कारण दो साल तक बिस्तर पर रहे मौलवी मोहम्मद अशरफ (51) ने अपना पूरा जीवन ‘सूफीवाद’ को मजबूत बनाने में समर्पित कर दिया है, क्योंकि उनका मानना है कि इससे आतंकवाद प्रभावित घाटी में कट्टरपंथ से निपटने और शांति सुनिश्चित करने में सफलता मिल सकती है।

अशरफ दक्षिण कश्मीर के बिजबेहरा इलाके में गुरी गांव के रहने वाले हैं। वह 1994 से सूफी संस्कृति को पुनर्जीवित करने की दिशा में कर रहे हैं। उन्होंने अवंतीपोरा स्थित इस्लामिक विश्वविद्यालय, कश्मीर विश्वविद्यालय और राजौरी जिले के बाबा गुलाम शाह बादशाह विश्वविद्यालय में ‘सूफी पाठ्यक्रम’ की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभाई है।

वह 2018 में एक आतंकवादी हमले की चपेट में आने के बाद आंशिक रूप से निशक्त हो गए थे।

अशरफ ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘सूफीवाद एक विचारधारा है, जो सह-अस्तित्व में यकीन करती है। यह आध्यात्मिकता, भाईचारे, सांप्रदायिक सद्भाव और सभी से प्यार करने का संदेश देती है, जो कश्मीरियत की नींव है। इसे वर्षों से केंद्र और राज्य, दोनों ही सरकारों की उपेक्षा का सामना करना पड़ा है और शैक्षणिक संस्थानों में इस विषय पर ध्यान न दिए जाने के कारण कट्टरपंथ को बढ़ावा मिला है।’’

अशरफ ने सूफीवाद पर दो किताबें भी लिखी हैं। उन्होंने 2016 में आतंकवाद प्रभावित शोपियां में पहला सूफी सम्मेलन ‘बैक टू पैराडाइज’ आयोजित किया था, जिसमें 80 धार्मिक उपदेशकों सहित सैकड़ों लोग शामिल हुए थे। वह एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के संस्थापक भी हैं, जो पूरे जम्मू-कश्मीर में सूफीवाद का पाठ पढ़ाने वाले सौ मदरसों का संचालन करता है।

अशरफ ने कहा, ‘‘सूफीवाद को पुनर्जीवित करने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है। जब मानसिकता में बदलाव आता है, तो शांति कायम होना तय है। हमें टहनियों पर महज दवा का छिड़काव करने के बजाय पेड़ की जड़ों तो मजबूत बनाने पर जोर देना चाहिए।’’

अशरफ ने कहा कि उनका परिवार कट्टरपंथ से सबसे ज्यादा प्रभावित परिवारों में से एक है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं 2018 में एक आतंकवादी हमले में बाल-बाल बच गया, लेकिन इसके चलते मुझे दो साल तक बिस्तर पर रहना पड़ा। वहीं, 2015 में उधमपुर जिले में गोमांस के सेवन का विरोध कर रही भीड़ ने मेरे एक रिश्तेदार को जिंदा जला दिया और इस घटना में मेरा एक अन्य रिश्तेदार गंभीर रूप से घायल हो गया।’’

अशरफ ने कहा, ‘‘कट्टरपंथ किसी एक समुदाय या धर्म तक ही सीमित नहीं है। मैं आतंकवाद का शिकार हूं, जबकि मेरे रिश्तेदार दूसरे धर्म के कट्टरपंथियों के शिकार हो गए। हम सभी को धर्म, पंथ और जाति से परे साथ खड़े होने और कट्टटरपंथ से लड़ने की जरूरत है।’’

भाषा पारुल सिम्मी

सिम्मी

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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