scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमदेश'वो सुबह कभी तो आयेगी' के संगीतकार खय्याम ने दुनिया को कहा अलविदा

‘वो सुबह कभी तो आयेगी’ के संगीतकार खय्याम ने दुनिया को कहा अलविदा

खय्याम साहब यानी मोहम्मद ज़हूर का जन्म जालंधर के करीब हुआ था. बचपन से ही उन्हें फिल्मों शौक था.

Text Size:

भारतीय सिनेमा के दिग्गज संगीतकार खय्याम का 93 साल की उम्र में निधन हो गया. उनकी तबियत पिछले कुछ समय से ठीक नहीं चल रही थी. वह मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थे जहां पर उनका निधन हो गया.

साठ के दशक की बात है. संगीतकार खय्याम और साहिर लुधियानवी की दोस्ती परवान चढ़ चुकी थी. इन दोनों को जोड़ने वाली चीज थी उनकी पंजाबियत. 60 के दशक में ही खय्याम साहब की किसी बात पर संगीतकार एसडी बर्मन से कुछ अनबन हो गई. इस अनबन के बाद ही बतौर गीतकार-संगीतकार खय्याम और साहिर ज्यादा करीब आ गए.

इन दोनों की दोस्ती का ये किस्सा बड़ा दिलचस्प है. हुआ यूं कि 1960 में रमेश सहगल राज कपूर को लेकर ‘फिर सुबह होगी’ बना रहे थे. उन्होंने गीतकार के तौर पर साहिर लुधियानवी को साइन किया था. साहिर ने संगीतकार के तौर पर खय्याम का नाम सुझाया. लेकिन रमेश सहगल खय्याम के नाम पर मानने को तैयार ही नहीं थे. उन्हें पता था कि राज कपूर शंकर जयकिशन के अलावा किसी और संगीतकार के नाम पर मंजूरी नहीं देंगे. लिहाजा उन्होंने खय्याम के नाम पर ना-नुकुर की. हुआ भी ऐसा ही. राज कपूर ने भी शंकर जयकिशन के अलावा किसी और के साथ काम करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. बड़े मान मुनव्वल के बाद राज कपूर इस बात के लिए राजी हुए कि खय्याम के साथ एक बैठक की जाए.

इस बैठक की कहानी भी जबरदस्त है. इस बैठक में राज कपूर ने खय्याम साहब को ये बताते हुए एक तानपुरा दिया कि उस तानपुरे को उस वक्त तक किसी ने बजाया नहीं था. राज कपूर को वो तानपुरा लता मंगेशकर ने दिया था. खय्याम साहब ने उस तानपुरे को छेड़ा, बाद में उन्होंने कुछ धुनें राज कपूर को सुनाईं और उसके बाद इतिहास दर्ज हुआ. इसी फिल्म में मुकेश का गाया- वो सुबह कभी तो आएगी ने कमाल किया. फिर सुबह होगी उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक रही. इस फिल्म के बाद भी खय्याम और साहिर की जोड़ी ने एक से बढ़कर एक फिल्मों में साथ काम किया.

खय्याम साहब यानी मोहम्मद ज़हूर का जन्म जालंधर के करीब हुआ था. बचपन से ही उन्हें फिल्मों शौक था. ये शौक इस कदर परवान चढ़ा कि वो घर से भागकर संगीत सीखने के लिए दिल्ली आ गए. घरवालों ने पढ़ाई पूरी करने के लिए वापस बुलाया. उन्होंने जैसे-तैसे पढ़ाई की लेकिन आखिरकार फिल्मों का ही रूख किया. खय्याम बॉम्बे पहुंचे. शुरूआती दौर के काम मिलने शुरू हो गए. लेकिन जिस फिल्म ने उनके काम पर लोगों का ध्यान खींचा वो फिल्म ‘फिर सुबह होगी’ ही थी. जिसका जिक्र हमने शुरू में किया. 70 के दशक में ‘कभी कभी’ फिल्म में खय्याम साहब का संगीत हर किसी की जुबान पर था. कभी-कभी के गानों को लाजवाब लोकप्रियता मिली. इसी फिल्म के लिए खय्याम साहब को पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला.

खय्याम कभी ज्यादा काम करने के फेर में नहीं पड़े. उन्होंने कम काम किया, बेहतरीन काम किया. यही वजह थी कि उस दौर के बड़े से बड़े संगीतकार ने खय्याम साहब को इज्जत दी. जिसमें नौशाद भी शामिल थे. जो उम्र में तो खय्याम से बड़े थे लेकिन उनके फन की तारीफ करने वालों में शुमार थे. नौशाद साहब खुद कहते भी थे- ‘मैं खय्याम की इज्ज़त इसलिए भी करता हूं क्योंकि उन्होंने हमेशा अपनी धरती की मौसिकी को आगे बढ़ाया. मग़रिबी मौसिकी की तरफ कभी वह रागिब नहीं हुए. यही वजह है कि उनकी मौसिकी हमेशा पसंद की गई.

खय्याम पंजाबी हैं इसलिए उन्होंने अपने काम में पंजाबी लोकसंगीत का इस्तेमाल खूबसूरती के साथ किया.’ दरअसल उस दौर में नौशाद साहब के अलावा जिन संगीतकारों को शास्त्रीय रागों पर संगीत करने में महारत हासिल की थी खय्याम उनमें से एक थे. उनके अलावा एसडी बर्मन, मदन मोहन और अनिल विश्वास जैसे संगीतकारों की भी यही खासियत थी. मोटे तौर पर अगर खय्याम साहब के करियर को 6 दशक का माना जाए तो उसमें उन्होंने 30-35 फिल्में ही कीं. जिसमें हर एक दशक में उनकी एक फिल्म का संगीत अलग ही रंगत लिए हुए रहता था.

खय्याम साहब ने जगजीत कौर से विवाह किया. जगजीत कौर लता जी और आशा जी के दौर में प्लेबैक सिंगिग करती थीं. खय्याम साहब की तरह ही जगजीत कौर भी कम काम करती थीं. उन्होंने कुछ ही गाने गाए लेकिन वो सारे के सारे गाने आज भी लोगों की जुबां पर है. काहे को ब्याही बिदेस, चले आओ सईंया रंगीले मैं वारी, देख लो आज हमको जी भर के, तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो. जगजीत कौर के गाए ज्यादातर गानों में संगीत खय्याम साहब का ही था.

लेकिन ऐसा नहीं कि खय्याम साहब ने और गायिकाओं के साथ काम नहीं किया. 80 के दशक में रिलीज रजिया सुल्तान में उनके संगीत में लता जी का गाया ऐ दिले नादान गाना लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा. इसी दशक में उन्होंने उमराव जान का संगीत दिया. जो संगीत के मामले में भारतीय फिल्म इतिहास की बेहद अहम फिल्मों में से एक है. इस फिल्म के लिए भी खय्याम साहब को फिल्मफेयर अवॉर्ड से मिला. संगीत के शौकीनों की नई पीढ़ी ने खय्याम साहब को रियलिटी शो में जज बनते भी देखा. शांत और शालीन अंदाज में कलाकारों की नई पीढ़ी को उन्होंने परखा.

(शिवेंद्र कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं. और वह संगीत से जुड़ी साइट राग गिरी चलाते हैं.)

share & View comments