तिरुवनंतपुरम, 27 जून (भाषा) केरल में नशा-विरोधी अभियान के तहत सामान्य शिक्षा विभाग की ओर से स्कूलों में शुरू किए गए जुम्बा नृत्य कार्यक्रम का कुछ मुस्लिम समूहों ने यह कहकर विरोध किया कि यह (जुम्बा) नैतिक मूल्यों के खिलाफ है।
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के निर्देश के बाद स्कूलों में यह कार्यक्रम शुरू किया गया था। विजयन ने कहा था कि जीवंत संगीत के साथ नृत्य और एरोबिक अभ्यास के संयोजन वाले इस नृत्य से स्कूली बच्चों में तनाव कम करने में मदद मिलेगी और युवाओं के नशे की लत के शिकार होने के खतरे पर लगाम लगेगी।
कई स्कूलों ने इसी शैक्षणिक वर्ष से जुम्बा प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है।
‘समस्त केरल सुन्नी युवाजन संघम’ (एसवाईएस) के राज्य सचिव अब्दुस्समद पुक्कोट्टूर ने शुक्रवार को एक फेसबुक पोस्ट में राज्य सरकार की पहल के खिलाफ विरोध जताते हुए दावा किया, ‘‘जुम्बा नृत्य नैतिक मूल्यों के विरुद्ध है।’’
उन्होंने अभिभावकों से इस फिटनेस कार्यक्रम के बारे में अधिक गंभीरता से सोचने का आग्रह किया।
एसवाईएस केरल में एक प्रमुख सुन्नी मुस्लिम विद्वान निकाय समस्त केरल जमीयतुल उलमा की युवा शाखा है।
राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू ने इस पहल का समर्थन करते हुए कहा कि जुम्बा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर बच्चों और आम जनता दोनों को लाभ पहुंचाता है।
विवाद के बारे में पूछे जाने पर बिंदू ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं, यह 2025 है। हम 19वीं सदी या आदिम मध्यकालीन काल में नहीं रह रहे हैं। सभी को समय के अनुसार सोचना चाहिए।’’
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) की छात्र शाखा मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन (एमएसएफ) ने उचित अध्ययन के बिना कार्यक्रम शुरू करने के लिए सरकार की आलोचना की।
एमएसएफ के प्रदेश अध्यक्ष पीके नवास ने पूछा, ‘‘जब स्कूलों में ऐसा कार्यक्रम शुरू किया जाता है, तो गहन और विश्वसनीय अध्ययन किया जाना चाहिए। क्या सामान्य शिक्षा विभाग ने इसे लागू करने से पहले कोई अध्ययन किया या छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ चर्चा की?’’
विजडम इस्लामिक संगठन के महासचिव टीके अशरफ ने कहा कि एक शिक्षक के रूप में उन्होंने नशा-विरोधी अभियान के तहत स्कूलों में जुम्बा अनिवार्य करने के निर्देश को लागू करने से पीछे हटने का फैसला किया है।
उन्होंने फेसबुक पोस्ट में कहा, ‘‘मेरा बेटा भी इस कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेगा। मैं इस मामले में विभाग की ओर से की जाने वाली किसी भी कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार हूं।’’
अशरफ ने कहा कि उन्होंने अपने बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाया है, ‘‘ऐसी संस्कृति सीखने के लिए नहीं, जहां लड़के और लड़कियां कम कपड़े पहनकर संगीत की लय पर एक साथ नृत्य करते हैं।’’
उन्होंने दावा किया कि कई शिक्षक, छात्र और अभिभावक भी इस कार्यक्रम से असहमत हैं, लेकिन संभावित परिणामों के डर से चुप रहना बेहतर समझते हैं।
अशरफ ने आरोप लगाया, ‘‘मैंने लोगों को यह कहकर डराने की कोशिशें देखी हैं कि उन्हें विभाग को स्पष्टीकरण देना होगा या अगर वे इसका पालन नहीं करते हैं, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।’’
हालांकि, सामान्य शिक्षा विभाग ने कहा कि जुम्बा सत्र आयोजित करने का उद्देश्य छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य सुधारना है।
विभाग ने कहा कि इसका लक्ष्य सकारात्मक एवं स्वस्थ विकल्प प्रदान करके बच्चों को नशीले पदार्थों से दूर रखना है।
भाषा सुरेश पारुल
पारुल
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.